Unique Punishment To Couple: चेन्नई की एक महिला ने आपसी विवाद के बाद बिना तलाक दिए दूसरे शख्स से शादी कर ली. दूसरे शख्स से शादी के बाद भी महिला अपने पहले पति से गुजारा भत्ता लेती रही. जब पहला पति गुजारा भत्ता देते-देते परेशान हो गया तो उसने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. मद्रास हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई के बाद आरोपी महिला और उसके दूसरे पति को दोषी ठहराया लेकिन सजा सिर्फ 'राइजिंग ऑफ द कोर्ट तक' सुनाई. इसका मतलब कि जितने समय तक मामले की कोर्ट में सुनवाई हुई थी, दंपत्ति को उतने ही दिन की सजा काटनी थी.
मद्रास हाई कोर्ट के इस फैसले से असंतुष्ट महिला के पहले पति ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. यहां सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने दंपत्ति को अनोखी सजा सुनाई. सुप्रीम कोर्ट ने दंपत्ति को सजा सुनाते हुए कहा कि चूंकि उनका 6 महीने का बच्चा है, ऐसे में उसके पालन-पोषण को ध्यान में रखते हुए दंपत्ति को 6-6 महीने की सजा सुनाई जाती है. पहले पति को 6 महीने की सजा काटनी होगी, ताकि बच्चा अपनी मां के साथ रह सके. इसके बाद जब पति की सजा खत्म होगी, पत्नी को दो हफ्तों के अंदर सरेंडर करना होगा और बाकि के 6 महीने की सजा काटनी होगी.
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि मद्रास हाई कोर्ट ने दंपत्ति को जो सजा दी थी, वो इस तरह के मामले में नाकाफी है, क्योंकि हिंदू समाज में दो शादी को ठीक नहीं माना जाता है. महिला ने पहले पति को तलाक दिए बिना दूसरे शख्स से शादी की थी. इसके अलावा, दूसरे पति के साथ रहते हुए भी पहले पति से गुजारा भत्ता ले रही थी, जो गलत है. ऐसे में दंपत्ति को 6-6 महीने जेल की सजा सुनाई जाती है.
कोर्ट ने कहा कि चूंकि दंपत्ति का छह महीने का बेटा है, इसलिए उन्हें सजा के मामले में एक विशेष छूट दी जा रही है. दंपत्ति में से पहले पति और फिर पत्नी को अलग-अलग 6-6 महीने की सजा काटनी होगी, ताकि छह महीने के बच्चे की अच्छे से परवरिश हो सके. दंपत्ति को ये सजा जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस संजय कुमार की बेंच ने सुनाई. बेंच ने दंपत्ति को 2 हजार रुपये जुर्माना भरने को भी कहा है.
पीड़ित महिला के पहले पति ने महिला के साथ-साथ उसके पैरेंट्स को भी आरोपी बनाया था. कहा था कि पैरेंट्स ने अपनी बेटी को अपराध करने में बढ़ावा दिया है. हालांकि जब मामला ट्रायल कोर्ट में पहुंचा, तो कोर्ट ने महिला के पैरेंट्स को बरी कर दिया. साथ ही आरोपी दंपत्ति को IPC की धारा 494 के तहत 1-1 साल सी सजा सुनाई.
फिर मामला सेशन कोर्ट पहुंचा, जहां कोर्ट ने दंपत्ति को बरी कर दिया. इससे असंतुष्ट पीड़ित ने मद्रास हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी.