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152 दिन, 143 खुदकुशी! जिंदगी नहीं मौत चुनते हैं यहां के किसान, जिम्मेदार कौन?

महाराष्ट्र के अमरावती को सुसाइड कैपिटल ऑफ इंडिया कहें तो गलत नहीं होगा. सरकारों को पता है कि किसान यहां कर्ज के दलदल में फंसकर अपनी जान लेते हैं. सरकारों के दावे जो भी हों, यहां की दुर्दशा एक सी रही है. किसानों पर किसी भी सरकार ने कोई ऐसा कदम नहीं उठाया कि इन किसानों की जान बच सके. किसान आत्महत्या पर बातें की जाती हैं लेकिन काम उनके लिए कौन करता है, यह सवालों के घेरे में है.

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Edited By: India Daily Live
Farmers Suicide
Courtesy: Social Media

महाराष्ट्र के दो जिले ऐसे हैं, जहां सबसे ज्यादा किसान खुदकुशी करते हैं. पहला जिला यवतमान है, दूसरा अमरावती. दोनों जिलों में किसान, जिंदगी नहीं मौत चुनते हैं. यह कपास की खेती वाला बेल्ट है. कॉमर्शियल फसल है. यहां संतरे की भी खूब खेती होती है. सोयाबीन की भी यही जमीन है. इस साल मई तक अमरावती में 143 किसानों ने खुदकुशी कर ली है. हर दिन, एक किसान की जान जा रही है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक यवतमाल में 132 किसानों ने मई से अब तक खुदकुशी की है. जून के आंकड़े अभी आए नहीं हैं. पहले यवतमाल में सबसे ज्यादा लोग आत्महत्या करते थे, अब अमरावती में. यह आंकड़ा 2021 में बदल गया है.

अमरावती में 370 किसानों ने 2021 में जान दी थी. 2022 में 349 और 2023 में 323 किसानों ने आत्महत्या की थी. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक यवतमाल में 2021 में 290 लोगों ने आत्महत्या की, 2022 में 291 और 2023 में 302 लोगों ने. आखिर क्यों किसान खुदकुशी करते हैं, आइए समझते हैं.

क्यों यहां किसान करते हैं खुदकुशी?

- किसान सोयाबीन की खेती करते हैं. उपज में लगातार गिरावट देखी जा रही है. इसकी दरें 4000 प्रति क्विंटर तक हो गईं. लागत ज्यादा है, कमाई कम, किसान कर्ज में फंस जाते हैं.
- किसानों को बैंकिंग लोन कम मिलता है, वे स्थानीय फर्मों या साहूकारों से लोन लेते हैं. एक भी किस्त मिस होने पर वे बुरी तरह से प्रताड़ित करते हैं, जिसके चलते किसान आत्महत्या करते हैं.
-  2001 से विदर्भ के छह जिलों अमरावती, अकोला, यवतमाल, वाशिम, बुलढाणा और वर्धा में  22,000 से अधिक आत्महत्याएं हुई हैं. 
- मराठवाड़ा संभाग के सभी आठ जिलों में अप्रैल 2024 तक 267 आत्महत्याएं दर्ज की गई हैं.

आत्महत्या के बाद होता क्या है?

सरकारों का बस यही काम है कि अगर आत्महत्या हो जाए तो जिला स्तरीय समिति जांच करती है कि आत्महत्या खेती की वजह से हुई है या वजह कुछ और है. सरकार की तरफ से 1 लाख का मुआवजा मिलता है, जिसमें यह साबित करना होता है कि मृतक पर वसूली करने वाले दबाव बना रहे थे, फसल नहीं हुई.