भारत के प्रमुख शिक्षण संस्थानों में से एक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) गंभीर वित्तीय संकट से गुजर रहा है. इस चुनौती से उबरने के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन ने अपनी दो प्रमुख सपंत्तियों के मुद्रीकरण की योजना बनाई है. इस कदम को विश्वविद्यालय के संचालन को सपोर्ट देने के लिए राजस्व उत्पन्न करने और एक स्थिर आय स्त्रोत बनाने के रूप में देखा जा रहा. जेएनयू के इस फैसले का छात्र संगठन विरोध कर रहा है. उनके मुताबिक अगर ऐसा हुआ तो जेएनयू के मेहमानों को होटल में ठहराया जाएगा और उसका बिल कौन भरेगा.
जेएनयू प्रशासन की इस योजना को लेकर वामपंथी शामिल जेएनयूएसयू और अन्य छात्र संगठन कड़ी आलोचना कर रहे हैं. मीडिया से बातचीत में जेएनयूएसयू के अध्यक्ष धंनजय ने कहा, 'यह कैंपस के लिए एक चिंताजनक स्थिति है, वे इसकी संपत्तियों को बेच रहे हैं. क्या वह कुलपति है या प्रापर्टी डीलर. उन्होंने आगे कहा, उनका काम हालात को बेहतर बनाना है लेकिन वह इसे और बिगाड़ रही है.
जेएनयूएसयू अध्यक्ष ने यह भी सवाल उठाया कि विदेशी मेहमान इन गेस्ट हाउस में ठहरते हैं, अब वे कहां ठहरेंगे. होटलों में ठहरेंगे तो उनको बिल कौन भरेगा. इस मुद्दे पर जेएनयूएसयू शिक्षा मंत्रालय के बाहर प्रदर्शन करने की योजना भी बना रहा है. एबीवीपी भी इस मामले में कुलपति पर सवाल उठा रहे है. जेएनयू एबीवीपी की सचिव शिखा स्वराज ने कहा, अगर पैसे की कमी है तो फिर कुलपति के घर की मरम्मत पर पैसे खर्च क्यों किए. उन्होंने आगे कहा, अगर उन्हें कुछ बेचना ही है तो सबसे पहले कुलपति का घर बेचना चाहिए.
एबीवीपी नेता ने यह भी कहा कि कुलपति इस तरह के बयान सिर्फ मीडिया में सुर्खियों में बने रहने के लिए देती है. हालांकि इस पूरे मामले पर जेएनयू प्रशासन ने कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी है.