न खाना, न सोना... गुलामों जैसा सलूक; रूस से लौटे भारतीय युवाओं ने बताई जुल्म की दास्तां
Russia Ukraine War: तेलंगाना के मोहम्मद सूफ़ियान को एक धोखेबाज़ एजेंट ने यूक्रेन में लड़ने के लिए एक निजी रूसी सेना में शामिल होने के लिए धोखा दिया था, जिसके बाद वे घर लौट आए. कर्नाटक के तीन अन्य लोगों के साथ, उन्हें भी कठोर परिस्थितियों और लगातार डर का सामना करना पड़ा. उनके परिवारों ने भारत सरकार से मदद मांगी, जिसके बाद उन्हें बचाया गया.
Russia Ukraine War: जंग से प्रभावित रूस-यूक्रेन सीमा से बचाए जाने की गुहार लगाने वाले वीडियो के सामने आने के करीब सात महीने बाद तेलंगाना के मोहम्मद सूफियान शुक्रवार को घर लौट आए. 22 साल के सूफियान के साथ कर्नाटक के तीन अन्य लड़के भी देश लौटे. सभी को एक धोखेबाज एजेंट ने धोखा दिया था और यूक्रेन से लड़ने के लिए रूसी सेना में भर्ती करा दिया था.
सूफियान के मुताबिक, कम से कम 60 भारतीय युवा उनकी ही तरह धोखाधड़ी का शिकार हुए, जिनमें से कई अभी भी विदेशी धरती यानी रूस में फंसे हुए हैं. दिसंबर 2023 में उन्हें रूस में सुरक्षाकर्मी या सहायक के रूप में काम दिलाने के वादे के साथ भारत से बाहर भेज दिया गया था. लेकिन रूस में उतरते ही जीवन बदतर हो गया. शुक्रवार को दोपहर के बाद हैदराबाद पहुंचने के तुरंत बाद नारायणपेट के सूफियान ने TOI से कहा कि हमारे साथ गुलामों जैसा व्यवहार किया गया.
जुल्म की दास्तां सुनाते हुए सूफियान ने क्या बताया?
सूफियान ने पिछले कुछ महीनों को याद कर बताया कि हमें हर दिन सुबह 6 बजे जगाया जाता था और बिना आराम या नींद के लगातार 15 घंटे काम कराया जाता था. परिस्थितियां अमानवीय थीं. हमें बहुत कम राशन दिया जाता था. हमारे हाथों में छाले पड़ गए थे, हमारी पीठ में दर्द था और हमारा हौसला टूट गया था. फिर भी, अगर हम थकावट का कोई संकेत देते, तो हमें फिर से मेहनत वाले कामों में लगाने के लिए गोलियां चलाई जाती थीं.
उन्होंने बताया कि हमारा काम कोई मामूली नहीं था. हमें गड्ढे खोदने पड़ते थे, असॉल्ट राइफलें चलानी होती थीं. हमें AK-12 और AK-74 जैसी कलाश्निकोव, साथ ही हैंड ग्रेनेड और दूसरे विस्फोटक चलाने का भी ट्रेनिंग दी गई थी. सबसे बड़ी चुनौती बाकी दुनिया से कटे रहना था. सूफ़ियान और उनके साथी याद करते हुए बताते हैं कि उन्हें पता ही नहीं था कि वे रूस में कहां हैं, या उन्हें कहां रखा जा रहा है. उन्हें भारत में अपने परिवारों से बात करने की अनुमति नहीं थी.
कर्नाटक के अब्दुल बोले- फोन छीन लिया था, महीनों तक बात नहीं कर पाया
कर्नाटक के अब्दुल नईम ने कहा कि हमारे मोबाइल फोन जब्त कर लिए गए थे. ट्रेनिंग के दौरान महीनों तक मैं अपने परिवार से बात नहीं कर पाया. विदेशी युद्ध क्षेत्र में रहने का मनोवैज्ञानिक असर बहुत ज़्यादा था. कर्नाटक के कलबुर्गी के रहने वाले सैयद इलियास हुसैनी ने गोलीबारी में फंसने के लगातार डर और जीवन को खतरे में डालने वाली परिस्थितियों में प्रदर्शन करने के निरंतर दबाव के बारे में बताया. हर दिन हम यह नहीं जानते हुए उठते थे कि क्या यह हमारा आखिरी दिन होगा? गोलियों और धमाकों की आवाज़ रोजाना की बात हो गई थी और हम हमेशा डर में रहते थे.
रूस से लौटे युवाओं ने कहा कि डर से निपटने का एकमात्र तरीका प्रार्थना करना और उस दिन की कल्पना करना था जब हम इस 'नरक' से भारत वापस आएंगे और अपने परिवारों से फिर से मिलेंगे. हम अपने परिवारों के आराम और अपने घरों की सुरक्षा के लिए तरस रहे थे. उन्हें फिर कभी न देखने का ख़याल हमें हर दिन सताता था.
सैनिकों की मौत, हमारे डर को और बढ़ा देती थी
सूफियान ने कहा कि अन्य 'सैनिकों' को मरते हुए देखना उनके दुख को और बढ़ा देता था. गुजरात से मेरा एक बहुत अच्छा दोस्त हैमिल ड्रोन हमले में मारा गया. वह 24 सैनिकों की टीम का हिस्सा था, जिसमें एक भारतीय और एक नेपाली शामिल था. इसने मुझे झकझोर कर रख दिया. उन्होंने कहा कि हैमिल की मौत के बाद ही हमने अपने परिवारों को अपनी स्थिति के बारे में बताया, जिन्होंने तब केंद्रीय विदेश मंत्री एस जयशंकर से हमें युद्ध क्षेत्र से बचाने का अनुरोध किया.