menu-icon
India Daily

Live In Relationship: 'लिव इन रिलेशन' पर राजस्थान हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, रिश्ते को कराना होगा रजिस्टर्ड

राजस्थान हाई कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर एक नया फैसल दिया है जिसने एक नई बहस छिड़ गई है. जहां एक ओर यह आदेश उन जोड़ों को कानूनी संरक्षण देने की दिशा में उठाया गया कदम है, वहीं दूसरी ओर इससे जुड़े सामाजिक और नैतिक मुद्दों पर भी सवाल उठ रहे हैं.

auth-image
Edited By: Babli Rautela
Live In Relationship
Courtesy: Social Media

Live In Relationship: राजस्थान हाई कोर्ट ने बुधवार को एक अहम आदेश जारी करते हुए कहा कि जब तक केंद्र और राज्य सरकारें लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर कोई ठोस कानून नहीं बना लेतीं, तब तक ऐसे रिश्तों को एक न्यायाधिकरण से रजिस्टर्ड किया जाना चाहिए.  न्यायमूर्ति अनूप कुमार ढांड की एकल पीठ ने केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश देते हुए कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप को रजिस्टर्ड करने के लिए एक कानूनी प्रारूप तैयार किया जाए और इसका पालन 1 मार्च तक सुनिश्चित किया जाए.

महिला की याचिका पर आया फैसला

यह आदेश हरियाणा के फतेहाबाद की एक विवाहित महिला की ओर से दायर सुरक्षा याचिका पर सुनवाई के दौरान पारित किया गया था. महिला वर्तमान में राजस्थान के सीकर जिले के एक व्यक्ति के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रह रही है. कोर्ट ने आगे कहा कि अविवाहित व्यक्तियों के साथ रहने वाले विवाहित जोड़ों या अलग-अलग विवाहों में बंधे लोगों द्वारा एक साथ रहने की स्थिति में उन्हें सुरक्षा दी जानी चाहिए या नहीं, इस पर फैसला लेने के लिए एक बड़ी पीठ गठित की जानी चाहिए.

लिव-इन रिलेशनशिप पर कानून बनाना जरूरी

न्यायमूर्ति ढांड ने लिव-इन संबंधों को लेकर एक स्पष्ट कानून बनाए जाने की जरूरत पर जोर दिया. उन्होंने कहा, "सरकार को ऐसे रिश्तों के लिए एक स्पष्ट नीति बनानी चाहिए ताकि इससे जुड़े विवादों और जटिलताओं को हल किया जा सके." उन्होंने सुझाव दिया कि जब तक सरकार उचित कानून नहीं बनाती, तब तक हर एक जिले में एक सक्षम प्राधिकरण की स्थापना की जाए, जो लिव-इन रिलेशनशिप के पंजीकरण से संबंधित मामलों को देखे और ऐसे जोड़ों की शिकायतों का समाधान करे.

कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार एक वेबसाइट या पोर्टल विकसित करे, जहां लिव-इन पार्टनर्स अपने अधिकारों से संबंधित जानकारी प्राप्त कर सकें और किसी भी प्रकार की समस्या का समाधान पा सकें.

बच्चों की सुरक्षा और पालन-पोषण की व्यवस्था

हाईकोर्ट ने ऐसे संबंधों से जन्म लेने वाले बच्चों के अधिकारों और सुरक्षा पर भी ध्यान देने की आवश्यकता बताई. कोर्ट ने कहा कि बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और पालन-पोषण की जिम्मेदारी सुनिश्चित करने के लिए उचित योजना बनाई जाए. साथ ही, यह भी कहा गया कि यदि महिला आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं है, तो पुरुष साथी को उसके भरण-पोषण की जिम्मेदारी लेनी होगी.

कोर्ट ने इस बात को भी स्वीकार किया कि लिव-इन रिलेशनशिप को समाज में अब भी पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया जाता है. लेकिन ये कानूनी रूप से प्रतिबंधित नहीं हैं. अदालत ने कहा, "ऐसे कई जोड़े हैं जो अपने परिवारों से धमकियां मिलने के कारण सुरक्षा की मांग कर रहे हैं. इस तरह की याचिकाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है और न्यायालयों में रोज़ाना दर्जनों मामले दाखिल किए जा रहे हैं." समन्वय पीठों की अलग-अलग राय को ध्यान में रखते हुए, न्यायमूर्ति ढांड ने कहा कि इस विषय पर एक निश्चित और स्पष्ट निर्णय लिया जाना आवश्यक है. उन्होंने सिफारिश की कि इसे विशेष पीठ को सौंपा जाए, जिससे लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़ों को सुरक्षा और कानूनी संरक्षण देने में एकरूपता लाई जा सके.