चुनाव प्रचार के दौरान मुफ्तखोरी के वादों पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, केंद्र और चुनाव आयोग से मांगा जवाब

याचिका में कहा गया कि चुनाव से पहले राजनीतिक दलों द्वारा जनता से लोकलुभावन वादे करना लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए खतरा पैदा करता है और संविधान की भावना को कमजोर करता है.

social media
India Daily Live

Delhi News: चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक पार्टियों द्वारा मुफ्त की चीजें बांटने का वादा करने के खिलाफ दायर की गई याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को चुनाव आयोग और केंद्र से जवाब मांगा. बेंगलुरु के रहने वाले शशांक जे श्रीधर ने राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव प्रचार के दौरान मुफ्त चीजें बांटने का वादा करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिस पर मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़, जे बी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की बेंच ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.

मुफ्तखोरी से राजनीतिक दलों को रोका जाए

एडवोकेट श्रीनिवासन ने याचिका दायर करते हुए मांग की कि चुनाव आयोग चुनाव से पहले राजनीतिक दलों को मुफ्त की चीजें बांटने से रोके. याचिका में कहा गया है कि मुफ्त चीजों के अनियमित वादे सरकारी खजाने पर वित्तीय बोझ डालते हैं और यह सुनिश्चित करने के लिए भी कोई तंत्र नहीं है कि जीतने के बाद वादा करने वाली वादे को निभाएगी ही. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में पहले भी इसी तरह की याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं.

सुनवाई के लिए राजी हुआ सुप्रीम कोर्ट

वकील और जनहित याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया की तत्काल सुनवाई की मांग करने के बाद सुप्रीम कोर्ट मुफ्त की चीजों का वादा करने के खिलाफ दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई करने के लिए सहमत हो गया.

चुनावी फायदा लेने के लिए किए जाते हैं लोकलुभावन वादे

उपाध्याय ने मांग की कि चुनावी फायदा लेने के लिए किए जाने वाले लोकलुभावन वादों पर पूरी तरह से रोक लगाई जाए, उन्होंने कहा कि इस तरह के वादे संविधान का उल्लंघन करते हैं. उन्होंने चुनाव आयोग से भी इस तरह की प्रक्रियाओं के खिलाफ कड़े नियम लागू करने की अपील की.

मुफ्तखोरी मतदाताओं को गलत तरीके से प्रभावित करती

याचिका में कहा गया है कि चुनाव से पहले अतार्किक मुफ्तखोरी मतदाताओं को गलत तरीके से प्रभावित करती है, इससे चुनाव की साफ-स्वच्छ प्रक्रिया में बाधा पहुंचती है और यह चुनावी प्रक्रिया की अखंडता से भी समझौता करता है.

यह लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए खतरा

याचिका में आगे कहा गया कि चुनाव से पहले राजनीतिक दलों द्वारा जनता से लोकलुभावन वादे करना लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए खतरा पैदा करता है और संविधान की भावना को कमजोर करता है. यह किसी को घूस देने के समान है. याचिका आगे कहती है कि राजनीतिक दल सत्ता में वापसी के लिए मुफ्तखोरी का वादा करते हैं और फिर सरकारी खजाने को खाली करते हैं जो कि लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है.