उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा हाल ही में न्यायपालिका को लेकर दिए गए विवादास्पद बयान के बाद सियासी गलियारों में हलचल तेज हो गई है. न्यायपालिका के संबंध में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की तीखी टिप्पणियों पर सीनियर एडवोकेट और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने भी तीखी प्रतिक्रिया जताई है. जहां पिछले हफ्ते पहली बार सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा विचारार्थ सुरक्षित रखे गए विधेयकों पर तारीख से 3 महीने के भीतर फैसला लेना चाहिए.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने दावा किया कि न्यायपालिका अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल करके अपनी सीमाओं का अतिक्रमण कर रही है. उन्होंने कहा यह एक ऐसा प्रावधान है जो सुप्रीम कोर्ट को अपने समक्ष आने वाले किसी भी मामले में "पूर्ण न्याय" करने के लिए आवश्यक आदेश जारी करने का अधिकार देता है. उपराष्ट्रपति ने अनुच्छेद 142 को "न्यायपालिका के लिए चौबीसों घंटे उपलब्ध लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ परमाणु मिसाइल" बताया.
राज्यसभा सांसद ने बताया इंदिरा गांधी का किस्सा
इस मामले पर समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने 1975 के सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को याद किया जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के चुनाव को अमान्य करार दिया गया था. उन्होंने कहा, "लोगों को याद होगा कि जब इंदिरा गांधी के चुनाव के बारे में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था, तो केवल एक जज - जस्टिस कृष्ण अय्यर - ने फैसला सुनाया था और उन्हें पद से हटा दिया गया था. "धनखड़ जी को यह स्वीकार्य था, लेकिन अब सरकार के खिलाफ दो जजों की बेंच के फैसले पर सवाल उठाए जा रहे हैं?
राष्ट्रपति का निर्णय कैबिनेट की सलाह पर आधारित"
इसके साथ ही कपिल सिब्बल ने उपराष्ट्रपति द्वारा सुप्रीम कोर्ट के अधिकार की सार्वजनिक आलोचना पर भी निराशा जताई. उन्होंने कहा, "जगदीप धनखड़ के बयान को देखकर मुझे बहुत हैरानी हुई. अगर कोई संस्था है जो देश भर में जनता का भरोसा जीतती है, तो वह न्यायपालिका है. राष्ट्रपति केवल नाममात्र के प्रमुख हैं. राष्ट्रपति मंत्रिमंडल के अधिकार और सलाह पर काम करते हैं. राष्ट्रपति के पास अपना कोई व्यक्तिगत अधिकार नहीं है. ये जानकारी उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को होनी चाहिए.
विधायिका और कार्यपालिका की भूमिकाएं संभाल रही न्यायपालिका- धनखड़
वहीं, उप राष्ट्रपति धनखड़ ने न्यायपालिका की आलोचना करते हुए कहा कि वह कथित तौर पर विधायिका और कार्यपालिका की भूमिकाएं संभाल रही है. उन्होंने दावा किया कि कुछ जज "सुपर संसद" के रूप में काम कर रहे हैं. तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा 10 विधेयकों को मंजूरी न दिए जाने के संबंध में हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विशेष रूप से हवाला देते हुए, धनखड़ ने राष्ट्रपति पर समय-सीमा संबंधी निर्देश लागू करने पर आपत्ति जताई.
धनखड़ ने आगे कहा, " हमारे पास न्यायाधीश हैं जो कानून बनाएंगे, जो कार्यकारी काम करेंगे, जो सुपर संसद के रूप में काम करेंगे, और उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता है.
राष्ट्रपति की शक्तियों में कटौती कौन कर रहा?
इसके जवाब में कपिल सिब्बल ने उपराष्ट्रपति पर न्यायिक स्वतंत्रता और संवैधानिक साक्षरता दोनों को कमजोर करने का आरोप लगाया. सिब्बल ने कहा, "यह धनखड़ जी (उपराष्ट्रपति) को पता होना चाहिए, वह पूछते हैं कि राष्ट्रपति की शक्तियों में कटौती कैसे की जा सकती है, लेकिन शक्तियों में कटौती कौन कर रहा है? मैं कहता हूं कि एक मंत्री को राज्यपाल के पास जाना चाहिए और दो साल तक वहां रहना चाहिए, ताकि वे सार्वजनिक महत्व के मुद्दे उठा सकें, क्या राज्यपाल उन्हें नजरअंदाज कर पाएंगे?