सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. यह याचिका इंटरसेक्स बच्चों के लिंग निर्धारण समेत उनके अधिकारों को लेकर दायर की गई है. याचिका में कहा गया है कि जन्म के समय जिन बच्चों का लिंग स्पष्ट नहीं होता है कई बार उनकी सर्जरी करवाई जाती है. मांग की गई है कि इस पर रोक लगाई जाए और ऐसा करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए.
गोपी शंकर एम की इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने केंद्र सरकार को नोटिस भेजा है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अडिशनल सोलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से भी मदद मांगी है. इंटरसेक्स बच्चों के हितों की रक्षा के लिए गोपी शंकर एम ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की है.
बच्चों का लिंग निर्धारण जन्म के समय उनके जननांगों को देखकर किया जाता था. स्पष्ट रूप से लिंग (Penis) दिखने पर नवजात को पुरुष और योनि (Vagina) दिखने पर महिला की श्रेणी में रखा जाता है. कुछ बच्चों में जन्म के समय ये जननांग स्पष्ट नहीं होते हैं. ऐसे में उन्हें पुरुष या महिला किसी भी श्रेणी में नहीं रखा जा सकता. इन बच्चों को ही इंटरसेक्स कहा जाता है.
गोपी शंकर एम ने अपनी याचिका में कहा है कि अक्सर ऐसे इंटरसेक्स बच्चों को लड़का या लड़की बनाने के लिए अवैध रूप से सेक्स चेंज सर्जरी करा दी जाती है. उन्होंने अपनी याचिका में मांग की है कि ऐसी सेक्स चेंज सर्जरी को दंडनीय अपराध माना जाए और इसके लिए सजा दी जाए. याचिका में यह भी कहा गया है कि इस तरह से इंटरसेक्स लोगों को भारत में वोट देने का अधिकार भी नहीं है.