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India Daily

मंदिर आंदोलन की सबसे बड़ी गुरुदक्षिणा, महंत अवैद्यनाथ का वो सपना जिसे पूरा करने जा रहे हैं योगी आदित्यनाथ

राम मंदिर आंदोलन को शुरू करने वाले कुछ लोगों का नाम लिया जाए, तो उनमें से एक नाम महंत अवैद्यनाथ का आता है. वे गोरखनाथ पीठ के महंत थे. उनकी दिल की इच्छा थी कि राम जन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर बने. इसके लिए उन्होंने ताउम्र वे संघर्ष करते रहे और आंदोलन की अलख जगाते रहे. लेकिन उनके जीते-जी ये सपना पूरा न हो पाया. यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ को इसी मठ का उन्होंने महंत भी बनाया और राजनीति में भी लेकर आए. उत्तराखंड के नौजवान अजय सिंह बिष्ट को योगी आदित्यनाथ की पहचान भी उन्होंने ही दी. 22 जनवरी को जब अयोध्या में नए राम मंदिर में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा होगी और योगी उसके साक्षी बनेंगे, तो ये अपने गुरु के लिए उनकी सबसे बड़ी गुरुदक्षिणा होगी.

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Edited By: Om Pratap
Ram mandir pran pratishtha mahant avaidyanath yogi adityanath gurudakshina

Yogi Adityanath GuruDakshina: महाभारत तो आपने देखी और सुनी होगी. एक किरदार है, जिसका नाम द्रोणाचार्य होता है. दो और किरदार होते हैं, जिनका नाम अर्जुन और एकलव्य होता है. कहानी के मुताबिक, द्रोणाचार्य अपने प्रिय शिष्य अर्जुन को धनुर्विद्या में सर्वश्रेष्ठ बनाना चाहते थे. वहीं, एकलव्य भी इस कला में पारंगत होना चाहते थे और उन्होंने द्रोणाचार्य से अपनी इच्छा का जिक्र भी किया था, लेकिन गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य को इस विद्या में निपुण बनाने से इनकार कर दिया. इसके बाद एकलव्य ने द्रोणाचार्य की मूर्ति बनाई और उस मूर्ति को साक्षात् गुरु मान कर अभ्यास यानी प्रैक्टिस करने लगे. उनकी मेहनत भी रंग लाई और वे धनुर्विद्या में पारंगत हो गए. 

कहा जाता है कि कही से गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य का कौशल देख लिया. उन्होंने पूछा कि तुम्हें मैंने तो मना कर दिया, फिर इतनी  अच्छी धनुर्विद्या कहां से सीखी? सवाल के जवाब में एकलव्य ने पूरी बात बताई, यानी मूर्ति वाली बात. फिर गुरु द्रोण को लगा कि ये (एकलव्य) अर्जुन से बड़ा धनुर्धर बन गया. कुछ देर सोच विचार के बाद उन्होंने कहा कि इस लिहाज से तो मैं तुम्हारा गुरू हो गया. क्या तुम मुझे गुरुदक्षिणा दे सकते हो? एकलव्य ने बिना सोचे कहा- हां बिलकुल. फिर द्रोणाचार्य ने एकलव्य से उनका अंगूठा मांग लिया ताकि वो अर्जुन से बड़ा धनुर्धर न बन पाए. इस घटना के बाद आज तक एकलव्य को सबसे बड़ा शिष्य बनाया जाता है और उनकी ओर से त्याग किए गए अंगूठे को सबसे बड़ा गुरुदक्षिणा... 

अब आप सोचेंगे कि जहां पूरे देश में रामायण की बात हो रही है, भगवान राम की बात हो रही है, तो हम आपको गुरु द्रोणाचार्य, अर्जुन और एकलव्य की कहानी क्यों बता रहे हैं? चलिए इसे क्लियर कर देते हैं... दरअसल, हम आज आपको राम मंदिर से जुड़ी एक कहानी बताएंगे, जिसमें एक शिष्य ने अपने गुरु के सपने को पूरा किया है. कौन थे वो गुरु? क्या था उनका सपना? कौन था उनका शिष्य? शिष्य ने आखिर गुरु के किस सपने को पूरा किया जिसका हम जिक्र करने वाले हैं?

आइए पूरी कहानी जानते हैं...

जिस उम्र में लड़के करियर को लेकर फैसले लेते हैं, उस उम्र में उत्तराखंड (तब उत्तर प्रदेश) के पौड़ी गढ़वाल से एक लड़का उत्तर प्रदेश के गोरखपुर आता है. यहां आने के बाद उनकी मुलाकात महंत अवैद्यनाथ से होती है. महंत के कहने पर वे परिवार को त्याग कर संन्यास ग्रहण कर लेते हैं. इस लड़के का नाम था अजय सिंह बिष्ट. अजय सिंह बिष्ट को महंत अवैद्यनाथ से योगी आदित्यनाथ की पहचान दी. ये वो दौर होता है, जब महंत अवैद्यनाथ एक बड़े सपने को लेकर जी रहे थे, इस सपने को महंत हर हाल में पूरा करना चाहते थे. ये सपना था अयोध्या में एक भव्य राम मंदिर का. लेकिन उनके जीते जी ये सपना पूरा नहीं हो पाया, लेकिन जब उनके चेले यानी शिष्य की बारी आई, तो सपने ने हकीकत का रूप ले लिया. अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनकर तैयार है और 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होनी है.

सबसे पहले बात राम मंदिर आंदोलन और महंत अवैद्यनाथ की...

साल 1935... ये वो समय था, जब गोरक्षपीठ गोरखपुर (मंदिर) के महंत दिग्विजय नाथ हुआ करते थे. इस समय दिग्विजय नाथ ने ऐसा मुद्दा उठाया, जिसके बाद गोरखनाथ मठ हिंदूवादी राजनीतिक गतिविधियों का सेंटर बन गया. चीजें रफ्तार से चलीं और करीब दो साल बाद महंत दिग्विजय नाथ हिंदू महासभा में शामिल हो गए. 1949 में उन्होंने अयोध्या में स्वयंसेवकों की एक टीम के साथ बैठक की. कुछ दिनों बाद ही 22-23 दिसंबर 1949 की रात विवादित ढांचे में रामलला की मूर्ति प्रकट हुई.

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इसके बाद महंत दिग्विजय नाथ ने लोगों से पूजा-अर्चना की अपील की. कहा जाता है कि रामलला के प्रकट होने और विवादित स्थल पर ताला लगाए जाने के बाद राम मंदिर आंदोलन ने उग्र रूप ले लिया. इसके बाद महंत दिग्विजय नाथ 1969 (महानिर्वाण) से पहले तक आंदोलन को बढ़ावा देते रहे. महंत दिग्विजय नाथ के महानिर्वाण के बाद अवैद्यनाथ गोरखनाथ पीठ के नए महंत बने. अपने गुरु के नक्शे कदम पर चलते हुए महंत अवेद्यनाथ ने 1984 में श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन किया. 

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साल 1985... 31 अक्टूबर को कर्नाटक के उडुपी में धर्म संसद का आयोजन  किया गया. इस दौरान अवैद्यनाथ ने दिगंबर अखाड़े के महंत रामचन्द्र दास परमहंस के साथ मिलकर विवादित ढांचे का ताला खोलने और रामलला के पूजा की अनुमति की मांग की. उनकी मेहनत रंग लाई और अयोध्या के एक वकील की अपील पर तत्कालीन डीएम ने 1 फरवरी 1986 को विवादित परिसर का ताला खोलने का आदेश दिया. 8 महीने बाद महंत अवेद्यनाथ ने राम जन्मभूमि पर राम मंदिर के 'शिलान्यास' की घोषणा कर दी और कहा कि भव्य मंदिर की नींव 9 नवंबर 1989 को रखी जाएगी. हालांकि, बाद में यूपी के मुख्यमंत्री के आग्रह पर इस घोषणा को कुछ दिन के लिए टाल दिया गया.

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साल 1992... ये वो समय था, जब पीवी नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री थे. राम मंदिर मुद्दे पर तत्कालीन पीएम से मिलने वाले एक प्रतिनिधि मंडल को महंत अवैद्यनाथ ने लीड किया. इसके बाद ही महंत अवैद्यनाथ ने 2 दिसंबर 1992 को कारसेवा शुरू करने की घोषणा की. 

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कार सेवा की घोषणा के बाद... कहानी में अजय सिंह बिष्ट यानी योगी आदित्यनाथ की एंट्री

कहा जाता है कि राम मंदिर आंदोलन से प्रभावित युवा अजय सिंह बिष्ट गोरक्षपीठ गोरखपुर पहुंचे. महंत अवैद्यनाथ से अजय सिंह बिष्ट की मुलाकात हुई और फिर यहां से वे योगी आदित्यनाथ कहलाए. परिवार से संन्यास लेने के बाद योगी आदित्यनाथ श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति की बैठकों में शामिल होने लगे. महंत ने ही उन्हें इन बैठकों को आयोजित कराने का जिम्मा भी दिया था. 1992 से लेकर 1996 तक योगी आदित्यनाथ ने ऐसा काम किया कि महंत अवैद्यनाथ उनसे प्रभावित होकर अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया. 1998 में योगी आदित्यनाथ ने राजनीति में कदम रखा और गोरखपुर लोकसभा सीट से लगातार चार बार सांसद चुने गए.

शायद अवैद्यनाथ को पता था कि बिना राजनीति के राम मंदिर का सपना पूरा नहीं हो सकता. इसलिए उन्होंने 1662 में राजनीति में एंट्री ली. मनीराम विधानसभा सीट से वे पांच (1962, 1967, 1969, 1974 और 1977) बार विधायक चुने गए. 1970 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में गोरखपुर से लोकसभा सदस्य चुने गए. 1989 में भी उन्होंने जीत हासिल की. 1991 और 1996 में जीतने के बाद मठ के साथ साथ राजनीतिक विरासत भी योगी आदित्यनाथ को सौंप दी.

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कहा जाता है  कि 1997-98 में राम मंदिर आंदोलन थोड़ा ठंडा पड़ने लगा था, लेकिन जब 1998 में जब योगी आदित्यनाथ पहली बार संसद पहुंचे, तो उन्होंने एक बार फिर राम मंदिर के मुद्दे को धार देने के लिए सदन में राम मंदिर का मुद्दा उठा दिया. तब से लेकर 2017 तक योगी आदित्यनाथ समय-समय पर अपने बयानों के जरिए राम मंदिर का जिक्र करते रहे और उनके बयानों से लगा कि वे इस बात को लेकर बिलकुल निश्चिंत हैं कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनकर रहेगा. 

साल: 2017... ये वो साल था, जब योगी आदित्यनाथ उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए गए. ये वही उत्तर प्रदेश था, जहां के अयोध्या में उनके गुरु और दादा गुरु ने भव्य राम मंदिर का सपना देखा था. तो अब बारी शिष्य की थी. शिष्य को अपने गुरु और गुरु के गुरु को दक्षिणा देनी थी. लिहाजा योगी आदित्यनाथ ने राम मंदिर के निर्माण में अपनी निजी दिलचस्पी दिखानी शुरु कर दी. इस बात का सबूत है, एक सीएम के तौर पर उनकी अयोध्या यात्रा. आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि मुख्यमंत्री बनने के बाद से अब तक इतना बिजी शेड्यूल रहने के बाद भी योगी आदित्यनाथ 66 बार (19 जनवरी तक) रामनगरी जा चुके हैं.

इस वक्त भी जब भगवान राम के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम की तैयारी चल रही है, योगी उनके पल-पल की जानकारी ले रहे हैं और सारी चीजें वक्त पर अच्छे से हो उसपर नजर रख रहे हैं. शायद योगी जानते हैं कि राममंदिर बनने का सपना समूचे हिन्दुस्तान के साथ-साथ उनके गुरु का भी था. उस गुरु का था, जिसने एक आम से युवक को ना सिर्फ एक नई पहचान दी बल्कि हिंदुत्व का फायरब्रांड चेहरा बनाया. ये उसी गुरु का आशीर्वाद है कि योगी आज ना सिर्फ सत्ता के शिखर पर हैं बल्कि देश में लोकप्रियता के मामले में बड़े-बड़ों से आगे हैं.

इस वजह से की दीपोत्सव की शुरुआत 

अयोध्या में राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण का रास्ता 9 नवंबर 2019 को साफ हुआ था, जब सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में विवादित भूमि को हिंदू पक्ष को सौंप दिया था. इसे गुरु का आशीर्वाद और योगी की किस्मत ही कह सकते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने भी अयोध्या फैसला हिन्दु पक्ष के फेवर में तब सुनाया जब योगी यूपी के सीएम थे. योगी जानते थे कि मंदिर बनने मेें वक्त लगेगा. इसलिए अपने पहले कार्यकाल के खत्म होने से पहले उन्होंने अयोध्या में दीपोत्सव की शुरुआत कर दी थी. उसके बाद गुरु की आर्शीवाद देखिए दूसरे कार्यकाल के शुरू में ही उन्हें अपने जीवन  की सबसे बड़ी गुरु दक्षिणा यानी मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा का मौका मिल रहा है. एक शिष्य की तरफ से गुरु को इससे बड़ी श्रद्धांजलि और क्या हो सकती है.