कोटा जैसे कोचिंग संस्थानों पर सुप्रीम कोर्ट ने कही बड़ी बात, बच्चों की जान जाने के लिए माता-पिता ही हैं जिम्मेदार

उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि राजस्थान के कोटा जैसे कोचिंग हब में अपने बच्चों पर अत्यधिक दबाव डालने के लिए माता-पिता को दोषी ठहराया जाना चाहिए, न कि संस्थानों को. सुप्रीम कोर्ट निजी कोचिंग संस्थानों के रेगुलेशन की मांग वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी.

Antriksh Singh

बच्चों की कोचिंग, करियर का कम उम्र में आता दबाव, कंपटीशन में गला-काट प्रतियोगिता जैसी कई चीजें हैं जिसने बच्चों से उनका अल्हड़पन छीन लिया है. कई बच्चे भयंकर दबाव का शिकार होकर खुदकुशी जैसा घातक कदम भी उठा लेते हैं. राजस्थान के कोटा के संस्थानों का नाम इन मामलों पर कई बार गलत वजहों से चर्चाओं में रहा है.

 बच्चों पर अत्यधिक दबाव डालने के लिए माता-पिता दोषी

सवाल ये है कि बच्चों के साथ कुछ गलत होता है तो दोषी कौन है? उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि राजस्थान के कोटा जैसे प्रवेश कोचिंग हब में अपने बच्चों पर अत्यधिक दबाव डालने के लिए माता-पिता को दोषी ठहराया जाना चाहिए, न कि संस्थानों को, जहां अक्सर छात्र आत्महत्या करते हैं. शीर्ष अदालत निजी कोचिंग संस्थानों के रेगुलेशन की मांग वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी.

जस्टिस संजीव खन्ना और एसवीएन भट्टी की खंडपीठ ने सोमवार को कहा, "कोटा में कोचिंग संस्थानों को दोष नहीं दिया जा सकता है. यह माता-पिता हैं जो अत्यधिक कंपटीशन के माहौल में अपने बच्चों पर अत्यधिक दबाव डाल रहे हैं जिससे छात्रों की जान जा रही है."

आत्महत्याएं कोचिंग संस्थानों के कारण नहीं हो रही 

अदालत ने कहा कि "आत्महत्याएं कोचिंग संस्थानों के कारण नहीं हो रही हैं. वे इसलिए होती हैं क्योंकि बच्चे अपने माता-पिता की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाते हैं."

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उच्चतम न्यायालय ने ये भी कहा कि मृत्यु की संख्या कहीं अधिक हो सकती है. अदालत ने कहा, "परीक्षाएं बहुत कंपटीशन वाली हो गई हैं, और माता-पिता की बहुत अधिक अपेक्षाएं हैं. छात्र ऐसी परीक्षाओं में आधा अंक या एक अंक से बाहर हो रहे हैं और दबाव का सामना नहीं कर पा रहे हैं."

कोचिंग संस्थानों में जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं 

उन्होंने आगे कहा, "हालांकि हम में से ज्यादातर कोई भी कोचिंग इंस्टीट्यूट नहीं चाहते हैं, लेकिन स्कूलों की स्थिति को देखें. कितना कंपटीशन है और छात्रों के पास इन कोचिंग संस्थानों में जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है."

हालांकि, जनहित याचिका (पीआईएल) की सुनवाई कर रही पीठ ने कहा कि यह नीतिगत मुद्दा है और "हम राज्यों को नीति बनाने का निर्देश नहीं दे सकते."