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'शर्म करो, नाजायज रिश्तों को लिव इन मत कहो...', अदालत ने सिखा दिया पाठ

मद्रास हाईकोर्ट का कहना है कि शादीशुदा होने के बावजूद कोई अगर इस तरह के संबंध में रहता है तो इसे वैध नहीं माना जा सकता. कोर्ट ने कहा कि विवाहित पुरुष और अविवाहित महिला के बीच लिव-इन रिलेशनशिप "शादी की प्रकृति" का नहीं है. शादी की प्रकृति वाले रिश्ते के लिए यह जरूरी है कि युवक समाज में खुद को पति-पत्नी की तरह पेश करें. 

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Edited By: India Daily Live
Madras High Court
Courtesy: Social Media

पूरी दुनिया में लिव इन रिलेशन का प्रचलन है. शादी से पहले पार्टनर लिव इन में रहते हैं. लेकिन शादीशुदा होने के बाद कोई व्यक्ति लिव इन रिलेशन में रहता है तो इसे वैध नहीं माना जाएगा. मद्रास हाईकोर्ट का कहना है कि शादीशुदा होने के बावजूद कोई अगर इस तरह के संबंध में रहता है तो इसे वैध नहीं माना जा सकता. कोर्ट ने कहा कि विवाहित पुरुष और अविवाहित महिला के बीच लिव-इन रिलेशनशिप "शादी की प्रकृति" का नहीं है. 

अदालत संपत्ति से जुड़े एक मामले की सुनवाई कर रही थी. जस्टिस आरएमटी टीका रमन ने एक ऐसे शख्स को राहत देने से इनकार कर दिया. जो एक महिला के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहा था. कोर्ट ने कहा कि ये रिश्ता सही नहीं है. शादी की प्रकृति वाले रिश्ते के लिए यह जरूरी है कि युवक समाज में खुद को पति-पत्नी की तरह पेश करें. 

क्या है मामला?

याचिकाकर्ता जयचंद्रन की याचिका पर मद्रास हाई कोर्ट में सुनवाई हुई. जयचंद्रन एक लड़की के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में था. इस दौरान जयचंद्रन बिना शादी किए मार्ग्रेट के साथ रह रहा था. जयचंद्रन ने मार्गरेट के पक्ष में एक समझौता पत्र तैयार किया था जिसे मार्ग्रेट  की मौत के बाद एकतरफा तरीके से रद्द कर दिया गया था. वहीं, मामला उस संपत्ति पर कब्जे से जुड़ा था जिसे अरुलमोझी ने मार्गरेट के नाम पर खरीदा था.

मार्ग्रेट की मौत के बाद जयचंद्रन उस संपत्ति पर अपना अधिकार चाहता था. कोर्ट ने पाया कि चूंकि जयचंद्रन और मार्ग्रेट की शादी वैध विवाह में तब्दील नहीं हुई थी, इसलिए मार्गरेट के पिता, प्रतिवादी येसुरंथिनम, मालिकाना हक के आदेश के हकदार थे. इस तरह कोर्ट ने जयचंद्रन को संपत्ति पर कब्जा देने का निर्देश दिया. 

कोर्ट ने क्या कहा? 

कोर्ट ने कहा कि इसे दोनों ने शादी नहीं कि थी न ही इस तरह के लिव-इन रिलेशनशिप मामले में पति-पत्नी का दर्जा दे सकते हैं. हाई कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत जिसमें जाति व्यवस्था को भी मान्यता दी गई थी, भारतीय तलाक अधिनियम में ऐसी किसी व्यवस्था या तलाक के किसी प्रथागत रूप को मान्यता नहीं दी गई थी. कोर्ट ने कहा कि तलाक के किसी भी सबूत के अभाव में जयचंद्रन और मार्ग्रेट के बीच संबंध पति-पत्नी की कानूनी स्थिति में नहीं आ सकते.