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India Daily

'भारत में डॉक्टरों की किल्लत,' फर्जी जानकारी पर भी हाई कोर्ट क्यों नहीं रद्द की स्टूडेंट की डिग्री?

बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक मेडिकल के स्टूडेंट को राहत दी है. उसने गलत जानकारी के साथ ओबीसी श्रेणी के तहत मुंबई के एक कॉलेज में एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए एडमिशन लिया था.

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Edited By: India Daily Live
Bombay High Court

बॉम्बे हाई कोर्ट ने मुंबई के एक कॉलेज में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे स्टूडेंट की डिग्री इसलिए नहीं रद्द की क्योंकि देश में डॉक्टरों की कमी है. बॉम्बे HC ने माना कि एक छात्र ने 2012 में गलत तरीके से ओबीसी की सर्टिफिकेट बनाई. स्टूडेंट ने सूचना के आधार पर गैर-क्रीमी लेयर प्रमाणपत्र पर ओबीसी के रूप में मुंबई के एक शीर्ष कॉलेज में एमबीबीएस डिग्री कोर्स में प्रवेश लिया था. जब ये मामला कोर्ट में पहुंचा को कोर्ट ने माना की ये गलत है, लेकिन यह देखते हुए कि डॉक्टरों की आवश्यकता है, उसकी डिग्री रद्द नहीं किया. 

न्यायमूर्ति ए एस चंदुरकर और न्यायमूर्ति जितेंद्र जैन की खंडपीठ ने कहा कि हमारे देश में जहां आबादी के मुकाबले डॉक्टरों का अनुपात बहुत कम है, उनकी डिग्री वापस लेना "एक राष्ट्रीय क्षति होगी, क्योंकि नागरिक एक डॉक्टर से वंचित हो जाएंगे. साथ ही कोर्ट ने मान कि कॉलेज में प्रेवश लेने के लिए उसने नहीं उसके माता-पिता ने अनुचित तरीके से ओबीसी का सर्टिफिकेट बनवाया. हाई कोर्ट ने कहा कि अगर मेडिकल पेशा झूठी जानकारी की नींव पर आधारित है, तो यह निश्चित रूप से महान पेशे पर एक धब्बा होगा. उन्होंने कहा कि कैसे किसी भी छात्र को तथ्यों को छिपाकर अपनी नींव नहीं बनानी चाहिए. 

कॉलेज ने डिग्री रद्द कर दी थी

2013 में मुंबई उपनगरीय कलेक्टर द्वारा ओबीसी श्रेणी के उम्मीदवार के रूप में छात्रा लुबना मुजावर को जारी किए गए गैर-क्रीमी लेयर प्रमाणपत्र को रद्द करना उचित था. लोकमान्य तिलक मेडिकल कॉलेज ने फरवरी 2014 में एमबीबीएस में उसका प्रवेश रद्द कर दिया था. लेकिन एचसी ने कहा कि समय बीतने के कारण और अंतरिम आदेशों के आधार पर, जिसने उसे अध्ययन करने की अनुमति दी, उसने 2017 में अपना कोर्स पूरा किया. अब उन्हें डिग्री देनी जानी चाहिए. 

हाई कोर्ट ने क्या कहा? 

अदालत ने  कहा कि  याचिकाकर्ता ने एमबीबीएस का कोर्स पूरा कर लिया है और इसलिए उसकी डिग्री को वापस लेना उचित नहीं होगा. एचसी ने कहा कि छात्रा ने अपने पिता द्वारा गलत जानकारी देकर और यह खुलासा नहीं करके कि मां नगर निगम के लिए काम करती थी, कॉलेज में एडमिशन लिया. एचसी ने छात्र को निर्देश दिया कि वह अब तीन महीने के भीतर कोर्स की फीस का भुगतान करे, और कॉलेज को अतिरिक्त 50,000 रुपये का भुगतान भी करे.

याचिकाकर्ता ने क्या दिया तर्क

याचिकाकर्ता लुबना मुजावर ने कहा कि चूंकि उसके पिता ने उसकी मां को तलाक दे दिया था, इसलिए उन्होंने प्रमाणपत्र पर उसकी आय का उल्लेख नहीं किया. एमयूएचएस ने कहा कि उन्होंने झूठा कहा कि वे गैर-क्रीमी लेयर स्थिति के लिए 4.5 लाख रुपये की आय सीमा से बचने के लिए एक साथ नहीं रह रहे थे. एमयूएचएस के वकील आरवी गोविलकर और राज्य के वकील अभय पाटकी ने तर्क दिया कि इस तरह की प्रथा एक गलत मिसाल कायम करेगी.