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India Daily

‘अरे-कटिका’ समुदाय को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने संबंधी याचिका पर सुनवाई, सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज

यह पहली बार नहीं है जब किसी समुदाय ने सुप्रीम कोर्ट में अनुसूचित जाति का दर्जा पाने के लिए याचिका दायर की हो. इससे पहले भी कई समुदायों ने इसी तरह की मांगों को लेकर अदालत का रुख किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हमेशा यह कहते हुए याचिकाएं खारिज की हैं कि यह कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में आता है.  

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Edited By: Reepu Kumari
Supreme Court rejects the petition regarding inclusion of 'Are-Katika' community in the list of Sch
Courtesy: Pinterest

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को ‘अरे-कटिका’ समुदाय को देशभर के सभी राज्यों में अनुसूचित जाति (SC) की सूची में शामिल करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया.

अदालत ने स्पष्ट किया कि यह मामला पहले ही कई फैसलों के तहत निपट चुका है और न्यायपालिका इसमें कोई बदलाव नहीं कर सकती.

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट का रुख 

न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने याचिकाकर्ता के अधिवक्ता से कहा, "ऐसी याचिका कैसे स्वीकार की जा सकती है? यह मुद्दा सर्वोच्च न्यायालय के कई निर्णयों से समाप्त हो चुका है... हम इसमें कोई बदलाव नहीं कर सकते. हम इसमें अल्पविराम भी नहीं जोड़ सकते.'

सुप्रीम कोर्ट की यह सख्त टिप्पणी बताती है कि अनुसूचित जाति की सूची में किसी भी समुदाय को जोड़ने या हटाने का अधिकार न्यायपालिका के पास नहीं है. यह कार्य पूरी तरह से कार्यपालिका और विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है.

अनुसूचित जाति की सूची में संशोधन का अधिकार किसके पास?  

भारतीय संविधान के तहत अनुसूचित जाति और जनजाति की सूची में किसी भी नए समुदाय को शामिल करने या हटाने का अधिकार केंद्र सरकार और संसद के पास है. यह प्रक्रिया सामाजिक और ऐतिहासिक कारकों के गहन अध्ययन और अनुसंधान के आधार पर की जाती है.

सरकार विभिन्न आयोगों और विशेषज्ञ समितियों की रिपोर्ट के आधार पर अनुसूचित जाति की सूची में बदलाव करती है. सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी अपने कई फैसलों में कहा है कि न्यायपालिका को इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है.

पहले भी हो चुकी हैं ऐसी याचिकाएं  

यह पहली बार नहीं है जब किसी समुदाय ने सुप्रीम कोर्ट में अनुसूचित जाति का दर्जा पाने के लिए याचिका दायर की हो. इससे पहले भी कई समुदायों ने इसी तरह की मांगों को लेकर अदालत का रुख किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हमेशा यह कहते हुए याचिकाएं खारिज की हैं कि यह कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में आता है.  

क्या है सरकार की प्रक्रिया?  

सरकार किसी भी समुदाय को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने से पहले व्यापक अध्ययन और ऐतिहासिक आंकड़ों का विश्लेषण करती है. सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा गठित समितियां इसकी सिफारिश करती हैं, और अंततः संसद इसे मंजूरी देती है. 

अगर कोई समुदाय अनुसूचित जाति का दर्जा चाहता है, तो उसे सरकार के सामने अपनी मांग रखनी होगी. लेकिन सीधे सुप्रीम कोर्ट जाने से इस प्रकार के मामलों में कोई राहत नहीं मिलती.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का प्रभाव 

इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि अनुसूचित जाति की सूची में बदलाव का अधिकार पूरी तरह से केंद्र सरकार और संसद के पास है. अदालत ने इस संबंध में किसी भी तरह के हस्तक्षेप से इनकार कर दिया है.

इस फैसले से उन समुदायों को एक साफ संदेश मिल सकता है जो न्यायपालिका के माध्यम से अनुसूचित जाति का दर्जा हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं.