Ram Mandir Movement Leaders: अयोध्या में भगवान राम के भव्य मंदिर के लिए राम भक्तों ने करीब करीब 500 साल की लंबी लड़ाई. इल लंबी लड़ाई और संघर्ष के बाद राम भक्तों का सपना अब साकार होने जा रहे है. 22 जनवरी को प्रभु श्रीराम अब अपने घर में विराजमान होने वाले हैं. राम मंदिर के लिए राम भक्तों से लेकर कई राजनेताओं ने लड़ाई लड़ी इस बात से झुठलाया नहीं जा सकता है. लेकिन आज हम आपको उन लोगों के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने राम मंदिर के लिए कई संघर्ष किए लेकिन गुमनाम रह गए.
मोरोपंत पिंगले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक थे. इन्होंने शुरुआत से ही इस आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी. राम मंदिर के लिए रणनीति बनाने में पिंगले की अहम भूमिका थी.
शरद कुमार कोठारी और राम कुमार कोठारी दोनों सगे भाई थे. ये दोनों भाई 1990 में कोलकाता से कारसेवा के लिए अयोध्या आए थे. 2 नवंबर 1990 को जब दोनों भाई कारसेवा कर रहे थे, तो पुलिस ने दोनों को गोली मार दी.
देवरहा बाबा देवरिया के पास सरयू नदी के तट पर रहते थे. राजेंद्र प्रसाद, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेता इनके अनुयायी थे. कहा जाता है कि एक बार राजीव गांधी शिलान्यास के संबंध में उनकी सलाह और आशीर्वाद लेने गए तो देवरहा बाबा ने उनसे कहा- 'बच्चा, हो जाने दो'.
बैरागी अभिराम दास का नाम 22-23 दिसंबर 1949 की मध्यरात्रि को विवादित ढांचे में भगवान राम की मूर्ति उभरने के बाद सामने आया. इसके बाद प्रशासन ने उन्हें FIR में मुख्य आरोपी बनाया था. अयोध्या में लोग उन्हें 'योद्धा साधु' के नाम से जानते थे. 1981 में उनकी मृत्यु हो गई.
महंत अवैद्यनाथ राम मंदिर आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए 1980 के दशक के मध्य में स्थापित राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के पहले अध्यक्ष थे. वह हिंदू महासभा के सदस्य थे. इसके अलावा वह पांच बार विधायक रहे और चार बार सांसद. बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में उन्हें आरोपी बनाया गया था.
1980 के दशक में रामजन्मभूमि आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी. 1982 से 1984 तक यूपी में पुलिस महानिदेशक रहे और फिर सेवानिवृत्ति के बाद वह विश्व हिंदू परिषद में शामिल हुए. 1990 में अयोध्या में कारसेवा में भाग लेने के चलते उनकी गिरफ्तारी हुई थी.
उद्योगपति परिवार से आने विष्णु हरि डालमिया 1992 से 2005 तक VHP के अध्यक्ष रहे. बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था.
रामजन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के महासचिव के रूप में दाऊ दयाल खन्ना ने राम मंदिर आंदोलन की जमीन तैयार करने में एक अहम भूमिका निभाई थी. खन्ना ने 1983 में अयोध्या, मथुरा और काशी में मंदिरों के पुनर्निर्माण का मुद्दा उठाया था. बिहार के सीतामढ़ी से 1984 में उन्होंने राम मंदिर के लिए आंदोलन की पहली 'यात्राओं' में से एक का नेतृत्व किया था.
1984 के दशक में राम मंदिर आंदोलन की रूपरेखा तैयार करने के लिए स्वामी वामदेव ने 400 से अधिक हिंदू नेताओं के साथ 15 दिन तक मंथन किया था. अयोध्या में साल 1990 में उन्होंने कारसेवकों का नेतृत्व किया था. वृद्धावस्था में भी वह 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिराने के समय अयोध्या में मौजूद थे.