भारत की आजादी की लड़ाई में अनेक महान क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहुति दी. 19 दिसंबर का दिन भारत में शहादत दिवस के रूप में मनाया जाता है. 19 दिसंबर 1927 यही वह तारीख और दिन था जब काकोरी कांड में शामिल क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और रोशन सिंह को अंग्रेजों ने फांसी दी थी. इन क्रांतिकारियों की शहादत ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नया मुकाम दिया और उनका बलिदान आज भी भारतीय जनता के दिलों में अमर है.
काकोरी कांड
फांसी पर चढ़ाए गए क्रांतिकारी
19 दिसंबर 1927 को राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और रोशन सिंह को अंग्रेजों ने फांसी दी. इन क्रांतिकारियों की शहादत ने भारत की जनता के खून में अंग्रेजों के प्रति उबाल लाने का काम किया.
राम प्रसाद बिस्मिल: बिस्मिल एक महान कवि और क्रांतिकारी थे. उनके द्वारा लिखा गया 'सरफरोशी की तमन्ना' गीत आज भी देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत करता है. उन्हें गोरखपुर जेल में फांसी दी गई थी.
अशफाक उल्ला खां: अशफाक उल्ला खां ने अपने देश की स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था. उन्हें फैजाबाद में फांसी दी गई थी. उनकी शहादत ने हिंदू-मुस्लिम एकता को भी मजबूत किया, क्योंकि उनका संबंध हिंदू-मुस्लिम दोनों समुदायों से था.
रोशन सिंह: रोशन सिंह का काकोरी कांड से कोई सीधा संबंध नहीं था, लेकिन एक अन्य मामले में उन्हें फांसी की सजा दिलवायी गई. उन्हें इलाहाबाद में फांसी दी गई थी. उनका बलिदान भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अमर रहेगा.
अंग्रेजों की साजिश
अंग्रेजों को इन क्रांतिकारियों से बहुत डर था, क्योंकि उनके खिलाफ जन समर्थन बढ़ता जा रहा था. इसलिए उन्होंने इन क्रांतिकारियों को अलग-अलग जेलों में रखा और उन्हें जल्द से जल्द फांसी देने की योजना बनाई. अंग्रेजों ने इनकी शहादत को अपने लिए खतरे के रूप में देखा और उनके खिलाफ विभिन्न आरोपों के तहत उन्हें दोषी ठहराया.
क्रांतिकारियों का अंतिम संघर्ष
जब राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई, तो इन क्रांतिकारियों ने बड़े धैर्य और साहस के साथ फांसी को गले लगाया. उनके अंतिम शब्दों में केवल देशभक्ति की भावना थी और वे अपने देश की स्वतंत्रता के लिए बलिदान देने को तैयार थे.