सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया, जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसमें कहा गया था कि "नाबालिग के स्तन दबाना, पायजामे का नाड़ा तोड़ना और उसे पुलिया के नीचे खींचना बलात्कार का अपराध नहीं है." यह मामला देश भर में चर्चा का विषय बना हुआ है, क्योंकि यह महिलाओं और नाबालिगों की सुरक्षा से जुड़े संवेदनशील मुद्दों को उजागर करता है.
कोर्ट की टिप्पणी और याचिका का आधार
इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर विवाद
याचिका में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में इस्तेमाल कुछ शब्दों को हटाने या संशोधित करने की मांग की गई थी. हाईकोर्ट के इस आदेश ने कानूनी और सामाजिक हलकों में बहस छेड़ दी थी, क्योंकि कई लोगों का मानना है कि यह फैसला नाबालिगों के खिलाफ अपराधों को गंभीरता से न लेने का संदेश देता है. याचिकाकर्ता का तर्क था कि ऐसे मामलों में सख्त रुख अपनाया जाना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट का रुख
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से मना कर दिया, जिससे अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या इस तरह के फैसलों पर पुनर्विचार की जरूरत है. यह निर्णय न केवल कानूनी दृष्टिकोण से बल्कि सामाजिक न्याय के नजरिए से भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है.