बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री सुशील मोदी 2005 से लेकर 2013 तक अपने राज्य में ही रहकर इन्हीं पदों को संभालते रहे. जबकि जानकार लोगों का कहना है कि उनकी तरक्की केंद्रीय वित्त मंत्री के तौर पर होनी चाहिए थी. ऐसे लोगों ने सुशील मोदी के आर्थिक मोर्चे पर किए गए कामों की तारीफ भी की है. लेकिन ताज्जुब इस बात का है कि अब सुशील मोदी के राजनीतिक भविष्य को लेकर शक है.
असल में बीजेपी ने बिहार की राज्यसभा सीटों के लिए होने वाले है. बीजेपी ने डॉक्टर धर्मशीला गुप्ता और डॉक्टर भीम सिंह को अपने उम्मीदवार बनाया है. सुशील मोदी का कार्यकाल अप्रैल में समाप्त हो रहा है.
वो साल 2020 में लोक जनशक्ति पार्टी के नेता रामविलास पासवान की मृत्यु के बाद खाली हुई बिहार राज्यसभा सीट से सांसद बने थे.
उन्होंने एक ट्वीट में कहा, “देश में बहुत कम कार्यकर्ता होंगे जिनको पार्टी ने 33 वर्ष तक लगातार देश के चारों सदनों में भेजने का काम किया हो. मैं पार्टी का सदैव आभारी रहूंगा और पहले के समान कार्य करता रहूंगा. ”
यह ट्वीट उनके राजनीतिक जीवन का अंत होने का संकेत माना गया है.
देश में बहुत कम कार्यकर्ता होंगे जिनको पार्टी ने ३३ वर्ष तक लगातार देश के चारों सदनों में भेजने का काम किया हो ।मैं पार्टी का सदैव आभारी रहूँगा और पहले के समान कार्य करता रहूँगा ।@News18Bihar @News18Jharkhand @ANI
— Sushil Kumar Modi (@SushilModi) February 11, 2024
सुशील मोदी बिहार में लालू प्रसाद यादव के खिलाफ भाजपा की आवाज रहे हैं, लेकिन उन पर यह आरोप लगता रहा है कि वो नीतीश कुमार की बी-टीम हैं, वो भाजपा के चेहरे नहीं हैं, और उनके कारण भाजपा में नई पीढ़ी का नेतृत्व नहीं उभर पाया है. जबकि विधानसभा में भाजपा की सीटें जदयू से ज़्यादा हैं, फिर भी भाजपा ने नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री बनाया है.
जानकार लोग बताते हैं कि सुशील मोदी का भाजपा में योगदान नकारा नहीं जा सकता है. ध्यान देने की बात है कि सुशील मोदी अमित शाह से सीनियर हैं और नरेंद्र मोदी के समकालीन हैं. लेकिन आज वो अमित शाह और नरेंद्र मोदी के उतने चहेते नहीं हैं. ना ही इन दोनों के उतने वफादार भी हैं. उन्हें न तो केंद्र में मंत्री बनाया गया है और न ही राज्य में कोई बड़ा पद दिया गया है.
सुशील मोदी को कोई ज़िम्मेदारी नहीं मिली तो वे राजनीति से दूर हो सकते हैं. आज की तारीख में पार्टी के फैसलों में उनको कोई खास भूमिका नहीं रह गई है. लेखक और पत्रकार नलिन वर्मा के मुताबिक, सुशील मोदी का राजनीतिक अंत 2017 में ही शुरू हो गया था.
नीतीश कुमार और सुशील मोदी दोनों ही 70 के दशक के जेपी आंदोलन से उभरे हैं. आरएसएस से जुड़े रहे सुशील मोदी की छात्र राजनीति की शुरुआत 1971 में हुई थी. उन्हें दक्षिणपंथ का उदार चेहरा कहा जाता है.
सुशील मोदी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में महत्वपूर्ण पदों पर रहे. 1990 में वे पटना केंद्रीय विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीते. 2004 में वे भागलपुर लोकसभा का चुनाव जीता. हालांकि एक साल बाद ही वे विधान परिषद के लिए निर्वाचित होकर उपमुख्यमंत्री बने. इसके बाद नीतीश कुमार के साथ उनका राजनीतिक सफर शुरू हुआ.
नीतीश कुमार और सुशील मोदी की जोड़ी ने बिहार के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. नीतीश कुमार की दूरदर्शिता और सुशील मोदी की कुशल प्रशासनिक क्षमता ने बिहार को एक नया रूप दिया है. 2005 के बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा को 55 सीटें मिली थीं, जबकि जदयू ने 88 सीटों पर विजय पताका फहराई थी.
सुशील मोदी पर अक्सर यह आरोप लगाया जाता रहा है कि उनके लंबे कार्यकाल के दौरान भाजपा, जनता दल यूनाइटेड (जदयू) की 'बी-टीम' बनकर रह गई थी.
इस पर मोदी का कहना है कि उन्होंने हमेशा पार्टी नेतृत्व के आदेशों का पालन किया. संगठन का काम देखने का जिम्मा केवल उनका नहीं था, बल्कि भाजपा के अन्य नेताओं का भी था.
विशेषज्ञों का तो ये भी कहना है कि सुशील मोदी इतने ताकतवर नहीं थे कि वे बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को नजरअंदाज कर सकें. ऐसे में सारा ठीकरा सुशील मोदी पर नहीं फोड़ा जा सकता है.
कुछ लोगों का मानना है कि सुशील मोदी आजकल राजनीति में हाशिए पर इसलिए हैं क्योंकि इसमें 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनने से पहले की घटनाएं और बयान शामिल हैं. उस समय, सुशील मोदी को लाल कृष्ण आडवाणी का करीबी माना जाता था. 2013 में, मीडिया में खबरें आईं कि उन्होंने कहा था कि नीतीश कुमार ना केवल प्रधानमंत्री बन सकते हैं बल्कि वे 2014 के चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे.
हालांकि, सुशील मोदी का कहना है कि नीतीश में पीएम बनने की क्षमता मौजूद है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि वे नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे.
सुशील मोदी ने हालांकि कभी पार्टी नहीं बदली और पार्टी के सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया. लेकिन वे कट्टर नहीं हैं और आज की कट्टरपंथी हिंदुत्व राजनीति में वे सूट नहीं करते. यह स्पष्ट नहीं है कि सुशील मोदी का राजनीतिक भविष्य क्या होगा. कुछ लोग कहते हैं कि उन्हें लोकसभा चुनाव लड़ने दिया जाएगा, जबकि अन्य का मानना है कि उन्हें पार्टी के काम में शामिल किया जाएगा.