घरेलू हिंसा के मामले में घरवालों को घसीटना गलत, सुप्रीम कोर्ट ने दिखाई सख्ती
भारत का कानून किसी भी तरीके से महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार को बढ़ावा नहीं देता है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में यह भी साफ किया है कि ऐसे मामले में गुस्से में आकर आरोपी के परिवार को फंसाना पूरी तरीके से गलत है.
Supreme Court on Domestic Violence: भारत का कानून महिलाओं के खिलाफ किसी भी तरीके के अत्याचार को बढ़ावा नहीं देता है. हालांकि इस तरह के मामले को लेकर देश कानून काफी सख्त है. लेकिन अगर इस कानून का गलत इस्तेमाल होने लगे तो लोगों की चिंता बढ़ सकती है. ऐसे मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है.
सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को एक मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि किसी आरोपी के परिवार के सदस्यों को आपराधिक मामले में बिना किसी विशिष्ट आरोप के व्यापक तरीके से फंसाया नहीं जा सकता. न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि वैवाहिक विवादों में भावनाएं बहुत अधिक होती हैं और परिवार के अन्य सदस्यों को फंसाने की प्रवृत्ति हो सकती है. जो शिकायतकर्ता के बचाव में नहीं आते या उत्पीड़न की किसी कथित घटना के मूकदर्शक बने रहते हैं.
परिवार को घसीटने की तैयारी
अदालत ने कहा कि घरेलू हिंसा से संबंधित आपराधिक मामलों में जहां तक संभव हो परिवार के प्रत्येक सदस्य के खिलाफ शिकायतें और आरोप विशिष्ट होने चाहिए. क्योंकि अन्यथा यह परिवार के सभी सदस्यों को अंधाधुंध तरीके से घसीटकर कठोर आपराधिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करने के समान हो सकता है. यह टिप्पणियां एक फैसले में परिलक्षित होती हैं. जिसमें एक महिला ने अपने ससुराल वालों के अलावा जिन परिवार के सदस्यों के खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला दर्ज किया था. अदालत की ओर से इस मामले पर कार्रवाई करते हुए उनके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया गया.
गुस्से में आरोप लगाना गलत
तेलंगाना उच्च न्यायालय ने मुख्य आरोपी की मौसी और चचेरे भाई के खिलाफ कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया था. शीर्ष अदालत ने कहा कि परिवार के सदस्यों के खिलाफ विशिष्ट कृत्यों के बिना इसे आपराधिक कृत्य नहीं माना जा सकता. अदालत का कहना है कि जब लोगों में गुस्सा बढ़ता है और रिश्ते खराब हो जाते हैं. जिसके बाद वो आरोपों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की प्रवृत्ति भी होती है. जिसका मतलब यह नहीं है कि ऐसे घरेलू विवादों को अपराध का रंग दिया जाना चाहिए.
कानून का दुरुपयोग
पीठ ने कहा कि ऐसी स्थितियां हो सकती हैं जहां परिवार के कुछ सदस्य या रिश्तेदार पीड़ित के साथ की गई हिंसा या उत्पीड़न को नजरअंदाज कर सकते हैं और पीड़ित की मदद नहीं कर सकते हैं. जिसका मतलब यह नहीं है कि वे भी घरेलू हिंसा के अपराधी हैं. जब तक कि परिस्थितियां स्पष्ट रूप से उनकी संलिप्तता और उकसावे का संकेत न दें. शीर्ष अदालत ने कहा कि विशिष्ट आरोप लगाए बिना ऐसे सभी रिश्तेदारों को फंसाना और उन्हें अपमानजनक कृत्य के लिए जिम्मेदार ठहराना और प्रथम दृष्टया सबूत के बिना उनके खिलाफ कार्यवाही करना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा.