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Siyaram Baba passes away: आध्यात्मिक गुरु सियाराम बाबा नहीं रहे, मोक्षदा एकादशी के शुभ अवसर पर ली अंतिम सांस, बिना माचिस के जलाया था दिया

Siyaram Baba passes away: आध्यात्मिक गुरु सियाराम बाबा का मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती के दिन अंतिम सांस ली. अपनी भक्ति और उदारता के लिए जाने जाने वाले, वे अपने पीछे आस्था और निस्वार्थ सेवा की विरासत छोड़ गए हैं.

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Edited By: Gyanendra Tiwari
Siyaram Baba passes away
Courtesy: Social Media

Siyaram Baba passes away: प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु सियाराम बाबा, जो अपनी विशेष भक्ति और साधना के लिए जाने जाते थे, मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती के दिन निधन हो गए. उनकी उम्र 100 साल के अधिक थी. बुधवार सुबह 6:10 बजे उन्होंने भट्टयान बज़ुर्ग स्थित अपने आश्रम में अंतिम सांस ली. उनके निधन की खबर सुनकर कई भक्तों ने आश्रम पहुंचकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की. पिछले 10 दिनों से वे निमोनिया से पीड़ित थे और अस्पताल में इलाज के बाद उन्होंने खुद को आश्रम में वापस लाने का निर्णय लिया, जहां स्थानीय डॉक्टरों द्वारा उनका इलाज किया जा रहा था.

सियाराम बाबा का जन्म 1933 में गुजरात के भावनगर में हुआ था. उन्होंने 17 वर्ष की आयु में ही आध्यात्मिक जीवन की ओर रुख कर लिया था. बाबा ने अपनी पूरी जिंदगी योग, साधना और भक्ति में समर्पित की. उन्होंने अपने गुरु से शिक्षा ली और कई तीर्थ स्थलों का दौरा किया. 1962 में वे भट्टयान पहुंचे और वहां एक पेड़ के नीचे गहन साधना में लग गए. यहीं पर उन्होंने "सियाराम" का उच्चारण किया और उसके बाद उन्हें सियाराम बाबा के नाम से जाना जाने लगा.

10 साल तक खड़े होकर की तपस्या

सियाराम बाबा को लोग "चमत्कारी" भी मानते थे, और इसके पीछे कई रहस्यमयी घटनाएँ हैं. बाबा के बारे में कहा जाता है कि वे हर मौसम में सिर्फ एक लंगोट पहनते थे, चाहे सर्दी हो या गर्मी. भक्तों का कहना है कि उन्होंने 10 साल तक खड़े होकर तपस्या की और योग के द्वारा खुद को हर मौसम के अनुसार ढाल लिया था.

माचिस के बिना दिया जलाना

कुछ साल पहले एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें दावा किया गया कि बाबा ने माचिस के बिना ही दीपक जलाया. हालांकि इस घटना की पुष्टि नहीं की जा सकी, लेकिन यह घटना बाबा के चमत्कारी गुणों को दर्शाती है, जो उनके भक्तों के बीच चर्चित हो गई.

बिना चश्मे के 21 घंटे तक रामायण का पाठ

सियाराम बाबा के बारे में यह भी कहा जाता है कि वे लगातार 21 घंटों तक रामायण का पाठ करते थे. सबसे हैरानी की बात यह थी कि उनकी उम्र 100 साल से ज्यादा थी, फिर भी बिना चश्मे के वे पूरी ऊर्जा के साथ रामायण की चौपाइयाँ पढ़ते थे. यह उनकी गहरी साधना और समर्पण का प्रतीक था.

सियाराम बाबा का निधन एक युग का समापन है, लेकिन उनकी जीवनशैली, भक्ति और साधना के उदाहरण से प्रेरित होकर उनके भक्त आगे भी उनके रास्ते पर चलेंगे. उनका सरल जीवन, भगवान श्रीराम और नर्मदा नदी से गहरा जुड़ाव, और अपने भक्तों के प्रति प्रेम हमेशा याद रहेगा.