RJD Congress looking for new political equations in Bihar: बिहार में नीतीश कुमार के महागठबंधन सरकार से बाहर निकलने के बाद और लोकसभा चुनाव से पहले जेडीयू की भरपाई के लिए राजद और कांग्रेस नए राजनीतिक समीकरण की तलाश में जुट गए हैं. कहा जा रहा है कि बिहार में I.N.D.I.A गठबंधन का सीनियर साझेदार राष्ट्रीय जनता दल एनडीए में शामिल उन छोटे दलों और नेताओं पर फोकस कर रहा है, जिनके संबंध नीतीश कुमार से बेहतर नहीं रहे हैं और नीतीश कुमार के एनडीए में जाने के बाद वे असहज महसूस कर रहे हैं.
एक राजद नेता के मुताबिक, वे (बीजेपी-जेडीयू) बिहार में सरकार बना सकते हैं, लेकिन 2024 के चुनाव अभी भी कुछ महीने दूर हैं. एनडीए में हर कोई नीतीश कुमार के साथ सहज नहीं है. आप एक महीने में कुछ नए राजनीतिक समीकरण बनते देख सकते हैं. राजद नेता के मुताबिक, बिहार में फिलहाल कम से कम तीन ऐसी राजनीतिक पार्टियां हैं, जिनका नीतीश कुमार या फिर भाजपा के साथ प्रेम और राजनीतिक दुश्मनी वाला रिश्ता रहा है. ये पार्टियों कभी महागठबंधन तो कभी एनडीए का हिस्सा रहीं हैं.
राजद नेता ने तीनों राजनीतिक पार्टियों का जिक्र करते हुए कहा कि इन तीन नामों में उपेन्द्र कुशवाह की राष्ट्रीय लोक जनता दल, जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा और मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी है. बता दें कि वर्तमान में, जेडीयू, बीजेपी और उसके सहयोगियों के पास बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से 39 सीटें हैं. इनमें जेडीयू के पास 16 और बीजेपी के पास 17 सीटें हैं. बाकी एलजेपी के पास हैं.
बात की जाए नीतीश कुमार के राजनीतिक ग्राफ की तो 2015 के मुकाबले जदयू का ग्राफ घटा है. जेडीयू 2015 में 71 सीटों से गिरकर 2020 के चुनावों में 43 सीटों पर आ गई. 2020 में जदयू को राज्य में कुल 10 फीसदी वोट मिले थे. इनमें से नीतीश कुमार की जाति कुर्मी का 3 फीसदी वोट शामिल है. इसके अलावा, नीतीश और उनकी पार्टी को महिलाओं, अत्यंत पिछड़ी जातियों और महादलितों का भी वोट मिला है.
राजद-कांग्रेस गठबंधन के पास यादव-मुस्लिम वोट बैंक के बीच एक मजबूत आधार है, जो बिहार के मतदाताओं का 31% है. इनके अलावा, रविदासी दलितों (लगभग 4%) का भी उन्हें समर्थन है. 2015 के विधानसभा चुनावों में राजद-जदयू-कांग्रेस गठबंधन ने 42% वोट हासिल किए थे और राज्य में जीत हासिल की थी. हालांकि, कभी ऐसा मौका नहीं आया, जब इन तीनों दलों ने एक साथ लोकसभा चुनाव लड़ा हो. अब कठिन परीक्षा राजद और कांग्रेस की है कि आखिर जदयू के जाने के बाद वोट फीसदी की कमी को कैसे पूरा किया जाए.