Rajasthan Assembly Election: इस बार टोंक में आसान नहीं होगी सचिन पायलट की राह, राजनीतिक समीकरण दे रहे हैं गवाही
Tonk Assembly Constituency: राजस्थान कांग्रेस में नंबर दो की हैसियत रखने वाले सचिन पायलट टोंक विधानसभा सीट से विधायक हैं. सचिन पायलट की वजह से यह सीट अब राजनीति का केंद्र बन गई है.
नई दिल्ली: राजस्थान कांग्रेस में नंबर दो की हैसियत रखने वाले सचिन पायलट टोंक विधानसभा सीट से विधायक हैं. सचिन पायलट की वजह से यह सीट अब राजनीति का केंद्र बन गई है. साल 2018 के विधानसभा चुनाव में पायलट ने इस सीट से बीजेपी उम्मीदवार यूनुस खान को शिकस्त दी थी.
बता दें कि इस विधानसभा चुनाव में यूनुस खान बीजेपी के एकमात्र मुस्लिम चेहरे थे. पायलट को कुल 109040 वोट मिले थे जबकि यूनुस खान सिर्फ 54861 वोट ही हासिल कर पाये थे. पायलट ने उन्हें 54179 वोटों के भारी अंतर से हराया था.
टोंक में कांग्रेस-बीजेपी की अल्टरनेटिव जीत
पिछले 4 विधानसभा चुनावों पर नजर डालें को टोंक के लोगों ने कभी भी एक पार्टी पर विश्वास नहीं जताया. यहां बीजेपी और कांग्रेस की अल्टरनेटिव जीत हुई है.
2018 में जहां कांग्रेस के सचिन पायलट यहां से जीते तो 2013 में बीजेपी के अजीत सिंह यहां से विजयी हुए थे. 2008 में कांग्रेस की जाकिया और 2003 में बीजेपी के वासुदेव देवनानी इस सीट पर जीते थे. जाकिया (1985) इस सीट से चुनाव लड़ने वाली पहली महिला प्रत्याशी थीं.
इन आंकड़ों के हिसाब से सचिन पायलट के लिए इस बार इस सीट को फतेह करना थोड़ा मुश्किल नजर आ रहा है. इस सीट पर अब तब तक 14 बार विधानसभा के चुनाव हो चुके हैं जिसमें कांग्रेस को 7 बार और बीजेपी को 5 बार जीत हासिल हुई है.
टोंक में इस बार आसान नहीं होगी पायलट की राह
दरअसल, 41 वर्षीय पायलट ने टोंक से ही अपना पहला विधानसभा चुनाव लड़ा था और वह जीते भी, लेकिन उनसे गलती यह हो गई की जीतने के बाद पूर्व उपमुख्यमंत्री पायलट ने मुख्यमंत्री बनने की जद्दोजगद में ही चार साल निकाल दिए.
इस दौरान वह क्षेत्र के लोगों से काफी दूर रहे. जब पायलट को टोंक से उम्मीदवार बनाया गया था तो वो कांग्रेस की ओर से सीएम पद का चेहरा थे, इसी आस में यहां के लोगों ने पायलट को जिता दिया.
उन्हें आस थी कि पायलट के सीएम बनने के बाद उनके क्षेत्र का विकास होगा लेकिन यह बात मिथक साबित हुई.
टोंक सीट का जातिगत समीकरण
राजस्थान में विधानसभा की कुल 200 सीटें हैं, जिसमें 142 सीटें सामान्य, 33 अनुसूचित जाति, 25 अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं.
बात अगर टोंक की करें तो टोंक में मुस्लिम और गुर्जर मतदाता ही उम्मीदवार की हार जीत का फैसला करते हैं. यह क्षेत्र मुस्लिम और गुर्जर बाहुल्य क्षेत्र है. यहां मतदाताों की संख्या 2 लाख से ऊपर है.
सबसे ज्यादा मतदाता मुस्लिम वर्ग के हैं जो करीब 55 से 60 हजार के बीच हैं जबकि दूसरे नंबर पर गुर्जर मतदाता हैं, वोटरों के लिहाज से उनकी संख्या करीब 30 हजार के आसपास है.
इसके अलावा इस क्षेत्र में माली समाज की भी अच्छी खासी संख्या है. इसके बाद ओबीसी, एसटी,एसटी और सामान्य वर्ग से भी कुछ मतदाता हैं.
2013 के विधानसभा चुनाव में टोंक से कांग्रेस प्रत्याशी रहीं जकिया अपनी जमानत भी नहीं बचा सकीं. इस चुनाव में बीजेपी को मोदी लहर और स्थानीय प्रत्याशी खड़ा करने का फायदा मिला.
जब-जब हुई बगावत, कांग्रेस को मिली हार
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि जब-जब कांग्रेस में बगावत हुई है तब-तब उसे हार का सामना करना पड़ा है. फिलहाल कांग्रेस में यही स्थिति है.
थोड़े दिन पहले सचिन पायलट ने सीएम अशोक गहलोत के खिलाफ बगावती तेवर दिखाए थे, जब वो शांत हुए तो चुनाव के करीब आते ही राजेंद्र गुढ़ा ने बगावत कर दी. लाल डायरी के कुछ पन्ने सार्वजनिक कर और कुछ पन्नों को राज रखकर उन्होंने राजस्थान की जनता में गहलोत सरकार के प्रति संदेह पैदा कर दिया है.
वहीं बीजेपी जोर शोर से जनता के बीच इस मुद्दे को लेकर जा रही है. पार्टी में इस बगावत के क्या परिणाम होंगे यह तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा.
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