देश के उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को 33 साल पुराने एक आपराधिक मामले को खारिज कर दिया.
अदालत ने कहा कि जब दोनों पक्षों ने आपसी सहमति से विवाद निपटा लिया है, तो मुकदमे की सुनवाई जारी रखना व्यर्थ होगा.
यह मामला 1990 के दशक से लंबित था और हत्या के प्रयास से जुड़ा हुआ था. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने जनवरी 2023 में इस मामले में फैसला सुनाया था, जिसमें कहा गया था कि हत्या के प्रयास जैसे गंभीर अपराधों में समझौता नहीं किया जा सकता.
न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई की. शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि यदि दोनों पक्ष आपसी सहमति से समझौते पर पहुंच चुके हैं, तो मुकदमे को आगे बढ़ाने का कोई औचित्य नहीं रह जाता.
भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत कुछ अपराधों में समझौता किया जा सकता है, जबकि कुछ गंभीर अपराधों में इसकी अनुमति नहीं होती. हत्या के प्रयास जैसे मामलों को गंभीर अपराधों की श्रेणी में रखा गया है, जिनमें आमतौर पर समझौते की गुंजाइश नहीं होती. लेकिन अदालत परिस्थितियों के आधार पर अपवाद बना सकती है.
यह फैसला न्यायपालिका में लंबित मामलों को जल्द निपटाने की आवश्यकता को दर्शाता है. हाल के वर्षों में अदालतों पर बढ़ते मामलों के दबाव के बीच, इस तरह के निर्णय विवादों को शीघ्र सुलझाने में मददगार साबित हो सकते हैं. हालांकि, इससे यह भी सवाल उठता है कि क्या सभी गंभीर अपराधों में समझौते की अनुमति दी जानी चाहिए.
उच्चतम न्यायालय का यह निर्णय कानूनी प्रणाली में नए आयाम जोड़ सकता है. यह मामला न्यायिक व्यवस्था में सुधार और लचीलापन लाने की दिशा में एक अहम कदम हो सकता है.