Ragging Student Deaths: रैगिंग देशभर में एक गंभीर समस्या बन चुकी है, जो हर साल कई छात्रों की मौत का कारण बन रही है. सरकार और शिक्षण संस्थानों द्वारा सख्त नियमों के बावजूद, रैगिंग की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. हाल ही में केरल के कोट्टायम और तिरुवनंतपुरम के गवर्नमेंट कॉलेजों में हुई घटनाओं ने इस मुद्दे को फिर से सुर्खियों में ला दिया है.
रैगिंग की शिकायतों में जबरदस्त इजाफा
पिछले एक दशक में यूजीसी हेल्पलाइन पर 8,000 से अधिक शिकायतें दर्ज की गई हैं. 2012 से 2022 के बीच रैगिंग के मामलों में 208% की वृद्धि दर्ज की गई.
रैगिंग से सबसे ज्यादा मौतें किन राज्यों में?
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, अब तक 78 छात्रों की मौत रैगिंग के कारण हो चुकी है. इस मामले में महाराष्ट्र सबसे आगे है.
शिकायतों की संख्या के लिहाज से भी उत्तर प्रदेश सबसे आगे है, जहां 1,202 शिकायतें दर्ज हुईं. इसके बाद:-
रैगिंग के खिलाफ यूजीसी का सख्त रुख
आपको बता दें कि यूजीसी अध्यक्ष एम. जगदीश कुमार ने इस मुद्दे पर गंभीर रुख अपनाते हुए कहा कि रैगिंग को रोकने के लिए संस्थानों को सख्ती बरतनी होगी. उन्होंने कहा कि यह केवल यूजीसी की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि कॉलेज और विश्वविद्यालयों को भी सख्त एंटी-रैगिंग कानूनों को लागू करने की जरूरत है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि रैगिंग सिर्फ छात्रों के लिए नहीं, बल्कि उनके परिवारों के लिए भी एक बड़ा संकट बन चुकी है. ऐसे में राज्य सरकारों और शैक्षणिक संस्थानों को मिलकर ठोस कदम उठाने होंगे, ताकि छात्रों का भविष्य सुरक्षित किया जा सके.
क्या है समाधान?
इसके अलावा, रैगिंग एक गंभीर सामाजिक समस्या बन चुकी है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. यदि इस पर जल्द ही प्रभावी नियंत्रण नहीं लगाया गया, तो आने वाले समय में यह और भयावह रूप ले सकती है. अब वक्त आ गया है कि शिक्षण संस्थान, सरकार और समाज मिलकर इस कुप्रथा को खत्म करने के लिए ठोस प्रयास करें.