सुप्रीम कोर्ट ने साल 1991 के पूजा स्थल अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र सरकार से चार हफ्तों के भीतर जवाब देने को कहा है. कोर्ट ने एक्ट की कुछ धाराओं को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं पर गुरुवार को सुनवाई शुरू नहीं की और कहा कि अगली सुनवाई होने तक इस मामले पर देश भर से कोई भी नई याचिका स्वीकार नहीं की जाएगी.
चार हफ्ते में जवाब दे केंद्र
Supreme Court asks Centre to file affidavit in four weeks on pleas challenging Places of Worship Act.
— ANI (@ANI) December 12, 2024
कोर्ट ने कहा कि अगले आदेश तक देश में पूजा स्थलों के खिलाफ कोई और मुकदमा दर्ज नहीं किया जा सकता है. चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की विशेष पीठ ने यह आदेश पारित किया.
#WATCH | Delhi: On Supreme Court, hearing pleas challenging #PlacesofWorshipAct-1991 today, Advocate Ashwini Upadhyay says, "...This a place of worship act not a place of prayer act. The temple is known as a place of worship whereas the mosque is a place of prayer. The law talks… pic.twitter.com/1N50BoWmwo
— ANI (@ANI) December 12, 2024
क्या है पूजा स्थल कानून (Places of Worship Act)
यह कानून 15 अगस्त, 1947 को पूजा स्थलों के स्वरूप को बदलने या उन्हें वापस पाने के लिए मुकदमा दायर करने से रोकता है. कानून कहता है कि 15 अगस्त 1947 के बाद देश के किसी भी पूजा स्थल धार्मिक स्वरूप में किसी प्रकार का बदलाव नहीं किया जा सकता है. यह कानून किसी भी धार्मिक स्थल पर फिर से दावा करने या उसके स्वरूप में बदलाव करने के लिए वाद दायर करने पर भी रोक लगाता है.
कानून को रद्द करने की मांग क्यों
हालांकि कुछ हिंदू पक्षों ने इस एक्ट में बदलाव करने की मांग की है. इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं लंबित हैं जिनमें से एक याचिका अश्विनी उपाध्याय ने भी दायर की है. उन्होंने इस एक्ट की धारा दो, तीन और चार को रद्द करने का अनुरोध किया है.
याचिका में कानून की इन धाराओं को रद्द करने को लेकर कई तर्क दिए गए हैं जिनमें से एक तर्क यह भी है कि यह कानून किसी व्यक्ति या धार्मिक समूह के पूजा स्थल पर पुन: दावा करने के न्यायिक समाधान के अधिकार को छीन लेते हैं. हालांकि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और महाराष्ट्र के विधायक जितेंद्र सतीश अव्हाड ने इस एक्ट को चुनौती देने वाली याचिकाओं के खिलाफ याचिका दायर कर कहा है कि यह कानून देश की सार्वजनिक व्यवस्था, बंधुत्व एकता और धर्मनिरपेक्षता की रक्षा करता है.