नई दिल्ली: भारतीय राजनीति के पितामह और BJP के संस्थापक सदस्य रहे पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा. PM मोदी और लालकृष्ण आडवाणी की रिश्तों की डोर की कहानी दशकों पूरानी है. इन दोनों नेताओं का उतार-चढ़ाव भरा संबंध हमेशा सुर्खियों में रहा. पीएम मोदी के सियासी कैरियर में आडवाणी की भूमिका हमेशा चर्चा के केंद्र में रही है.
पीएम मोदी हमेशा सार्वजनिक मंचों से लालकृष्ण आडवाणी के प्रति सम्मान का इजहार करते रहे है. पीएम मोदी के सियासी सफर में आडवाणी के योगदान इतिहास है. पीएम मोदी ने भी तमाम मौकों पर लालकृष्ण आडवाणी को अपना गुरु कहकर संबोधित किया है. ऐसे में जब केंद्र सरकार की ओर से आडवाणी को भारत रत्न देने का ऐलान किया गया तो इसे पीएम मोदी का गुरु दक्षिणा माना जा रहा है.
साल 2003 में गुजरात दंगों के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी ने राजधर्म की बात कहते हुए तत्कालीन CM नरेंद्र मोदी से इस्तीफा लेने पर अड़े थे. उस वक्त पीएम मोदी के सबसे बड़े संकटमोचक लालकृष्ण आडवाणी बनकर उभरे. तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी चाहते थे कि मोदी CM पद से इस्तीफा दें क्योंकि उन्होंने राजधर्म का पालन नहीं किया. उस वक्त आडवाणी ने नरेंद्र मोदी का इस्तीफा नहीं लेने को लेकर अटल बिहारी वाजपेयी से गुजारिश की. साल 2002 में गोवा में राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति की बैठक में जाते समय अटल जी ने मन बना लिया था कि पीएम मोदी का इस्तीफा होगा. पार्टी के बैठक में आडवाणी ने इसका विरोध किया था और अटल जी से मोदी से इस्तीफा लेने के फैसले को वापस लेने को कहा.
नरेंद्र मोदी का गुजरात के मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री बनने तक की राह इतनी आसान नहीं रही. 2013 में बीजेपी के अंदर ही प्रधानमंत्री पद को लेकर घमासान चल रहा था. प्रधानमंत्री पद के दावदारों में लाल कृष्ण आडवाणी सबसे आगे थे लेकिन इस बार आडवाणी के प्रधानमंत्री बनने में रुकावट कोई और नहीं बल्कि उनकी ही पार्टी थी. पार्टी नरेंद्र मोदी को चेहरा को आगे करके चुनाव लड़ना चाहती थी, जिसके लिए आडवाणी तैयार नहीं थे. आडवाणी की नराजगी को नजरअंदाज करते हुए नरेंद्र मोदी को बीजेपी संसदीय बोर्ड की बैठक में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनाया. जिसके बाद उनकी अगुवाई में देश में बीजेपी की पूर्ण बहुमत की पहली बार सरकार बनी.