अरविंद केजरीवाल को झटके पर झटका, हिरासत बढ़ी लेकिन क्यों नहीं हो रही रिहाई? वकीलों से जानिए
Delhi excise policy case: अरविंद केजरीवाल के खिलाफ ED ने जो दलीलें दी हैं, वे बेहद गंभीर हैं. जांच एजेंसी उन्हें दिल्ली आबकारी नीति केस का मुख्य साजिशकर्ता बता चुकी है. कब वे रिहा होंगे, आइए कानून के जानकारों से ही जान लेते हैं.
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की याचिका पर आज (सोमवार) को अहम सुनवाई हुई. अरविंद केजरीवाल के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट से अपील की है कि केस की सुनवाई जल्द हो. कोर्ट ने 29 अप्रैल, सुनवाई की अगली तारीख तय की है. कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल की याचिका पर प्रवर्तन निदेशालय (ED) को नोटिस दिया है और गिरफ्तारी पर जांच एजेंसी से जवाब मांगा है. वहीं राउज एवेन्यू कोर्ट ने उनकी हिरासत 23 अप्रैल तक बढ़ा दी है.
सीएम केजरीवाल ने सुप्रीम कोर्ट में ईडी की गिफ्तारी और दिल्ली आबकारी नीति केस में अपनी रिमांड को लेकर सवाल उठाए हैं. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से राहत मांगा है. जस्टिस संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की बेंच इस केस की सुनवाई करने वाली है. आखिर अरविंद केजरीवाल को राहत क्यों नहीं मिल रही है, आइए जानते हैं.
सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड विशाल अरुण मिश्रा से जब हमने सवाल किया कि क्या अरविंद केजरीवाल को जल्द जमानत मिलेगी, क्या सुप्रीम कोर्ट ईडी को उन्हें रिहा करने का आदेश दे सकता है? सवाल के जवाब में उन्हें सीधे कहा नहीं.
एडवोकेट विशाल अरुण मिश्रा ने इसकी कुछ वजहें भी बताई हैं. उन्होंने कहा, 'अरविंद केजरीवाल की कस्टडी मांगते हुए ईडी ने आरोप लगाए हैं कि अरविंद केजरीवाल दिल्ली आबकारी नीति 2022 बनाने में शामिल रहे हैं. वे इस केस के मुख्य साजिशकर्ता हैं. इस केस में हाई कोर्ट ने भी राहत, अरविंद केजीवाल को नहीं दी थी क्योंकि उनके खिलाफ ईडी के पास मजबूद दलीलें हैं. कोर्ट में यह बात सामने आई थी कि विजय नायर को केजरीवाल और AAP की ओर से 100 करोड़ रुपये की रिश्वत मिली. रिकॉर्ड बताते हैं कि आम आदमी पार्टी ने करोड़ों रुपये का इस्तेमाल किया है.'
एडवोकेट विशाल अरुण मिश्र बताते हैं कि अरविंद केजरीवाल पर मामला प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत चल रहा है, जिसमें वैसे भी आसानी से जमानत नहीं मिलती. इस एक्ट में कोई आरोपी बनता है तो उसका रिहा होना मुश्किल हो जाता है. साल 2002 में लागू हुए इस एक्ट के प्रावधान ही ऐसे बनाए गए हैं. इस एक्ट की धारा 45 अरविंद केजरीवाल की रिहाई की सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है.
सुप्रीम कोर्ट में ही एडवोकेट सौरभ शर्मा बताते हैं कि PMLA एक्ट की धारा 45 कहती है सभी मामले, पीएमएलए से जो जुड़े हैं, वे संज्ञेय अपराध हैं गैर जमानतीय हैं. इस केस में अग्रिम जमानत के भी प्रावधान नहीं हैं. ऐसे में आरोपी पर ही ये जिम्मेदारी होती है कि वह कोर्ट में खुद को बेगुनाह साबित करे. इस केस में गवाहों के बयान और ईडी के कथित सबूत ऐसे हैं, जिन्हें एकदम से कोर्ट नकार नहीं पा रहा है.
एडवोकेट विशाल अरुण मिश्रा ने कहा कि मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन भी पीएमएलए केस में ही जेल में हैं. उनकी गिरफ्तारी को महीनों बीत गए हैं, जमानत नहीं मिली है. ऐसे में अरविंद केजरीवाल को इतनी जल्दी जमानत मिलने से रही. संजय सिंह इसलिए रिहा हुए हैं क्योंकि ईडी ने खुद उनकी जमानत याचिका का विरोध नहीं किया है. अगर ईडी कोर्ट में विरोध करता है तो केजरीवाल की रिहाई नहीं हो पाएगी. यह तय है कि ईडी, इतनी जल्दी अरविंद केजरीवाल को छोड़ने वाला नहीं है.
एडवोकेट पवन कुमार बताते हैं कि साल 2018 में ही पीएमएलए एक्ट में केंद्र सरकार ने संशोधन किया था. धारा 45 में दो शर्तें ऐसी जोड़ दी गईं, जिनकी वजह से मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े मामलों में जमानत की राह और मुश्किल हो गई.
क्या हैं वे शर्तें जिनकी वजह से अरविंद केजरीवाल को नहीं मिलेगी जमानत?
विशाल अरुण मिश्रा बताते हैं किसी को पीएमएल की धारा 45 के तहत मनी लॉन्ड्रिंग केस में तभी जमानत मिल सकती है जब
- कोर्ट में आरोपी पक्ष यह साबित कर ले जाए कि आरोपी दोषी नहीं है.
- जमानत के दौरान आरोपी कोई और अपराध नहीं करेगा.
एडवोकेट सौरभ शर्मा बताते हैं कि दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट में संशोधन को सही ठहराते हुए साल 2018 में कहा था कि मनी लॉन्ड्रिंग एक जघन्य अपराध है जो देश के सामाजिक और आर्थिक ताने-बाने को प्रभावित करता है. एडवोकेट शुभम शर्मा बताते हैं कि पीएमएलए के तहत जमानत की प्रक्रिया इसलिए कठिन बनाई गई है कि जांच एजेंसी को, सही छानबीन करने के लिए पूरा समय मिल जाए. अगर जमानत आसान होगी तो आरोपी साक्ष्यों को प्रभावित कर सकेंगे. फिर जांच एजेंसी के लिए आरोप को साबित कर पाना और जटिल हो जाएगा.
केजरीवाल को इस वजह से नहीं मिली थी हाई कोर्ट से राहत
एडवोकेट विशाल अरुण मिश्रा बताते हैं कि अरविंद केजरीवाल को दिल्ली हाई कोर्ट से राहत इसलिए नहीं मिली थी क्योंकि उनके खिलाफ आरोप बेहद गंभीर थे. दिल्ली स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी के अधिवक्ता विशाल अरुण मिश्रा ने कहा कि हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट अरविंद केजरीवाल एक बार जा चुके हैं लेकिन उनकी याजिका 9 अप्रैल को खारिज हो गई थी. कोर्ट से उन्होंने कहा था कि उनके खिलाफ एक्शन राजनीतिक प्रतिशोध की वजह से लिया गया है लेकिन जमानत देने का यह कोई कारण नहीं था. कोर्ट ने उन पर लगे आरोपों की गंभीरता की वजह से उन्हें राहत नहीं दी.
एडवोकेट सौरभ शर्मा ने कहा, 'दिल्ली हाई कोर्ट के पास ईडी की कस्टडी को सही ठहारने के लिए पर्याप्त आरोप थे. उन्हें ईडी से 8 बार समन मिल चुका था. समन को नजर अंदाज करने का मतलब होता है कि आपके पास जांच एजेंसी से आरोपों की गंभीरता की वजह से बचना चाह रहे हैं और सवालों का सामना नहीं कर रहे हैं.' जब नौंवीं बार तलबी के बाद भी वे नहीं पहुंचे, तब उनके खिलाफ एक्शन लिया गया. जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा की सिंगल जज बेंच ने 103 पेज के फैसले में कहा कि मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी का समय चुनने के लिए केंद्रीय एजेंसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है.
कब गिरफ्तार हुए थे अरविंद केजरीवाल?
अरविंद केजरीवाल पर दिल्ली आबकारी केस में मनी लॉन्ड्रिंग के गंभीर आरोप हैं. उन्हें 21 मार्च को ईडी ने गिरफ्तार किया था. उन्हें 15 अप्रैल तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था. इस केस में गिरफ्तार होने वाले वे पहले मुख्यमंत्री हैं. उन्हें तिहाड़ जेल में रखा गया है. उनके डिप्टी रहे मनीष सिसोदिया, फरवरी से ही जेल में हैं.
क्या है वह केस जिसमें जेल गई AAP की टॉप लीडरशिप?
दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने साल 2021-22 के लिए दिल्ली आबकारी नीति तैयार की थी. इस केस में भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप लगे तो इसे सरकार ने वापस ले लिया, राज्यपाल ने खारिज कर दिया. उन्होंने CBI जांच की मांग कर दी थी. CBI और ईडी के मुताबिक AAP नेताओं ने राजनेताओं और शराब व्यवसायियों के एक ग्रुप से लाइसेंस देने के बदले में 100 करोड़ रुपये के घूस लिए. ईडी ने कहा है कि इस केस में साउथ लॉबी के साथ अरविंद केजरीवाल सक्रिय रूप से शामिल थे. अरविंद केजरीवाल ने उत्पाद शुल्क नीति तैयार कराई, जिसके बदले में रिश्वत मिला. जिससे मिला पैसा गोवा चुनावों में खर्च हुआ.