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India Daily

'हम अपने पड़ोसियों का कभी अपमान या नुकसान नहीं करते, लेकिन...,'पहलगाम आतंकी हमले पर बोले RSS चीफ मोहन भागवत

आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने हिंदू धर्म की मूल भावना पर जोर देते हुए कहा कि शास्त्रों में जाति-पंथ का कोई भेद नहीं है. उन्होंने समाज से अपील की, "हिंदू समाज को अपने धर्म की गहराई को जानने और उसे समय के अनुरूप ढालने की जरूरत है.

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Edited By: Mayank Tiwari
RSS Chief Mohan Bhagwat
Courtesy: Social Media

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने शनिवार (26 अप्रैल) को कहा कि अहिंसा भारत का धर्म है, परंतु अत्याचारियों को दंडित करना भी उसी अहिंसा का हिस्सा है. दरअसल, दिल्ली में 'द हिंदू मेनिफेस्टो' पुस्तक के विमोचन समारोह में उन्होंने यह बात कही. यह बयान ऐसे समय में आया है, जब कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में आतंकी हमले की घटनाएं सामने आई हैं.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, मोहन भागवत ने कहा, "भगवान ने रावण का संहार किया, वह हिंसा नहीं थी. अत्याचारियों को रोकना धर्म है. ऐसे में राजा का कर्तव्य है कि वह जनता की रक्षा करे और दोषियों को दंड दे. उन्होंने मुंबई में दिए अपने एक हालिया भाषण का जिक्र करते हुए बताया कि रावण का वध उसके कल्याण के लिए था, जो हिंसा नहीं, बल्कि अहिंसा का रूप था. उनके अनुसार, जब कोई अत्याचारी सुधार की सभी सीमाएं लांघ देता है, तो उसका दमन धर्म का पालन है.

भारत की परंपरा और पड़ोसी देश

भागवत ने जोर देकर कहा कि भारत अपनी परंपरा के अनुसार कभी किसी पड़ोसी देश को नुकसान नहीं पहुंचाता. हालांकि, यदि कोई देश या समूह गलत रास्ता अपनाकर अत्याचार करता है, तो सरकार का दायित्व है कि वह अपनी जनता की रक्षा करे. हालांकि उन्होंने किसी देश का नाम नहीं लिया, लेकिन उनके बयान को पाकिस्तान पर परोक्ष टिप्पणी के रूप में देखा जा रहा है.

शास्त्रार्थ की महान परंपरा

पुस्तक विमोचन के दौरान भागवत ने भारतीय शास्त्रार्थ की परंपरा पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा, "शास्त्रार्थ से ही सही मार्ग निकलता है. ऐसे विमर्श से हिंदू धर्म का एक कालसुसंगत रूप समाज के सामने आएगा." उन्होंने पुस्तक में पेश सूत्रों की सराहना की, लेकिन गहन चर्चा की आवश्यकता पर भी बल दिया.

जाति-पंथ का भेद नहीं

भागवत ने हिंदू धर्म की मूल भावना पर जोर देते हुए कहा कि शास्त्रों में जाति-पंथ का कोई भेद नहीं है. उन्होंने समाज से अपील की, "हिंदू समाज को अपने धर्म की गहराई को जानने और उसे समय के अनुरूप ढालने की जरूरत है. उन्होंने सामाजिक विकृतियों को सुधारने की आवश्यकता पर भी बल दिया.

वैश्विक स्तर पर भारत की भूमिका

मोहन भागवत ने विश्व के सामने भारत की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा, "दुनिया ने दो रास्ते देख लिए हैं, अब तीसरा रास्ता भारत देगा." उन्होंने विश्वास जताया कि भारत न केवल एक नया वैचारिक मार्ग प्रदान करेगा, बल्कि एक संतुलित और मानवतावादी नजरिया भी देगा.