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'मियां-टियां' और 'पाकिस्तानी' कहने पर नहीं होगी सजा, सुप्रीम कोर्ट ने बदला हाईकोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि 'मियां-टियां' या 'पाकिस्तानी' जैसे शब्दों का उपयोग करना अपराध नहीं है, क्योंकि इससे किसी की धार्मिक भावनाओं को आहत करने का मामला नहीं बनता.

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Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसले में कहा कि किसी भी व्यक्ति को 'मियां-टियां' या 'पाकिस्तानी' कहना अपराध नहीं है. अदालत ने इसे अशोभनीय और अनुचित भाषा तो माना, लेकिन इसे धार्मिक भावनाएं आहत करने वाला अपराध नहीं माना. इस फैसले के बाद आरोपी हरी नंदन सिंह को राहत मिली और उनके खिलाफ लगे आरोप खारिज कर दिए गए.

क्या थी पूरी घटना?

आपको बता दें कि यह मामला तब शुरू हुआ जब एक सरकारी कर्मचारी, जो उर्दू अनुवादक और सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम के तहत कार्यरत था. बता दें कि एक आदेश के तहत हरी नंदन सिंह को कुछ दस्तावेज सौंपे. आरोप के मुताबिक, सिंह ने दस्तावेज लेने से इनकार किया और कथित तौर पर कर्मचारी को 'पाकिस्तानी' कहकर संबोधित किया.

किन धाराओं में दर्ज हुआ था मामला?

इस घटना के बाद हरी नंदन सिंह के खिलाफ कई धाराओं में केस दर्ज किया गया, जिनमें शामिल थीं-

  • धारा 298 - धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप
  • धारा 504 - जानबूझकर अपमान करना जिससे शांति भंग हो सकती है
  • धारा 506 - आपराधिक धमकी देना
  • धारा 353 - सरकारी कर्मचारी को डराने या बाधा डालने के लिए हमला
  • धारा 323 - शारीरिक चोट पहुंचाना

मजिस्ट्रेट कोर्ट ने धारा 353, 298 और 504 के तहत आरोप तय किए जबकि धारा 323 और 506 के आरोप सबूतों के अभाव में खारिज कर दिए.

हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक मामला

वहीं, हरी नंदन सिंह ने सेशन कोर्ट और राजस्थान हाई कोर्ट में फैसले को चुनौती दी लेकिन राहत नहीं मिली. अंततः मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां जस्टिस बीवी नागरत्ना और सतिश चंद्र शर्मा की बेंच ने कहा कि धारा 298 लागू नहीं होती क्योंकि आरोपी की टिप्पणियां दुर्भावनापूर्ण नहीं थीं.

सुप्रीम कोर्ट ने कैसे किया मुक्त?

  • धारा 298: धार्मिक भावनाएं आहत करने का इरादा साबित नहीं हुआ.
  • धारा 353: सरकारी कर्मचारी के खिलाफ किसी प्रकार की हिंसा या जबरन बल प्रयोग का कोई सबूत नहीं मिला.
  • धारा 504: आरोपी की कथित टिप्पणियों से शांति भंग होने की संभावना नहीं थी.

इन तथ्यों के आधार पर, सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया और केस को खत्म कर दिया.

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और भारतीय दंड संहिता की सीमाओं को स्पष्ट करता है. वहीं अदालत ने यह भी कहा कि ऐसी टिप्पणियां अनुचित और असंवेदनशील हो सकती हैं, लेकिन जब तक इनका उद्देश्य धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना साबित नहीं होता, तब तक इन्हें अपराध नहीं माना जा सकता.