नारायण साकार हरि उर्फ 'भोले बाबा' अब फरार है. मैनपुरी के आश्रम में उसकी खोजबीन के लिए पुलिस ने छापा भी मारा है लेकिन अभी तक उसका पता नहीं चल पाया है. इस बीच बाबा के साम्राज्य, उसके महलनुमा आश्रम, उसके रहन-सहन और उसकी प्राइवेट आर्मी को लेकर खूब चर्चाएं हो रही हैं. बताया जा रहा है कि भगदड़ के दौरान इसी आर्मी से जुड़े सेवादार मौजूद थे. इन लोगों ने भीड़ को रोकने और बाद में डंडे के दम पर भगाने की कोशिश भी की थी. सोशल मीडिया पर वायरल दावों में कहा जा रहा है कि इस प्राइवेट आर्मी के लोगों ने सत्संग में आई भीड़ के साथ धक्का-मुक्की भी की. ऐसे में इस आर्मी को लेकर कई तरह के सवाल भी खड़े हो रहे हैं.
बताया जा रहा है कि इस 'भोले बाबा' की निजी सुरक्षा से लेकर सत्संग के इंतजाम तक का जिम्मा इन्हीं जवानों के पास रहता था. सेवादार कहे जाने वाले इन लोगों को भी कई कैटगरी में बांटा जाता है. साथ-साथ इन्हें अलग-अलग यूनिफॉर्म और नाम भी दिए जाते हैं. बाबा के भक्त इस काम को फ्री में करते हैं और इसे 'सेवा' कहते हैं. यह सब चलाने, ड्यूटी लगाने, ड्यूटी बदलने के लिए बाकायदा एक सिस्टम काम करता है. जिला स्तर पर इसे मैनेज करने वालों को कमांडर कहा जाता है.
मुख्य तौर पर इन गार्ड्स को तीन तरह की यूनिफॉर्म के हिसाब से तीन कैटगरी में बांटा गया है. सेवादार कहे जाने वाले इन लोगों को न तो कोई ट्रेनिंग मिलती है और न ही इसके लिए उन्हें पैसे दिए जाते हैं. इस प्राइवेट आर्मी में स्थायी तौर पर काम करने वाले लोग भी बहुत कम ही हैं. ज्यादातर लोग कुछ दिनों के लिए ड्यूटी करते हैं और फिर अपने वास्तविक काम पर लौट जाते हैं. यह भी कहा जाता है कि पुलिस में काम करने वाले लोग भी बाबा के भक्त हैं और छुट्टी लेकर वे भी इस आर्मी में काम करने आते हैं.
बताया जाता है कि बाबा की निजी सुरक्षा के लिए एक स्पेशल फोर्स है. काले कपड़े पहनने वाले इन लोगों को ब्लैक कमांडो या गरुड़ योद्धा कहा जाता है. ये 20-20 की टुकड़ी में रहते हैं. बाबा के काफिले के आगे बाइक लेकर चलना हो या मंच के चारों ओर घेरा बनाना हो, यही फोर्स काम करती है. मंच के आसपास तैनात के कथित कमांडो ध्यान रखते हैं कि बाबा तक कोई अनचाहा शख्स पहुंचने न पाए. बाबा के कार्यक्रम स्थल से जाते समय यही लोग कथा सुनने आए लोगों को बाबा से दूर रखते हैं.
सोशल मीडिया पर वायरल बाबा के प्रवचन के वीडियो देखने पर आपको साफ नजर आएगा कि सबसे ज्यादा लोग गुलाबी ड्रेस में होते हैं. इन्हें नारायणी सेना कहा जाता है और ये 50-50 की टुकड़ी में होते हैं. बाबा के आश्रमों से लेकर कथा के स्थलों तक यही लोग काम करते हैं. इनमें महिलाएं भी होती हैं जो सूट या साड़ी के साथ टोपी लगाती हैं. पिंक आर्मी में शामिल एक शख्स बताता है कि 4 घंटे की ड्यूटी होती है और 8 दिन बाद लोग बदल जाते हैं. पुराने लोगों की जगह नए लोग आते हैं और अगले 8 दिन वे ड्यूटी करते हैं. लोग बताते हैं कि ये लोग कपड़े भी अपने खर्च पर बनवाते हैं.
ब्राउन ड्रेस पहने दिखने वाले लोग 25-25 की टुकड़ी में होते हैं. कुछ लोग सफेद कपड़े पहने भी दिखते हैं. सिर पर टोपी पहनने वाले सफेद और ब्राउन वालों को हरि वाहक कहा जाता है. इन लोगों का काम पंडाल के अंदर भक्तों के बैठने की व्यवस्था करने और उन पर नजर रखने का होता है. बताया जाता है कि बाबा की आर्मी में 10 हजार से ज्यादा लोग हैं. हालांकि, यह भी कहा जाता है कि इस फोर्स में काम करने वाले लोग अपनी इच्छा से काम करते हैं और इसके लिए पैसे नहीं लेते हैं. यही नहीं यह भी कहा जाता है कि उसकी आर्मी में कई पुलिसकर्मी भी शामिल हैं और ये लोग सत्संग के वक्त छुट्टी लेकर आते हैं.
हाथरस में हुए हादसे के वक्त बाबा की प्राइवेट आर्मी मौजूद थी. इस आर्मी ने बाबा की ओर बढ़ रहे भक्तों को पहले तो पीछे धकेला और बाद में उन्हीं से धक्का-मुक्की भी की. हालांकि, जब हादसा हो गया और लोगों की मदद करने की जरूरत थी तब ये लोग फरार हो गए. खुद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि हादसे के बाद सारे सेवादार वहां से फरार हो गए थे.