menu-icon
India Daily

'मुख्यमंत्री हो राजा नहीं..', सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को क्यों लगाई फटकार?

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई है. यह फटकार राज्य के वन मंत्री और अन्य की राय की अनदेखी करते हुए विवादास्पद आईएफएस अधिकारी के राजाजी टाइगर रिजर्व का निदेशक नियुक्त करने के बाद लगाई गई है. न्यायमूर्ति बीआर गवई, पीके मिश्रा और केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि मुख्यमंत्री को अधिकारी से विशेष लगाव क्यों है.

auth-image
Edited By: India Daily Live
pushkar singh dhami
Courtesy: Social Media

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को कड़ी फटकार लगाई है. दरअसल यह फटकार सीएम की ओर से राज्य के वन मंत्री और अन्य की राय की अनदेखी करते हुए एक विवादास्पद आईएफएस अधिकारी के राजाजी टाइगर रिजर्व का निदेशक नियुक्त करने के बाद लगाई गई है. न्यायमूर्ति बीआर गवई, पीके मिश्रा और केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि सरकार के प्रमुखों से पुराने दिनों के राजा होने की उम्मीद नहीं की जा सकती हम सामंती युग में नहीं हैं.

वहीं राज्य सरकार ने पीठ को बताया कि नियुक्ति आदेश 3 सितंबर को वापस ले लिया गया था. इस पर न्यायाधीशों ने कहा, इस देश में सार्वजनिक विश्वास सिद्धांत जैसा कुछ है. कार्यपालिका के प्रमुखों से पुराने दिनों के राजा होने की उम्मीद नहीं की जा सकती कि उन्होंने जो कहा वही करेंगे. हम सामंती युग में नहीं हैं.सिर्फ इसलिए कि वह मुख्यमंत्री हैं, क्या वह कुछ कर सकते हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को क्यों लगाई फटकार?

आगे पीठ ने यह भी सवाल किया कि मुख्यमंत्री को अधिकारी से विशेष लगाव क्यों है. यह देखते हुए कि उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई लंबित है. राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता एएनएस नाडकर्णी ने कहा कि अधिकारी को निशाना बनाया जा रहा है. वहीं इस बात की ओर ध्यान दिलाते हुए कि नोटिंग में कहा गया था कि अधिकारी को राजाजी टाइगर रिजर्व में तैनात नहीं किया जाना चाहिए. अदालत ने कहा कि मुख्यमंत्री बस इसे अनदेखा कर रहे हैं.

दरअसल भारतीय वन सेवा के अधिकारी राहुल जो कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के पूर्व निदेशक हैं. राहुल का राजाजी टाइगर रिजर्व में तबादला तब हुआ जब कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में निदेशक रहते हुए पेड़ों की अवैध कटाई और अनधिकृत निर्माण में उनकी भूमिका जांच के दायरे में थी. इस नियुक्ति को वरिष्ठ अधिकारियों ने गलत बताया. वहीं अदालत ने पाया कि इसका उप सचिव, प्रमुख सचिव और राज्य के वन मंत्री ने भी समर्थन किया था. इसके बाद भी यह तैनाती की गई.

'आप अच्छे अधिकारी की बलि चढ़ा सकते..'

अदालत ने कहा, 'यदि डेस्क अधिकारी उप सचिव, प्रमुख सचिव, मंत्री से इस पर सहमत नहीं है तो कम से कम आप इस बात पर विचार तो कर सकते हैं कि ये सभी लोग इस प्रस्ताव पर असहमत क्यों हैं. इस पर वकील नादकर्णी ने दलील देते हुए कहा, 'आप अच्छे अधिकारी की बलि चढ़ा सकते, जिसके खिलाफ कुछ भी नहीं है.' इस पर अदालत ने पूछा, यदि कुछ भी नहीं है, तो आप उसके खिलाफ विभागीय कार्रवाई क्यों कर रहे हैं'. न्यायाधीशों ने कहा कि जब तक प्रथम दृष्टया कोई साक्ष्य उपलब्ध न हो. किसी के खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू नहीं की जा सकती है.