नई दिल्ली: रामलला के प्राण प्रतिष्ठा की शुभ धड़ी नजदीक आ गई है. राम मंदिर निर्माण के पीछे कई पीढ़ियों का असंख्य बलिदान रहा है. राम मंदिर आंदोलन के लिए लाखों रामभक्तों और कारसेवकों ने अपने प्राणों की आहुति दी है. आज जब राम मंदिर अपने नव्य, भव्य और दिव्य स्वरूप में आकार ले रहा है, तो इस आंदोलन के जुड़े महानायकों की स्मृतियां का आना सहज और स्वाभाविक है.
राम मंदिर आंदोलन का गौरवशाली इतिहास जन आंदोलन के अभियान के रूप में जाना जाता है. अंसख्य राम भक्तों, संतों, महात्माओं, हुतात्माओं, सन्यासियों के साथ भारत का विशाल जनमानस इस आंदोलन का अभिन्न हिस्सा रहा है. आज हम राम मंदिर निर्माण के महानायकों की जीवनगाथा के बारे में बताएंगे, जो इस आंदोलन के सिरमौर और शिखर पुरुष रहे.
राम मंदिर आंदोलन से नाथ संप्रदाय का पुराना रिश्ता रहा है. गोरक्ष पीठ की तीन पीढियों इस आंदोलन के प्रमुख भूमिका के केंद्र में रही है. महंत अवैद्यनाथ राम मंदिर आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए 1980 के दशक में स्थापित रामजन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के पहले अध्यक्ष थे. वह मंदिर निर्माण के लिए राम जन्मभूमि न्यास के भी अध्यक्ष रहे और उन्होंने इससे जुड़े सभी आंदोलनों में सक्रिया भूमिका निभाई. कालांतर में बाबरी ढांचा विध्वंस मामले में उन्हें मुख्य आरोपी बनाया गया था. गोरक्ष पीठाधीश्वर रहे ब्रह्मलीन महान अवैद्यनाथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरु थे. इस आंदोलन से जुड़ने वाले सीएम योगी तीसरे शख्स है. इससे पहले ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ और अवैद्यनाथ जी ने राम मंदिर आंदोलन को देशव्यापी विस्तार दिया.
महंत रामचंद्र परमहंस दास राम मंदिर आंदोलन के सूत्रधार रहे. उन्होंने 1949 से रामलला के मंदिर के लिए कई बार आंदोलन किए. आपने रामजन्मभूमि आंदोलन को एक नया कलेवर दिया, जिसे अमलीजामा पहनाने वाले प्रमुख लोगों में परमहंस रामचंद्र दास भी हैं. परमहंस जी आखिरी सांस तक इस आंदोलन का नेतृत्व करते रहे. निधन के वक्त तक रामचंद्र दास दिगंबर अखाड़ा के महंत के साथ-साथ राम जन्मभूमि न्यास के भी अध्यक्ष पद पर विराजमान थे.
राम मंदिर आंदोलन को एक नई ऊंचाई देने वाले संतों में देवराहा बाबा का नाम आदर और सम्मान से लिया जाता है. इलाहाबाद में जनवरी 1984 में हुई उस धर्मसंसद की अध्यक्षता देवराहा बाबा ने की जिसमें 9 नवंबर 1989 को राम मंदिर के शिलान्यास की तारीख तय हुई थी. कहा जाता है कि इन्हीं के आदेश के बाद तत्कालीन पीएम राजीव गांधी ने तमाम विरोध के बावजूद विवादित स्थल का ताला खुलवाया था.
विश्व हिंदू परिषद के संस्थापक सदस्यों में से एक अशोक सिंघल अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर चलाए गए कई आंदोलनों में शामिल रहे थे. संघ के अनुषांगिक संगठन विहिप के मुखिया रहे अशोक सिंघल ने राम मंदिर आंदोलन में केंद्रीय भूमिका निभाई. अस्सी के दशक के दौरान अशोक सिंघल जी की अगुवाई में हुए शिला पूजन, दिल्ली में धर्मसंसद, विराट हिंदू सम्मेलनों ने राम मंदिर आंदोलन को नया कलेवर दिया. अशोक सिंघल बाबरी ढांचा विध्वंस मामले के आरोपी भी रहे. वह 2011 तक वीएचपी के अध्यक्ष रहे. राम मंदिर निर्माण आंदोलन में बड़ी भूमिका निभाते हुए 17 नवंबर 2015 को उनका निधन हो गया.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे मोरोपंत पिंगले 1980 के दशक में राम मंदिर आंदोलन के सूत्रधार रहे. राम मंदिर निर्माण आंदोलन के लिए प्रमुख यात्राओं और तमाम देशव्यापी अभियानों को आरंभ करने में अहम भूमिका निभाई. जिनमें शिला पूजन कार्यक्रम भी शामिल था, जिसके तहत तीन लाख से भी अधिक ईंटें अयोध्या पहुंचाई गई थी. उकी देखरेख में विहिप ने देश के तीन लाख से अधिक गांवों में शिलाएं पूजित करवायी. 1990 की कारसेवा से लेकर छह दिसंबर 1992 को ढांचा ढहाये जाने के दौरान आपकी केंद्रीय भूमिका रही.
राम मंदिर आंदोलन के साथ कोठारी बंधुओं का भी नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षर में अजर अमर है. 30 अक्टूबर 1990 को विवादित परिसर में बने बाबरी मस्जिद के गुंबद पर बंगाल के कोठारी बंधुओं ने भगवा झंडा फहराया था. उसके बाद ही वे प्रशासन की ओर से हुई गोलीबारी में दोनों भाइयों को अपनी जान गंवानी पड़ी. 2 नवंबर को कारसेवा के ही दौरान पुलिस ने दोनों को बिल्कुल करीब से गोली मारकर खत्म कर डाला. मौत के समय राम कुमार 23 साल के और शरद कुमार महज 20 साल के थे.
कई सदियों के लंबे इंतजार के बाद भगवान रामलला गर्भगृह में विराजेंगे. पीएम मोदी के हाथों 22 जनवरी को रामलला के प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी. भगवान रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए 84 सेकंड का अति सूक्ष्म मुहूर्त निकाला गया है. जो 12 बजकर 29 मिनट 8 सेकंड से 12 बजकर 30 मिनट 32 सेकंड तक होगा. ऐसे में हर भारतीयों का हृदय आनंदित रोम रोम पुलकित है.