मणिपुर में जगहों के नाम बदलने पर होगी सजा, सरकार लाएगी कानून

Manipur Names of Places Bill 2024: मणिपुर सरकार किसी भी नाम बदलने के खिलाफ है. चाहे वो इलाका हो, तहसील हो, कोई जगह हो, कोई संस्था हो या उस संस्था का पता हो. सरकार का मानना है कि ऐसा करने से राज्य में कानून-व्यवस्था खराब हो सकती है.

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मणिपुर में चल रहे झगड़ों की वजह से अब जगहों के नाम भी विवाद का विषय बन गए हैं. आने वाले विधानसभा सत्र में एक ऐसा बिल पेश किया जा सकता है, जिसमें बिना सरकारी अनुमति के नामों का इस्तेमाल करने को दंडनीय अपराध बताया जाएगा.

तनाव के दौरान जगहों के नाम पर हुआ विवाद

झगड़ों के दौरान, जब कुकी या मेइती समुदाय के लोग उन इलाकों से भागे जहां वे अल्पसंख्यक थे, तो जगहों के नाम भी विवादित हो गए. इसका सबसे बड़ा उदाहरण कुकी-ज़ोमी बहुल इलाके चुराचंदपुर और उसी नाम के जिला मुख्यालय के नाम को लेकर है. 

यह नाम 1891 से 1941 तक मणिपुर साम्राज्य के मेइती राजा चुराचंद सिंह से लिया गया है. हालांकि कुकी-ज़ोमी समुदाय के लोग लंबे समय से शहर के लिए लामका नाम का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन झगड़ों के दौरान कई घरों, दुकानों और सरकारी दफ्तरों में भी लामका नाम दिखने लगा.

एक अन्य उदाहरण इंफाल में स्थित एक इलाके पाइटे वेंग को लेकर है, जहां रहने वाले मेइती लोगों ने नए साइनबोर्ड के जरिए "क्वाकेइथेल निंगथेंकोल" नाम का दावा किया. इस खींचतान का असर गूगल मैप्स पर भी देखने को मिलता है.

अगला सत्र 28 फरवरी से

सरकार ने शुक्रवार को घोषणा की कि राज्य का अगला विधानसभा सत्र 28 फरवरी से शुरू होगा. पिछले साल 3 मई को हुए जातीय संघर्ष की शुरुआत के बाद से यह दूसरा सत्र होगा. पिछला सत्र सिर्फ एक दिन का था, जो 29 अगस्त को हुआ और सिर्फ 11 मिनट चला. इसमें राज्य में हो रही हिंसा का कोई जिक्र नहीं किया गया था.

मणिपुर नेम्स ऑफ प्लेसेस बिल 2024

इस बार सरकार जिन बिलों को पेश करने की सोच रही है, उनमें से एक "मणिपुर नेम्स ऑफ प्लेसेस बिल 2024" है. भूमि संसाधन विभाग द्वारा तैयार किया गया और राज्य मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित बिल का प्रस्ताव कहता है कि इसका उद्देश्य "जगहों के नामों के सही इस्तेमाल को लागू करने के लिए एक संस्थागत तंत्र स्थापित करना" और साथ ही "जगहों को नाम देने और नाम बदलने के लिए प्रक्रिया निर्धारित करना" है.

क्या कहता है ये बिल

मसौदा बिल में "जगहों के नामों का दुरुपयोग" को दंडनीय अपराध बनाने का प्रस्ताव है, जिस पर दोषी पाए जाने पर एक से तीन साल की कैद की सजा हो सकती है.

प्रस्ताव में कहा गया है, "कुछ व्यक्तियों या लोगों के समूहों या संगठनों द्वारा निश्चित इरादे से जगहों के अनधिकृत नामों के इस्तेमाल के कई उदाहरण सामने आए हैं, जिससे राज्य के प्रशासन में अराजकता पैदा होने की संभावना है."

इसमें आगे कहा गया है कि ऐसे अनधिकृत नामों के उपयोग के कारण कुछ प्रशासनिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है.

प्रस्तावित अधिनियम के तहत, सरकार की "मंजूरी के अधीन" नामों पर सिफारिशें करने के लिए एक 'स्थान नाम समिति' बनाई जाएगी.

मणिपुर में पिछले साल अक्टूबर में ही किसी भी बिल के बनने से पहले मुख्य सचिव ने आदेश जारी किया था. इस आदेश में कहा गया था कि जो संगठन या लोग इलाकों, तहसीलों, जगहों, संस्थाओं और उनके पतों के नाम बदलने की कोशिश करेंगे, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. ऐसा करने से राज्य में कानून-व्यवस्था बिगड़ सकती है.