NDA के दरवाजे पर दस्तक देने के करीब जंयत चौधरी, जानें क्या हैं वो पांच वजहें?

जयंत चौधरी के NDA गठबंधन में हिस्सा बनने को लेकर चर्चाओं का बाजर गर्म हैं. कहा जा रहा है कि जल्द ही दोनों पार्टी के बड़े नेता एक मंच पर नजर आ सकते हैं. पश्चिमी यूपी में सपा के विजयरथ रोकने के लिए बीजेपी ने जयंत चौधरी को 4 लोकसभा सीटों का ऑफर दिया है.

Avinash Kumar Singh

नई दिल्ली: बीजेपी के साथ बढ़ती नजदीकियों को लेकर RLD अध्यक्ष जयंत चौधरी इन दिनों चर्चा के केंद्र में हैं. ऐसे में जंयत के अगले सियासी कदम को लेकर चर्चाओं का बाजर गर्म है.सूत्रों की मानें तो जयंत चौधरी को  4 सीटें ऑफर की हैं, उनमें कैराना, बागपत, मथुरा और अमरोहा सीट बताई जा रही है. वहीं NDA गठबंधन में एक राज्यसभा की सीट भी रालोद को दिये जाने की चर्चा है. 

दरअसल सपा और रालोद के बीच मनमुटाव लोकसभा चुनाव में सीट बंटवारे को लेकर हुआ है. जिसके बाद RLD के NDA में हिस्सा बनने को लेकर चर्चाओं का बाजर गर्म है. आईए हम आपको बताते हैं कि आखिर वो कौन सी पांच बड़ी वजहें है जिसकी वजह से RLD आने वाले दिनों में NDA गठबंधन का हिस्सा बन सकते है. 

1- RLD का बेस्ट BJP के साथ बेस्ट कॉम्बिनेशन पहले भी रहा हैं. साल 2002 के यूपी विधानसभा चुनाव में RLD ने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था, जिसमें उसके 14 विधायक जीते थे. वहीं 2009 लोकसभा चुनाव भी रालोद ने बीजेपी के साथ मिलकर लड़ा था, तो उसने अप्रत्याशित जीत हासिल की थी. BJP गठबंधन में रालोद के 5 सांसद लोकसभा चुनाव जीते थे. ऐसे में पुराने इतिहास को देखते हुए ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि आने वाले दिनों में सपा-RLD का गठबंधन हो सकता हैं. 

2- सूत्रों के मुताबिक समाजवादी पार्टी पश्चिमी यूपी की कैराना, मुजफ्फरनगर और बिजनौर सीट पर अपने उम्मीदवार को चुनावी मैदान में उतारना चाहती हैं. सूत्रों की मानें तो रालोद ने कैराना सीट की मांग की लेकिन सपा उस सीट को देने के पक्ष में नहीं हैं. कैराना सीट पर सपा की दावेदारी को लेकर RLD विधायक अशरफ अली ने विरोध जताया है. ऐसे में पार्टी के अंदर विरोध के स्वर को देखते हुए जंयत कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाना चाहते है जिससे चुनाव से पहले पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच में नराजगी पनपे. 

3- रालोद पिछले दो लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 में एक भी सीट नहीं जीत पाई है. ऐसे में RLD की कोशिश ज्यादा से ज्यादा सीट पर बारगेनिंग करके लोकसभा चुनाव लड़ने की हैं. RLD की सियासी कसरत लोकसभा में अपनी पार्टी का खाता खोलने को लेकर हैं, जिससे सदन में उनकी उपस्थिति दर्ज हो सके.

4- वहीं बीजेपी के साथ अगर RLD आती हैं तो उसे सियासी तौर पर बड़ा फायदा हो सकता है. बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने पर रालोद को केंद्र और यूपी के मंत्रिमंडल में भी जगह मिलने की संभवाना है. सत्ता में हिस्सेदार बनने से RLD के कार्यकर्ताओं को बड़ा फायदा हो सकता हैं. ऐसे में अब सबकी नजर जंयत चौधरी के अगले कदम पर टिकी हुई हैं. 

5- इस बार के लोकसभा चुनाव में जंयत चौधरी के सामने अजीत चौधरी की विरासत को बचाने की चुनौती होगा. यह चुनाव चौधरी अजीत सिंह के निधन के बाद पहला लोकसभा चुनाव होगा. बीते चुनावों के आधार पर कहा जा सकता है कि RLD का वोट बैंक लगातार कम हो रहा है और उनके कोर-वोटर उससे छिटकते जा रहे हैं. ऐसे में जंयत अपने कोर वोट बैंक की किलेबंदी करते हुए अपनी पार्टी के पुराने प्रदर्शन को दोहराना चाहती हैं.