‘रेवड़ी’ बांटते हुए आम आदमी पार्टी की सरकार खुश है. आम आदमी पार्टी के संस्थापक संयोजक अरविन्द केजरीवाल इस बात की परवाह नहीं करते कि रेवड़ियों के बारे में कौन-क्या कह रहा है. विरोधी राजनीतिक दल आरोप भी लगाते हैं और रेवड़ी के केजरीवाल मॉडल या दिल्ली मॉडल को फॉलो भी करते हैं. इससे उनकी राजनीतिक मजबूरी को समझा जा सकता है. अदालत भी गाहे-बगाहे ‘रेवड़ी’ पर टिप्पणियां करता रहा है. मगर, विजनरी नेता कभी इन बातों की परवाह नहीं करते और इसलिए उनके नाम से ही मॉडल बन जाता है.
आम आदमी पार्टी ने जिन क्षेत्रों में ‘रेवड़ी’ दी है उनमें शामिल हैं बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, बुजुर्गों के लिए तीर्थ यात्रा, महिलाओं के लिए बस में मुफ्त सफर और महिलाओं को नकद. बिजली को 200 यूनिट तक माफ किया, उससे आगे 400 यूनिट तक आधा किया. पानी 20 हजार लीटर तक फ्री किया. स्कूली शिक्षा को पूरी तरह मुफ्त बना दिया. दिल्ली में मुफ्त इलाज सुनिश्चित किया. हाल में सभी सीनियर सिटिजन का मुफ्त इलाज कराने के मकसद से संजीवनी का रक्षा कवच लेकर सरकार आयी है. 1 लाख बुजुर्गों को मुफ्त में तीर्थ यात्रा करा चुकी है सरकार. महिलाएं बस में 150 करोड़ बार मुफ्त सफर कर चुकी हैं. हर बालिग महिला को हजार रुपये महीने और चुनाव जीतने के बाद 2100 रुपये महीने देने की घोषणा भी की जा चुकी है. इन सबसे दिल्ली की जनता को 35 से 36 लाख रुपये का आभासी फायदा हुआ है और आगे भी ये रकम बढ़ती जाने वाली है.
दिल्ली में 35-36 लाख की बचत आभासी जरूर मगर जुमला नहीं
एक बात यह भी समझना जरूरी है कि 35-36 लाख के आभासी फायदे का मतलब क्या है? अगर मुफ्त इलाज पाने वाला व्यक्ति निजी अस्पताल में भर्ती होता तो उसके जो खर्च होते वो नहीं हुए और बचत हो गयी. तो, यही आभासी बचत है. अगर दिल्ली का व्यक्ति मुंबई में रहे तो बिजली बिल 34-35 सौ रुपये ज्यादा देना होगा और दिल्ली मे रहें तो यह बचत है. यह भी वैसा ही उदाहरण है.
निश्चित रूप से अरविन्द केजरीवाल ने नरेंद्र मोदी की उस सियासत से बढ़त ले ली है जिसमें सत्ता में आने पर हर भारतीय के खाते में 15-15 लाख रुपये देने का वादा किया था लेकिन सत्ता में आने पर गृहमंत्री अमित शाह ने उसे ‘जुमला’ करार दिया था. बीजेपी ने जिस ‘रेवड़ी’ को जुमला माना उससे ‘दुगुनी रेवड़ी’ दिल्ली की जनता को केजरीवाल मॉडल अब तक दे चुकी है. फौरी तौर पर इस दावे को नकारना आसान है मगर आंकड़े तमाम नकारात्मक दावों को खारिज करते हैं.
बिजली से दस साल में गरीबों के बचे हैं 4 लाख, अपार्टमेंट वाले घरों के 10 लाख : दिल्ली में बिजली की दर है 0-200 यूनिट तक 4.16 रुपये. बिजली बिल माफ नहीं होता तो बिल आता 916 रुपये. 2001-400 यूनिट तक बिजली बिल है 6.24 रुपये प्रति यूनिट. यानी 1248 रुपये अतिरिक्त बिजली बिल. कुल मिलाकर 400 यूनिट तक की बिजली का बिल होता है 2,164 रुपये. अभी इस रकम के बदले आम उपभोक्ताओं को केवल 624 रुपये देने पड़ रहे हैं और 1540 रुपये महीने की शुद्ध बचत हो रही है. यह बचत सालाना 18,480 रुपये की है. मगर, ठहरिए अगर आप सहूलियत के दिल्ली मॉडल से बाहर किसी प्रदेश में रह रहे होते तो कितना बिल चुकाना पड़ता?
महाराष्ट्र में 400 यूनिट बिजली के लिए बिल आता है 4000 रुपये प्रति माह. अब इतनी ही बिजली के लिए बिल आया 2,164 रुपये. यानी आधा बिल. चुकाया कितना? महज 624 रुपये. महाराष्ट्र के लोगों की तुलना में दिल्ली में लोगों को कितनी राहत या बचत हुई?- 4000-624 रुपये यानी 3376 रुपये महीना. साल में यही बचत हुई 40,512 रुपये. और, 10 साल में यह बचत हो जाती है 4 लाख से ज्यादा. यह बचत आभासी है. मगर, इसका असर बड़ा है.
दिल्ली वालों को जेनरेटर या पावर बैक अप की जरूरत नहीं होती. इससे कम से कम हर परिवार को पावर बैक अप के वन टाइम इनवेस्टमेंट 10 हजार रुपये की बचत स्पष्ट रूप से होती है. अगर कोई परिवार अपार्टमेंट में रहता है तो वहां पावर बैक अप वाली बिजली 12 से 13 रुपये प्रति यूनिट मिलती है. अगर 400 यूनिट बिजली भी खपत हुई तो करीब 5000 के करीब खर्च बनता है. यह रकम भी बचत कहलाएगी. सालाना यह रकम 60 हजार रुपये होती है. और, दस साल में यह बचत 6 लाख रुपये हो जाती है.
पानी पर प्रति परिवार दस साल में 1.20 लाख की बचत
दिल्ली में उपभोक्ताओं को पानी पर 602 करोड़ रुपये की सब्सिडी मिलती है. दिल्ली में 67.6 लाख परिवार रहते हैं. मतलब प्रति व्यक्ति 200 रुपये से ज्यादा की सब्सिडी दिल्लीवालों को मिलती है. सालाना 12 हजार रुपये की सब्सिडी हर परिवार को मिल रही है जो पांच साल में 60 हजार और 10 साल में 1 लाख 20 हजार हो जाती है. इसे दूसरे उदाहरण से भी समझें तो नतीजे एक जैसे मिलेंगे. दिल्ली के लोगों को मुफ्त पानी 20 किलो लीटर मिलता है. मध्यप्रदेश में इसके लिए 998.60 रुपये चुकाने पड़ते हैं. दिल्ली के लोगों के लिए यह मासिक बचत है जो साल में 11,983.20 रुपया होता है. दस साल में हर परिवार को 1,19,830 रुपये की बचत हुई. शिक्षा पर 10 साल में प्रति परिवार 4 लाख रुपये की बचत : दिल्ली में स्कूली बच्चों को फ्री यूनीफॉर्म, फ्री टेक्स्ट बुक और यहां तक कि फ्री ट्यूशन सरकार ने उपलब्ध कराए हैं. औसतन हर बच्चे पर सालाना 20 हजार रुपये का खर्च बचाया है जो मां-बाप को करना पड़ता. दो बच्चे वाले परिवार में यह बचत 40 हजार रुपये सालाना है. और, 10 साल में यह बचत 4 लाख रुपये तक हो जाती है. निजी स्कूलों मे पढ़ने वाले परिवार में बचत का आंकड़ा भी बढ़ा है क्योंकि दिल्ली सरकार ने निजी स्कूलों की मनमानी भी रोकी है.
दिल्लीवालों को स्वास्थ्य पर दस साल में 15 लाख रुपये प्रति परिवार बचता है
देश में अगर कोई बीमार होता है और उसे अस्पताल में भर्ती होना पड़ जाता है तो नेशनल हेल्थ प्रोफाइल की रिपोर्ट कहती है कि शहर के निजी अस्पताल में 38, 822 रुपये का खर्चा तो एक बार में ही आ जाता है. दिल्ली में ये खर्च बच जाता है. मुफ्त में अस्पताल में इलाज होता है. अगर एक परिवार में चार सदस्य हैं और कम से कम एक बार भी अस्पताल में भर्ती होना पड़ गया तो रकम मोटी हो जाती है. यह मोटी रकम 1 लाख 55 हजार 288 रुपये तक हो जाती है. यह बचत आम लोगों को राहत देती है. यही राहत केजरीवाल के दिल्ली मॉडल को प्रतिष्ठित भी करती है. दस साल में यह रकम 15 लाख से ज्यादा प्रति परिवार हो जाती है.
मोहल्ला क्लीनिक से दस में 1.20 लाख रुपये प्रति परिवार बचत
मोहल्ला क्लीनिक में मुफ्त दवाएं मिल जाती हैं, मुफ्त डॉक्टरी परामर्श मिल जाता है. छोटी-मोटी बीमारियों के लिए अस्पताल तक रुख नहीं करना पड़ता. इसी सुविधा के लिए दिल्ली से सटे गाजियाबाद, नोएडा में एक परिवार को महीने में औसतन हजार रुपये खर्च करने पड़ते हैं. तो, बच गए ना 12 हजार रुपये सालाना! 10 साल में यही रकम 1.20 लाख रुपये प्रति परिवार हो जाते हैं.
बुजुर्गों को बीमा राशि की सालाना 27 हजार की न्यूनतम बचत
संजीवनी योजना बुजुर्गों के लिए रक्षा कवच बनकर सामने आया है. बहुत साधारण वर्ग से आने वाले बुजुर्ग भी अगर 10 लाख की बीमा कराते हैं तो उनका प्रीमियत 2325 रुपये महीना और 27,901 रुपये सालाना बनता है. संजीवनी योजना मुफ्त में बुजुर्गों का इलाज कराकर यह बचत सुनिश्चित करता है.
तीर्थ यात्रा पर न्यूनतम 25 हजार से 80 हजार तक बचत
दिल्ली से पास की मथुरा-वृंदावन यात्रा हो या फिर रामेश्वरम का तीर्थाटन. यात्रा का पूरा पैकेज 25 हजार रुपये से लेकर 80 हजार रुपये तक होता है. यह बचत बुजुर्ग महसूस करते हैं. मगर, बचत से ज्यादा यह ऐसी यात्रा है जिसके लिए अपनी ओर से ये बुजुर्ग शायद ही पहल करते. यानी ये तीर्थ यात्रा असंभव थी अगर मुख्यमंत्री तीर्थ यात्रा जैसी पहल ना होती. इस पहल से बुजुर्गों को मुफ्त में तीर्थाटन का सुख मिला है.
मुफ्त बस यात्रा से महिलाओं को पांच साल में 2.16 लाख की बचत
मुफ्त बस यात्रा से बचत पर नजर डालें. एक महिला जो दिल्ली से महरौली मेट्रो से जाया करती थी अब मुफ्त में यात्रा करती हैं. उसके एक दिन में 120 रुपये बच जाते हैं. महीने में यह बचत 3600 रुपये की और साल में 43,200 रुपये हुई. पांच साल में यह 2,16,000 रुपये हो गयी.
हर बालिग महिला को अगले दस साल में मिलेंगे 2.1 लाख रुपये
महिलाओं को नकद देने की घोषणा ताजा है. इसमें हजार रुपये महीने हर महिला वोटर को दिए जाएंगे. चुनाव के बाद यह रकम 2100 रुपये हो जाएगी. सालाना 25 हजार से ज्यादा की रकम हर महिला के अकाउंट में आएंगे. अगले दस साल में यह रकम 2.5 लाख रुपये प्रति महिला होगी. अरविन्द केजरीवाल के रेवड़ी मॉडल ने जो कमाल किया है उसे आंकड़े कभी बयां नहीं कर पाएंगे. मगर, दिल्लीवाले इसे हमेशा महसूस करते रहेंगे. अरविन्द केजरीवाल की सियासत को लगातार अभूतपूर्व समर्थन की वजह के पीछे यही अहसास है. देखना यही है कि दिल्ली की आतिशी सरकार को इस अहसास का फायदा मिलता है या नहीं?
प्रेम कुमार, वरिष्ठ पत्रकार व टीवी एनालिसिस