इस बार लोकसभा चुनाव के नतीजे अप्रत्याशित रहे. 4 जून को आए चुनावी नतीजों ने तमाम एग्जिट पोल्स की भविष्यवाणियों को फेल कर दिया. नतीजा यह हुआ कि जो बीजेपी चुनाव के दौरान 400 पार का नारा लगा रही थी वह बहुमत का आंकड़ा भी नहीं छू पाई. भाजपा की इस हालत को लेकर कहा जा रहा था कि इस बार उसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का साथ नहीं मिला. वहीं अब आरएसएस ने लोकसभा चुनावों में भाजपा के घटिया प्रदर्शन की वजह बताई है. आरएसएस ने अपने मुखपत्र में कहा कि बीजेपी के नेताओं ने इस चुनाव में मदद के लिए उनसे संपर्क ही नहीं किया.
'अति आत्मविश्वास में चूर थे'
RSS से जुड़ी पत्रिका ऑर्गनाइजर में संगठन से जुड़े सदस्य रतन शारदा के लेख में चुनाव के नतीजों के पीछे भाजपा के नेताओं का अति आत्मविश्वासी होना बताया गया है. रतन शारदा लिखते हैं, '2024 के आम चुनाव के नतीजे अति आत्मविश्वासी भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए एक वास्तविकता के रूप में सामने आए हैं. उन्हें एहसास नहीं हुआ कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 400 पार का आह्वान उनके लिए एक लक्ष्य और विपक्ष को चुनौती देने जैसा था.'
कड़ी मेहनत से हासिल होता है लक्ष्य
लेख कहता है, 'कोई भी लक्ष्य मैदान पर कड़ी मेहनत से हासिल होता है न कि सोशल मीडिया पर पोस्टर और सेल्फी शेयर करने से. वे अपने बुलबुले में खुश थे. नरेंद्र मोदी के नाम की चमक का आनंद ले रहे थे. इसलिए उन्हें सड़कों पर आवाज सुनाई नहीं दे रही थी. ये परिणाम कई लोगों के लिए सबक हैं. ये चुनाव परिणाम इस बात का संकेत हैं कि भाजपा को अपनी राह सुधारने की जरूरत है. कई कारणों से नतीजे उनके पक्ष में नहीं रहे.'
भाजपा-आरएसएस के संबंधों पर डाला प्रकाश
रतन शारदा ने आगे लिखा, 'मैं इस आरोप का जवाब देना चाहता हूं कि इस चुनाव में आरएसएस ने भाजपा के लिए काम नहीं किया. मैं स्पष्ट कर दूं कि आरएसएस भाजपा की कोई फील्ड फोर्स नहीं है. दुनिया की इस सबसे बड़ी पार्टी के पास अपने कार्यकर्ता हैं. वोटर्स तक पहुंचना, पार्टी का एजेंडा समझना और वोटर कार्ड बांटना आदि नियमित चुनावी काम पार्टी की ही जिम्मेदारी है. आरएसएस केवल लोगों को उन मुद्दों के बारे में जागरूक करता है जो उन्हें और देश को प्रभावित करते हैं.'
भाजपा की नहीं की मदद
चुनाव में भाजपा को आरएसएस का साथ नहीं मिलने की बात का जवाब देते हुए उन्होंने लेख में लिखा कि 1973-77 के दौर को छोड़कर संघ कभी भी सीधे तौर पर राजनीति का हिस्सा नहीं रहा. वह एक असाधारण दौर था, उस समय लोकतंत्र को बचाने के लिए कड़ी मेहनत की गई थी.
शारदा आगे लिखते हैं, ' 2014 में आरएसएस ने 100% मतदान का आह्वान किया था. इस बार भी यह फैसला लिया गया कि संघ के कार्यकर्ता 10-15 लोगों की छोटी-छोटी स्थानीय, मोहल्ला, भवन और कार्यालय स्तर पर बैठकें आयोजित करेंगे और लोगों को मतदान करने का अनुरोध करेंगे. इसमें राष्ट्र निर्माण, राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रवादी ताकतों को समर्थन के मुद्दों पर भी चर्चा हुई. अकेले दिल्ली में संघ ने 1,20,000 बैठकें कीं.'
सांसदों और मंत्रियों को दिखाया आईना
इस लेख में सांसदों और मंत्रियों को आईना दिखाया गया है. शारदा ने अपने लेख में कहा, 'बीजेपी या आरएसएस के किसी भी कार्यकर्ता और आम जन की शिकायत ये है कि उनके लिए स्थानीय सांसद या विधायक से मिलना मुश्किल है. मंत्रियों को तो छोड़ दें सांसद और विधायक तक जनता के बीच नहीं जा रहे हैं, वे उनकी समस्याओं के प्रति उदासीन हैं. भाजपा के चुने हुए सांसद और मंत्री हमेशा इतने व्यस्त क्यों हैं. क्यों वे अपने निर्वाचन क्षेत्र में दिखाई नहीं देते, क्यों लोगों को सवालों का जवाब नहीं देते. '