राममंदिर में रामलला के विराजने की कहानी... जानें 22 दिसंबर 1949 की आधीरात को क्या हुआ था?
22-23 दिसंबर 1949 की रात वाली घटना को हिंदुओं ने चमत्कार के रूप में प्रचारित किया, जबकि दूसरे पक्ष ने कहा कि रणनीतिक तरीके से कुछ लोगों ने बाबरी मस्जिद के अंदर रामलला की मूर्ति रख दी.
Ramlala presence story in Ram temple Know what happened at midnight on 22 December 1949: साल 1528 से लेकर आज यानी 12 जनवरी 2024 तक... करीब 496 साल के पुराने संघर्ष के बाद वो घड़ी बिलकुल नजदीक आ गई है, जब भव्य राम मंदिर का उद्घाटन होगा. आंदोलन के इस लंबे वक्त में कई ऐतिहासिक घटनाएं हुईं. इनमें से एक सबसे खास ये कि 22 दिसंबर 1949 तक इस पूरे संघर्ष को राम मंदिर आंदोलन के नाम से जाना जाता था, लेकिन अचानक 22 दिसंबर 1949 की आधी रात के बाद यानी 23 दिसंबर 1949 की सुबह से रामलला का जिक्र किया जाने लगा.
23 दिसंबर की सुबह अचानक अयोध्या में खबर फैलने लगी कि राम मंदिर में रामलला प्रकट हुए हैं. इसके बाद अयोध्या में राम मंदिर के बाहर 'भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौशल्या हितकारी / हर्षित महतारी मुनि मनहारी अद्भुत रूप विचारी' का जाप होने लगा. रामलला के प्रकट होने के बाद मुस्लिम पक्ष ने खूब विवाद किया. दोनों पक्षों में संघर्ष भी हुआ, आखिरकार एक सप्ताह बाद राममंदिर में ताला लगा दिया गया.
22-23 दिसंबर 1949 की रात वाली घटना को हिंदुओं ने चमत्कार के रूप में प्रचारित किया, जबकि दूसरे पक्ष ने कहा कि रणनीतिक तरीके से कुछ लोगों ने बाबरी मस्जिद के अंदर रामलला की मूर्ति रख दी.
आखिर सर्दभरी उस रात को क्या हुआ था?
जिस दिन बाबरी मस्जिद में रामलाल प्रकट हुए, उस दिन से पहले विवादित ढांचा खंडहर हो चुका था. मुस्लिमों के नमाज पढ़ने के लिए इसे सिर्फ शुक्रवार को ही खोला जाता था, उसमें भी मात्र कुछ लोग ही यहां नमाज पढ़ने आते थे. हिंदू पक्ष का दावा है कि मस्जिद के मुख्य गुंबद के ठीक नीचे एक चबूतरा था, जिसे राम चबूतरा कहा जाता था, जहां रामलला (भगवान राम के बाल स्वरूप) की मूर्ति विराजमान थी.
जब यहां रामलला के प्रकट होने की खबर फैली, तब अयोध्या थाने के SHO रामदेव दुबे विवादित ढांचे के बाहर पहुंचे. वहां उन्होंने देखा कि हजारों की संख्या में रामभक्त वहां मौजूद थे और ये सभी भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौशल्या हितकारी, हर्षित महतारी मुनि मनहारी अद्भुत रूप विचारी... गा रहे थे.
पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव की किताब 'अयोध्या: 6 दिसंबर 1992' में इस घटना का जिक्र है. किताब में लिखा गया है कि जब अयोध्या के SHO मौके पर पहुंचे तो भीड़ देखकर वे तत्काल वहां से निकल गए. उन्होंने थाने पहुंचकर IPC की धारा 147/448/295 के तहत FIR लिखी.
SHO ने FIR में क्या लिखा?
पीवी नरसिंह राव की किताब के मुताबिक, SHO ने FIR में लिखा- 22 दिसंबर की आधी रात कुछ लोग मस्जिद के अंदर पहुंचे और वहां रामलला की मूर्ति रख दी. जहां मूर्ति रखी गई, उस स्थान को लाल और भगवा रंग के कपड़ों से सजा दिया गया. इस दौरान भीड़ ने न ड्यूटी पर तैनात कॉन्स्टेबल की सुनी और नही पीएसी की. SHO की ओर से दर्ज की गई FIR के बाद ये बात राज्य और केंद्र सरकार के कानों तक पहुंची. बाद में सरकार ने फैसला लिया कि जहां रामलला प्रकट हुए हैं, वहां पूर्व की स्थिति बहाल की जाए.
इस संबंध में अयोध्या के जिलाधिकारी केके नायर तक आदेश पहुंचाया गया. काफी मश्क्कत के बाद जिलाधिकारी की ओर से चिट्ठी लिखकर सलाह दी गई जिसके बाद वहां रखी मूर्ति को हटाया तो नहीं गया, लेकिन वहां जालीनुमा गेट लगा दिया गया. पूजा के लिए सिर्फ एक पंडित को अनुमति दी गई और आम लोगों के दर्शन पर प्रतिबंध लगा दिया गया. बाद में काफी लंबा संघर्ष चला. 6 दिसंबर 1992 को मस्जिद ढहा दी गई. अब सुप्रीम कोर्ट के 9 नवंबर 2019 के आदेश के बाद अयोध्या में रामलला के भव्य मंदिर का निर्माण हो रहा है.
क्या भव्य राम मंदिर में होंगे दो-दो रामलला?
भव्य राम मंदिर जब अपना आकार लेने की दिशा के अंतिम चरण में है, तो हम आपको थोड़ा पीछे ले चलते हैं. बात पिछले साल जनवरी की है. खबर सामने आई कि नेपाल की काली गंडकी नदी से करीब छह करोड़ साल पुरानी दो शिलाएं निकालीं गईं. एक शिला 26 जबकि दूसरी शिला 14 टन वजनी थीं. नदी से निकाले जाने के बाद इन्हें विधि-विधान से पूजा-अर्चना के बाद 26 जनवरी को सड़क मार्ग से अयोध्या के लिए रवाना किया गया. फरवरी के पहले हफ्ते में दोनों शिलाएं बिहार के रास्ते यूपी के कुशीनगर और गोरखपुर होते हुए अयोध्या पहुंचीं.
कहा गया कि इन शिलाओं से भगवान राम की मूर्ति बनाई जाएंगी. हालांकि बाद में कई जगह की शिलाओं का परीक्षण किया गया, बाद में निर्णय लिया गया कि भगवान राम की मूर्ति कर्नाटक से लाई गई शिलाओं से बनाई जाएंगी. फिलहाल, अरुण योगीराज की बनाई गई प्रतिमा का चयन किया गया है. अब सवाल ये कि जब रामलला की मूर्ति पहले से है तो फिर नई प्रतिमा क्यों बनाई गई?
इस बारे में श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य कामेश्वर चौपाल ने जानकारी दी थी. उन्होंने बताया था कि शास्त्रों में जैसा बताया गया है, उसी के मुताबिक, रामलला की प्रतिमा तैयार करवाई जा रही है. इसके बाद सवाल उठा कि क्या 1949 में प्रकट हुई रामलला की मूर्ति और बनाई गई दोनों मूर्ति भव्य राम मंदिर में होगी, तो उन्होंने बताया था कि अधिकतर मंदिरों में 2 प्रतिमाएं होती हैं. एक मूर्ति को ‘उत्सव मूर्ति’ जबकि दूसरे को ‘प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति’ कहा जाता है.
प्राण प्रतिष्ठित की गई मूर्ति को कहीं दूसरी जगह नहीं ले जाया जा सकता. ये तो बड़ी बात होगी, प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति को खिसकाया भी नहीं जा सकता. उन्होंने बताया कि अगर कोई झांकी या फिर शोभा यात्रा निकलेगी तो उसमें ‘उत्सव मूर्ति’ का उपयोग किया जाएगा. ऐसे में ये स्पष्ट है कि जिस मूर्ति को 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठित किया जाएगा, वो नई मूर्ति होगी, जबकि 1949 को प्रकट हुए रामलला की मूर्ति को उत्सव मूर्ति के रूप में उपयोग किया जाएगा.