आदित्य कुमार/नोएडा: पांच सौ साल के इंतजार के बाद अयोध्या में राम लला को स्थापित किया जा रहा है. 22 जनवरी को अयोध्या में राम लला का प्राण प्रतिष्ठा होना होना है. उससे पहले तमाम तैयारी शुरू कर दी गई है, अयोध्या को सजाया जा रहा है, देश विदेश से मेहमानों को आमंत्रित किया गया है. अयोध्या में राम और सीता से जुड़ी तमाम चीजों को स्थापित करने की कोशिश की जा रही है. उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार है, योगी आदित्यनाथ की सरकार को राम राज्य से जोड़कर देखा जाता है. ऐसे में भगवान राम के राज्य के झंडे को कैसे भूल सकते हैं?
भगवान राम का अयोध्या राज्य और प्रतीक चिन्ह
भगवान राम के राज्य अयोध्या के झंडे पर कोविदार पेड़ को चिन्हित किया गया है. इसकी जानकारी वाल्मीकि रामायण में मिलती है. अब यह कोविदार पेड़ अयोध्या में राम मंदिर प्रांगण में लगाया जाएगा. राम राज्य के झंडे और उसमें बनी कोविदार के पेड़ को मंदिर प्रांगण में स्थापित करने के लिए प्रयास करने वाले इंडोलॉजिस्ट (Student of Indian literature, history, philosophy) ललित मिश्रा से इंडिया डेली लाइव ने बातचीत की. उन्होंने बताया कि वाल्मीकि रामायण में इस झंडे का जिक्र महर्षि वाल्मीकि ने किया है. कालिदास ने तो कोविदार के पेड़ पर काफी लिखा है.
मेवाड़ के महाराणाओं ने आगे बढ़ाई परंपरा
ललित मिश्रा बताते हैं कि वाल्मीकि रामायण में कोविदार पेड़ वाले झंडे (ध्वज) का जिक्र किया गया. लेकिन समय के साथ-साथ यह विलुप्त होता गया. ललित बताते हैं कि अयोध्या शोध संस्थान के लिए मैं शोध कर रहा हूँ. मेरा शोध मेवाड़ के महाराणाओं द्वारा निर्मित कराई गई चित्रमय रामायण पर था. महाराणा प्रताप की तीसरी पीढी में हुए महाराणा जगत सिंह ने रामायण की हर एक कहानी को चित्र के माध्यम से प्रदर्षित किया. जिसमें से एक चित्र में ध्वज के साथ भरत का रथ दर्शाया गया था.
रावण से युद्ध के बाद कोविदार वाले झंडे से ही लक्ष्मण ने अयोध्या की सेना को पहचाना
ललित मिश्रा बताते हैं कि मैं पहले भी ध्वजों के इतिहास पर रिसर्च कर चुका था. अयोध्या के प्राचीन ध्वज और उसके महत्व को देखते हुए मैंने मंदिर निर्माण कमिटी के चेयरमैन नृपेंद मिश्र के सामने रखा. हमने प्रेजेंटेशन भी दिया था, उसके बाद मंदिर के पौधरोपण करने वाली कंपनी जीएमआर ने निर्णय लिया कि कोविदार पेड़ को मंदिर प्रांगण में लगाया जायेगा. ललित मिश्र ने बताया कि वाल्मीकि ने रामायण के अयोध्या कांड में अयोध्या के प्राचीन ध्वज का उल्लेख किया है. सेना सहित जब भरत श्रीराम से अयोध्या वापस लौटने की प्रार्थना करने के लिए चित्रकूट गये थे, तब उनके रथ पर कोविदार पेड़ ध्वजा पर अंकित था. जिसे लक्ष्मण ने दूर से देखकर पहचान लिया था कि यह अयोध्या की सेना है. अयोध्या कांड के अनुसार लक्ष्मण ने जब यह जानकारी राम को दी तो वे भी मान गये कि सेना सहित भरत ही आ रहे होंगे. हालांकि लक्ष्मण को संदेह था कि भरत शायद उन पर हमला करने के उद्देश्य से आ रहे हैं और वे क्रोधित हो जाते है किंतु राम लक्ष्मण को शांत करते है.
कोविदार को ही ही क्यों मिला झंडे में स्थान
इंडोलॉजिस्ट ललित मिश्रा के अनुसार कोविदार पेड़ प्राचीन पौराणिक काल से ही अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है. इसका सर्वप्रथम उल्लेख ऋषि कश्यप एवं अदिति के संवाद में मिलता है. श्रीमद भागवत पुराण में भी महत्वपूर्ण पेड़ों की सूची में कोविदार पेड़ शामिल रहा है. कालिदास भी कोविदार पेड़ एवं इसके पुष्पों की सुंदरता पर मुग्ध थे. उन्होने लिखा है कि ऐसा कौन मनुष्य होगा जिसका हृदय कोविदार की सुंदरता देखकर विदीर्ण न हो जाये, यानी खुश न हो जाए?
अपने औषधीय गुणों के लिए भी जाना जाता है कोविदार
कोविदार पेड़ में अनेक औषधीय गुण पाये जाते हैं जिनका वर्णन आयुर्वेद के ग्रंथो में पाया जाता है. कोविदार एवं कचनार एक ही प्रजाति के पेड़ हैं, इस प्रजाति के पेड़ प्रदूषण को भी कम करते हैं. यह थायराईड, मधुमेह (शुगर) एवं शरीर के भीतर होने वाले अल्सर और ट्यूमर के इलाज में उपयोगी पाये गये हैं.