Mob Lynching Petition: सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ती मॉब लिंचिंग की घटनाओं को लेकर चेतावनी दी जिसमें गोरक्षकों द्वारा पीट-पीटकर मारे गए लोगों की मौत भी शामिल है और पीड़ितों के परिवारों के लिए तत्काल अंतरिम वित्तीय राहत की मांग की जा रही है. इस दौरान न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कन्हैया लाल हत्याकांड का जिक्र किया और याचिकाकर्ता वकीलों से ऐसे मामलों को पेश करते समय चयनात्मक नहीं होने के निर्देश दिए.
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पूछा कि राजस्थान के उस दर्जी कन्हैया लाल के बारे में क्या, जिसकी पीट-पीट कर हत्या कर दी गई?. कोर्ट के सवाल पर याचिकाकर्ताओं के वकील निजाम पाशा ने स्वीकार किया कि इसका उल्लेख नहीं किया गया था. वकील के इस बयान पर कोर्ट ने कहा कि जब सभी राज्य मौजूद हों तो आप चयनात्मक नहीं हो सकते हैं.
बता दें, राजस्थान के उदयपुर में साल 2022 में एक दर्जी कन्हैया लाल को उनके ही दुकान के बाहर मौत के घाट उतार दिया जाता है. दरअसल, पैगंबर मोहम्मद के बारे में टिप्पणी करने वाली बीजेपी की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा के समर्थन में अपने सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर एक पोस्ट शेयर करने के बाद कथित तौर पर कन्हैया लाल की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी.
जनहित याचिका पर गुजरात के वकील ने कहा कि याचिका विशेष रूप से केवल मुसलमानों की लिंचिंग को उजागर कर रही है. वरिष्ठ वकील अर्चना पाठक दवे ने कहा कि यह सिर्फ मुसलमानों की भीड़ द्वारा हत्या है. उन्होंने कहा कि यह चयनात्मक कैसे हो सकता है? राज्य को सभी समुदायों के लोगों की रक्षा करनी है.
इस पर जवाब देते हुए अदालत ने कहा कि हां, आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि यह बिल्कुल भी चयनात्मक न हो, अगर सभी राज्य इसमें शामिल हैं. इस पर वकील पाशा ने प्रतिवाद करते हुए कहा कि केवल मुसलमानों को पीट-पीटकर मार डाला जा रहा है. यह तथ्यात्मक बयान है जिसके जवाब में न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि आप अदालत में जो कुछ भी प्रस्तुत कर रहे हैं, कृपया उससे सावधान रहें.
गौरतलब है कि पिछले साल जुलाई में अदालत ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की महिला शाखा द्वारा दायर जनहित याचिका पर केंद्र और छह राज्यों से जवाब मांगा था. कोर्ट में दायर जनहित याचिका में दावा किया गया है कि 2018 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद इन राज्यों द्वारा कार्रवाई की कमी हुई है, जिसमें गोरक्षकों द्वारा हत्या सहित घृणा अपराधों पर सख्त रुख अपनाने का निर्देश दिया गया है. याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि भीड़ हिंसा और लिंचिंग में बड़े पैमाने पर वृद्धि अल्पसंख्यकों द्वारा सामना किए जाने वाले बहिष्कार की सामान्य कहानी और राज्य द्वारा निष्क्रियता के प्राकृतिक परिणाम के कारण थी.
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि अब तक केवल हरियाणा और मध्य प्रदेश ने ही कार्रवाई के संबंध में जवाब दाखिल किया है. इसके बाद अदालत ने अन्य राज्यों को अपने बयान दर्ज करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया.