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IIT कानपुर के वैज्ञानिकों ने खोजा नया ग्रह 'सुपर जुपिटर', जानिए पृथ्वी के कितना है  पास?

New Planets: दुनियाभर के खगोलविदों को एक अभूतपूर्व उपलब्धि हासिल हुई है. उन्होंने पृथ्वी के निकट सुपर जुपिटर ग्रह की खोज कर ली है. जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप से डायरेक्ट इमेजिंग तकनीक के जरिए इस नए ग्रह की खोज की गई है. इसको 'एप्सिलॉन इंडी एबी' नाम दिया गया है. यह पृथ्वी के सबसे निकट पहला बाह्यग्रह है. इसको खोजने वाली टीम में कानपुर आईआईटी के प्रोफेसर्स की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. 

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Edited By: India Daily Live
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Courtesy: social media

New Planets: आईआईटी कानपुर के डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस प्लैनिटेरी एंड ऐस्ट्रनॉमिकल साइंस एंड इंजीनियरिंग (स्पेस) के सहायक प्रोफेसर डॉ. प्रशांत पाठक की सदस्यता वाली खगोलविदों की एक अंतरराष्ट्रीय टीन ने सूर्य के समान एक नजदीकी तारे की परिक्रमा करने वाले विशाल ग्रह की खोज की है. खगोलविदों के अनुसार, यह नॉर्मल ग्रहों से बहुत अलग है. इस ग्रह के वायुमंडल में एक आसामान्य संरचना है. सौरमंडल के ग्रहों की तुलना में उच्च धातु सामग्री और एक अलग कार्बन से ऑक्सीजन अनुपात को इंगित करती है. 

आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर डॉ. प्रशांत पाठक ने बताया कि इस ग्रह को एप्सिलॉन इंडी एबी या संक्षेप में ईपीएस इंड एबी नाम दिया गया है. इसे सुपर जुपिटर के रूप में वर्गीकृत किया गया है. यह बृहस्पति से द्रव्यमान के मामले में छह गुना अधिक है. जो हमारे सौर मंडल में मौजूद किसी भी ग्रह से काफी बड़ा है. इस ग्रह को प्रत्यक्ष इमेजिंग तकनीक का उपयोग करके खोजा गया है. 

पृथ्वी से है इतना दूर 

यह ग्रह पृथ्वी से से 12 प्रकाश वर्ष की दूरी पर है और यह काफी ठंडा ग्रह है. इसका तापमान लगभग -1 डिग्री सेल्सियस है. इसकी कक्षा भी काफी बड़ी है. यह अपने तारे की परिक्रमा हमारी पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी से 28 गुना अधिक दूरी पर करता है. इसको लेकर जर्मनी के हीडलबर्ग स्थित मैक्स प्लैक इंस्टीट्यूट फॉर एस्ट्रोनॉमी की शोधकर्ता एलिजाबेथ मैथ्यूज ने कहा है कि 'जब हमें यह एहसास हुआ कि हमने इस नए ग्रह की पिक्स ले ली हैं तो हम काफी उत्साहित हुए. उन्होंने कहा कि हमारे लिए यह सरप्राइज था कि एमआईआरआई की फोटोज में दिखने वाला यह चमकीला स्थान ग्रहों की तरह नहीं था. ' रेडियो विलोसिटी मेजरमेंट का उपयोग करके भी इस ग्रह का अध्ययन करने में वैज्ञानिक सफल नहीं हो पाए थे. इस कारण टीम ने इमेजिंग विजन के जरिए इसका पता लगाने की कोशिश की.