SC on Digital Monitoring: 'अगर दोबारा किया तो 5 लाख का जुर्माना..' सासंदों की डिजिटल निगरानी करने वाली याचिका पर क्यों भड़का सुप्रीम कोर्ट
SC on Digital Monitoring of MP-MLAs: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें केंद्र सरकार को यह निर्देश देने की मांग की गई थी कि वह बेहतर शासन के लिए सांसदों और विधायकों की चौबीस घंटे डिजिटल निगरानी करे.
SC on Digital Monitoring of MP-MLAs: भारत की शीर्ष अदालत, सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया, जिसमें केंद्र सरकार को यह निर्देश देने की मांग की गई थी कि भ्रष्टाचार रोकने और बेहतर शासन सुनिश्चित करने के लिए वह सभी सांसदों और विधायकों की चौबीस घंटे डिजिटल निगरानी करे. अदालत ने अपने फैसले में साफ किया कि निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
सांसद और विधायकों के शरीर पर नहीं लगा सकते चिप
चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन जजों वाली पीठ ने मामले की सुनवाई करते समय दिल्ली के रहने वाले याचिकाकर्ता सुरिंदर नाथ कुंद्रा से यह भी पूछा कि क्या उन्हें लगता है कि सांसदों और विधायकों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए उनके शरीर में चिप लगाई जानी चाहिए. इस सवाल के जरिए सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के प्रस्ताव के अव्यवहारिक रवैये और मौलिक अधिकारों के उल्लंघनकारी नेचर को भी उजागर कर दिया.
दोबारा किया तो लग जाएगा 5 लाख का जुर्माना
इसके अलावा, चीफ जस्टिस ने कुंद्रा को चेतावनी दी कि अगर वह इस तरह के बेकार मुद्दों को लेकर कोर्ट का समय बर्बाद करते हैं और अदालत उनके तर्कों से सहमत नहीं होती है, तो उन पर 5 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया जा सकता है. उन्होंने यह भी साफ किया कि अदालत का समय जनहित के मामलों को सुनने के लिए है, न कि व्यक्तिगत शिकायतों को दूर करने के लिए.
इस वजह से सुप्रीम कोर्ट रद्द की याचिका
गौरतलब है कि कुंद्रा ने अपनी याचिका में तर्क दिया था कि सांसद और विधायक, जिन्हें जनता द्वारा चुना जाता है और उन्हें वेतन दिया जाता है, अक्सर "शासक" की तरह व्यवहार करते हैं. हालांकि, अदालत ने इस दलील को खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि सभी निर्वाचित प्रतिनिधियों को एक समान रूप से कैटेगराज्ड नहीं किया जा सकता है.
अदालत ने यह भी जोर दिया कि किसी भी लोकतंत्र में, कानून बनाने का अधिकार सीधे जनता के पास नहीं होता, बल्कि उनके द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के पास होता है. उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा कि अगर जनता को यह अधिकार मिल जाता है, तो वे भविष्य में न्यायिक प्रणाली को भी दरकिनार कर सकते हैं और अपराध के लिए खुद ही सजा तय कर सकते हैं.
अंत में, सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में निजता के अधिकार, कानूनी प्रक्रिया के महत्व और न्यायिक प्रणाली की भूमिका को बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर देते हुए सर्वसम्मति से कुंद्रा की याचिका को खारिज कर दिया. साथ ही, अदालत ने याचिकाकर्ता को भविष्य में इस तरह की याचिका दायर करने से भी सावधान किया.
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