मिडल क्लास का समर्थन, सिख आबादी से दोबारा कनेक्ट, जब कांग्रेस के संकट मोचक बनकर उभरे मनमोहन सिंह
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह कई मौकों पर कांग्रेस के लिए संकट मोचक बने. शहरी और मिडल क्लास को पार्टी के साथ कनेक्ट करना हो या फिर सिख समुदाय में फिर से कांग्रेस के लिए सम्मान जगाना हो. 2004 में प्रधानमंत्री बनने के बाद वह सिख समुदाय के लिए एक सशक्त चेहरा बने. विशेष रूप से 11 अगस्त 2005 को संसद में 1984 के दंगों के लिए माफी मांगने का उनका कदम एक ऐतिहासिक और साहसिक निर्णय था.
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के राजनीतिक योगदान को अक्सर उनके आर्थिक सुधारों और वित्त मंत्री के रूप में किए गए फैसलों के संदर्भ में ही अधिक चर्चा मिली है. विशेषकर 1991 में वित्त मंत्री के रूप में उनके द्वारा लागू किए गए आर्थिक उदारीकरण के फैसले और उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद के कार्यकाल के दौरान लिए गए नीतिगत निर्णयों के कारण उन्हें एक कुशल और दूरदर्शी नेता के रूप में देखा जाता है. हालांकि, इन सबके बीच एक और पहलू है जिस पर कम ध्यान दिया गया है. उनका कांग्रेस पार्टी के लिए एक कुशल राजनेता के रूप में योगदान. डॉ. मनमोहन सिंह की नीतियां और उनके नेतृत्व में कांग्रेस का पुनर्निर्माण एक ऐतिहासिक पहलू है जो पार्टी के भविष्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित हुआ.
शहरी और मिडल क्लास वोटों का समर्थन
1990 के दशक के अंत तक कांग्रेस की राजनीतिक स्थिति काफी कमजोर हो चुकी थी.भारतीय जनता पार्टी (BJP) की बढ़ती ताकत, विशेष रूप से अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बीजेपी ने कांग्रेस के लिए शहरी और मिडल क्लास वोटरों के बीच एक गंभीर चुनौती उत्पन्न की थी. इन तबकों के बीच कांग्रेस का जनाधार घटता चला गया. 2004 में जब कांग्रेस ने अप्रत्याशित रूप से चुनाव जीता और डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने अपनी शालीनता और दूरदर्शिता से इस वोट बैंक को फिर से कांग्रेस के पक्ष में मोड़ने का काम किया. मनमोहन सिंह का व्यक्तित्व उनकी सरलता और ईमादारी ने शहरी वर्ग के बीच एक नया विश्वास पैदा किया.
2009 में कांग्रेस की लगातार दूसरी जीत के पीछे इन ही वर्गों का समर्थन था. चुनावी आंकड़ों ने यह साबित किया कि 2009 के चुनाव में कांग्रेस को सबसे अधिक शहरी और मिडल क्लास वोट मिले थे. इस तरह से मनमोहन सिंह एक ऐसे नेता के रूप में उभरे, जिन्होंने शहरी और मिडल क्लास के बीच कांग्रेस का जनाधार वापस स्थापित किया.
सिख समुदाय के बीच कांग्रेस का सम्मान
1984 के सिख विरोधी दंगों के बाद कांग्रेस का सिख समुदाय से संबंधों में खटास आई थी. इस घटना में कांग्रेस की भूमिका पर लगातार सवाल उठते रहे थे और इसके बाद पार्टी का सिखों के बीच जनाधार कमजोर पड़ा. डॉ. मनमोहन सिंह ने इस खाई को पाटने का प्रयास किया. 2004 में प्रधानमंत्री बनने के बाद वह सिख समुदाय के लिए एक सशक्त चेहरा बने. विशेष रूप से 11 अगस्त 2005 को संसद में 1984 के दंगों के लिए माफी मांगने का उनका कदम एक ऐतिहासिक और साहसिक निर्णय था. यह कदम सिख समुदाय के गुस्से को शांत करने में सफल रहा और इसके बाद कांग्रेस ने पंजाब में भी सत्ता हासिल की.
संकट के समय कांग्रेस के संकट मोचक
डॉ. मनमोहन सिंह को अक्सर एक 'मौन' और 'मुलायम' नेता के रूप में देखा जाता था, लेकिन जब भी कांग्रेस पार्टी या उसके सहयोगियों के बीच संकट उत्पन्न हुआ तो वह हमेशा एक संकटमोचक के रूप में सामने आए. सोनिया गांधी या पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता जब भी पार्टी में कोई मतभेद या राजनीतिक असहमति उभरी तो वे अक्सर मनमोहन सिंह पर भरोसा करते थे. उनका विनम्र और संयमित स्वभाव न केवल अंदरूनी समस्याओं को सुलझाने में मदद करता था, बल्कि उन्होंने कई बार विपक्षी नेताओं के साथ भी समझौते की स्थिति पैदा की.
कांग्रेस को एक स्थिर नेतृत्व देना
मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने के बाद कांग्रेस पार्टी को एक स्थिर नेतृत्व मिला. यह वह समय था जब भारतीय राजनीति में लगातार अस्थिरता और बदलाव हो रहे थे, और पार्टी के लिए एक सशक्त और स्थिर नेतृत्व की आवश्यकता थी. डॉ. मनमोहन सिंह ने अपने शांत और संवेदनशील नेतृत्व से पार्टी को कई गंभीर राजनीतिक संकटों से बाहर निकाला. उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने 2004 और 2009 में चुनावी जीत हासिल की और भारत के विकास की दिशा में कई अहम कदम उठाए. हालांकि, उनके दूसरे कार्यकाल में यूपीए-2 के अंत में शहरी मध्यवर्ग के एक हिस्से के बीच असंतोष बढ़ा जिसके कारण कांग्रेस को चुनावी हार का सामना करना पड़ा.