CEC-EC Bill 2023: राज्यसभा ने मंगलवार (12 दिसंबर) को मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें एवं पदावधि) विधेयक 2023 को ध्वनि मत से मंजूरी दे दी. राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद अब यह बिल कानून की शक्ल ले लेगा. सरल भाषा में आप इस विधेयक को CEC-EC बिल 2023 कह सकते हैं.
सरकार के हाथों की कठपुतली बन जाएगा चुनाव आयोग- विपक्ष
हालांकि विपक्ष इस बिल से खुश नहीं है. मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस समेत सभी विपक्षी पार्टियों ने कहा कि इस बिल के आने के बाद चुनाव आयोग सरकार के हाथों की कठपुतली बन जाएगा. वहीं सरकार का तर्क है कि नया कानून लाना जरूरी था क्योंकि पुराने कानून में कुछ कमजोरियां थीं.
'भारतीय चुनाव आयोग की निष्पक्षता हुई खत्म'
आम आदमी पार्टी के राज्य सभा सांसद राघव चड्ढा ने कहा कि ये एक विधेयक नहीं है, यह एक बुलडोजर है जिससे बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने भारतीय चुनाव आयोग की निष्पक्षता खत्म कर दी है.
वहीं, डीएमके सांसद टी सिवा ने कहा कि कि यह पूरी तरह से सरकार के हित में होगा, ये उस तरह से निष्पक्ष नहीं हो सकता जैसी इससे अपेक्षा की जाती है. एक लोकतांत्रिक देश में ऐसा कैसे स्वीकार्य हो सकता है.
क्या कहता है विधेयक
बता दें कि इस विधेयक को 10 अगस्त 2023 को पेश किया गया था. विधेयक के तहत एक चयन समिति की ओर से भेजी गई सिफारिशों के आधार पर भारत के राष्ट्रपति मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति करेंगे.
स्पष्ट शब्दों में कहें तो यह बिल चुनाव आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा शर्तें और कार्य संचालन) अधिनियम, 1991 की जगह लेगा. नए बिल के कानून बनने के बाद भारत का मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त एक चयन समिति की सिफारिश के आधार पर राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए जाएंगे. इस समिति में प्रधानमंत्री, एक कैबिनेट मंत्री और लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता शामिल होगा.
आज का दिन भारत के लोकतंत्र के लिए कलंक- मनीष तिवारी
वहीं कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी ने बिल का विरोध करते हुए कहा- 'एक बात समझ में नहीं आई, क्या सरकार को मुख्य न्यायाधीश पर भरोसा नहीं हैं, क्या सरकार को शीर्ष अदालत पर भरोसा नहीं है.'
उन्होंने आगे कहा, 'तीन सदस्य थे- प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष और चीफ जस्टिस. अब चीफ जस्टिस को हटाकर वहां एक मंत्री को लाएंगे जिसे राष्ट्रपति पीएम की सिफारिश पर नियुक्त करेगा. वहां निष्पक्षता कहां रहेगी, वहां योग्यता कहां रहेगी. आज का दिन भारत के लोकतंत्र के लिए कलंक है जब स्वतंत्र-निष्पक्ष चुनाव को प्रभावित करने के लिए मोदी सरकार ने आयोग के गठन की प्रक्रिया बदल दी है.'