समलैंगिक विवाह की कानूनी मान्यता पर सुप्रीम फैसले का इंतजार, तर्क से लेकर विरोध तक...जानें पूरी Details

Supreme Court Same Sex marriage: पुरुष से पुरुष और स्त्री से स्त्री की शादी को कानूनी मान्यता दी जाए या नहीं इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आना है.

Supreme Court on Legality of Same Sex Marriage: समलैंगिक संबंधों को पांच साल पहले अपराध के दायरे से बाहर कर चुका सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court ) मंगलवार को समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के मुद्दे पर अहम फैसला सुनाएगा. दुनिया के 34 देशों में समलैंगिक विवाह को कानूनी जामा पहनाया जा चुका है. सुप्रियो चक्रवर्ती समेत अन्य की ओर से दायर 20 याचिकाओं में दो पुरुषों या दो महिलाओं के बीच विवाह को कानूनी मान्यता देकर सभी अधिकार मुहैया कराने की मांग है. यानी संपत्ति, विरासत, गोद लेने की प्रक्रिया समेत हर हक विषमलैंगिक जोड़े जैसा हो. इसे लेकर केंद्र सरकार अदालत में कहा था कि समलैंगिक जोड़ों के विवाह को मान्यता दिए बगैर वो कुछ एक अधिकार देने पर विचार कर सकती है, एक कमेटी बनाने की बात भी कही गई थी.

SC ने सुरक्षित रखा फैसला

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ मंगलवपार को समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाएगी. संविधान पीठ ने 10 दिन की सुनवाई के बाद इसी साल 11 मई को इस मुद्दे पर फैसला सुरक्षित रख लिया था.

समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग

सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने वालों में समलैंगिक सुप्रियो चक्रवर्ती के अलावा उदरयराज आनंद, अभय डांग, पार्थ फिरोज मेहरोत्रा समेत अन्य शामिल हैं. सभी याचिकाओं में आमतौर पर समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग की गई है. इनमें कहा गया है कि विशेष विवाह अधिनियम में अंतर धार्मिक और अंतर जातीय विवाह को संरक्षण दिया गया है, लेकिन समलैंगिकों के साथ भेदभाव किया गया है.


 

सरकार की मंशा  

इसी मामले पर केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने संविधान पीठ से कहा था कि सरकार एक कमेटी बनाकर समलैंगिक जोड़ों के अधिकार के मुद्दे पर हल निकालेगी. ये कमेटी इन जोड़ों की शादी को कानूनी मान्यता देने के मुद्दे पर विचार नहीं करेगी. समस्याओं को लेकर याचिकाकर्ता यानी समलैंगिक विवाह की मांग करने वाले अपने सुझाव दे सकते हैं. अपने सुझावों में वो सरकार को बता सकते हैं कि क्या कदम उठाए जाएं. मेहता ने कहा था कि सरकार इस पर सकारात्मक है. मामले में केंद्र ने तब जवाब दिया था, जब सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि सरकार की मंशा इस मामले में क्या है.

सुप्रीम कोर्ट के सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि अगर अदालत इसमें प्रवेश करती है तो ये एक कानूनी मुद्दा बन जाएगा. सरकार बताए कि वो इस संबंध में क्या करने का इरादा रखती है और कैसे वो ऐसे लोगों की सुरक्षा और कल्याण के लिए काम कर रही है. समलैंगिकों को समाज से बहिष्कृत नहीं किया जा सकता है. इस पर केंद्र ने कहा था कि विशेष विवाह अधिनियम सिर्फ विषमलैंगिक यानी अपोजिट जेंडर वालों के लिए है. विभिन्न धर्मों में आस्था रखने वाले विषमलैंगिकों के विवाह के लिए इसे लाया गया था. सरकार बाध्य नहीं है कि हर निजी रिश्ते को मान्यता दे. याचिकाकर्ता चाहते हैं कि नए उद्देश्य के साथ नए कानून बना दिए जाएं, जिसकी अभी तक कल्पना नहीं की गई थी.


 

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केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने की तरफ से ये भी कहा गया था कि कुछ लोग ऐसे हैं जो किसी भी लिंग के तहत पहचाने जाने से इनकार करते हैं. उन्होंने कहा था, कानून उनकी पहचान किस तरह करेगा? पुरुष या महिला के तौर पर? एक कैटेगरी ऐसी है जो कहती है कि लिंग मूड स्विंग (मन बदलने) पर निर्भर करता है. ऐसी स्थिति में उनका लिंग क्या होगा, कोई नहीं जानता है.  सवाल ये है कि इस मामले में ये कौन तय करेगा कि एक वैध शादी क्या और किसके बीच है. मेहता ने दलील दी थी कि क्या ये मामला पहले संसद या राज्यों की विधानसभाओं में नहीं जाना चाहिए.

 

34 देश दे चुके हैं मान्यता

वहीं याचिकाकर्ताओं की तरफ से कहा गया था कि दुनिया के 34 देश समलैंगिक विवाह को मान्यता दे चुके हैं. इनमें G20 के 12 देश भी शामिल हैं. इस मामले में हमें पीछे नहीं रहना चाहिए. याचिकाकर्ता ने कहा कि LGBTQ+ के अधिकारों को लेकर संसद ने 5 साल में कोई सकारात्मक जवाब नहीं दिया.

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