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सीलबंद कंटेनर, 25 गाड़ियों का काफिला...भोपाल गैस त्रासदी के बाद 40 साफ हुआ जहरीला कचरा

शुक्रवार रात से कचरे को धार जिले के पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में ट्रांसफर करने का कार्य शुरू कर दिया गया है. इस अभियान के तहत 12 सीलबंद कंटेनर ट्रकों में खतरनाक अपशिष्ट को भरकर भोपाल से लगभग 250 किलोमीटर दूर स्थित पीथमपुर भेजा जा रहा है.

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Edited By: Gyanendra Sharma
Bhopal gas tragedy removed
Courtesy: Social Media

भोपाल गैस त्रासदी को 40 साल से अधिक का समय बीत चुका है लेकिन इसके घातक प्रभाव आज भी महसूस किए जा रहे हैं. अब लगभग चार दशकों बाद, यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से निकलने वाले खतरनाक कचरे का निपटान करने का काम आखिरकार शुरू हो गया है. यह कचरा जो लंबे समय से भोपाल में फैक्ट्री परिसर में पड़ा हुआ था, 377 टन के आसपास है और इसे सुरक्षित तरीके से निपटाया जाना है. इस कचरे में जहरीले रसायन शामिल हैं जो पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बने हुए थे.

शुक्रवार रात से कचरे को धार जिले के पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में ट्रांसफर करने का कार्य शुरू कर दिया गया है. इस अभियान के तहत 12 सीलबंद कंटेनर ट्रकों में खतरनाक अपशिष्ट को भरकर भोपाल से लगभग 250 किलोमीटर दूर स्थित पीथमपुर भेजा जा रहा है. इस ट्रांसफर प्रक्रिया में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं. 25 गाड़ियों का एक काफिला, जिसमें पुलिस बल, एंबुलेंस, डॉक्टर, फायर ब्रिगेड और क्विक रिस्पांस टीम शामिल हैं, नॉन-स्टॉप यात्रा करेगा ताकि कचरे को सुरक्षित रूप से स्थानांतरित किया जा सके. 

12 ट्रकों का काफिला बुधवार रात करीब 9 बजे पीथमपुर के लिए निकला

भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास विभाग के निदेशक स्वतंत्र कुमार सिंह ने इस अभियान के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि इन 12 ट्रकों का काफिला बुधवार रात करीब 9 बजे बिना रुके यात्रा पर निकला. अधिकारियों ने सुनिश्चित किया है कि इन वाहनों के रास्ते में कोई रुकावट न हो इसके लिए एक 'ग्रीन कॉरिडोर' का निर्माण किया गया है. अनुमान है कि यह काफिला सात घंटे में धार जिले के पीथमपुर क्षेत्र तक पहुंच जाएगा.

भोपाल गैस त्रासदी

भोपाल गैस त्रासदी जो 2 और 3 दिसंबर 1984 की रात को यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के गैस संयंत्र से मिथाइल आइसोसाइनाइट (MIC) गैस के रिसाव के कारण हुई थी, आज भी एक भयानक याद बनी हुई है. इस हादसे में हजारों लोग मारे गए और लाखों लोग प्रभावित हुए. त्रासदी के बाद फैक्ट्री परिसर में खतरनाक रसायन और कचरा पड़ा रहा, जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य के लिए भी खतरा बना हुआ था.

अब, सरकार और संबंधित अधिकारी इस कचरे के निपटान के प्रयासों में जुटे हैं. यह कदम न केवल भोपाल के पर्यावरण को पुनः सुरक्षित बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि यह उन लोगों के लिए भी राहत का कारण बनेगा जो पिछले 40 वर्षों से इसके खतरनाक प्रभावों से जूझ रहे थे.