menu-icon
India Daily
share--v1

हार से आई दरार! सुखबीर सिंह को लेकर दो धड़ों में बंटे अकाली; किसने बताया ऑपरेशन लोटस

Punjab Politics: लोकसभा चुनाव 2024 के बाद अब पंजाब की प्रमुख पार्टी शिरोमणि अकाली दल में फूट की खबर तेज होने लगी है. बताया जा रहा है कि अकाली नेता सुखबीर सिंह बादल को लेकर दो गुटों में बंट गए हैं. एस धड़ा उनके नेतृत्व का विरोध कर रहा है. वहीं एक धड़ा सुखबीर के साथ खड़ा है. उनकी बैठक चल रही है. वहीं कुछ सियासी जानकार इसा ऑपरेशन लोटस का नाम भी दे रहे हैं.

auth-image
India Daily Live
Sukhbir Singh Badal
Courtesy: Social Media

Punjab Politics: लोकसभा के चुनाव हो गए. सरकार बन गई और संसद का सदन भी चलने लगा लेकिन परिणामों के कारण कई क्षेत्रीय दलों में असंतोष पैदा हो गया है. कुछ यही हाल पंजाब में देखने को मिल रहा है. जहां, एक समय सत्ता के केंद्र में रहे अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह को लेकर उनकी पार्टी के लोग दो दलों में बंट गए हैं. एक धड़ा हार के बाद भी उनके नेतृत्व के ही मान रहा है. वहीं एक धड़ा है जो अब बादल के नेतृत्व को नकारने लगा है. इसके लिए राज्य में हो रही बैठकों के बीच कुछ लोग इसे ऑपरेशन लोटस का नाम दे रहे हैं. आइये जानें आखिर आकाली दल और पंजाब में हो क्या रहा है?

लोकसभा चुनाव 2024 में पंजाब की 13 में से एक सीट भी भाजपा के हाथ नहीं लगी है. बहुकोणीय मुकाबले में भाजपा से अलग लड़ने पर अकाली दल को भी करारी हार का सामना करना पड़ा. राज्य में उसे केवल एक सीट मिल पाई है. वहीं कांग्रेस को 7 और आम आदमी पार्टी को 3 सीटों पर जीत मिली है. सबसे बड़ी बात की 2 सीटें निर्दलीयों के हाथ में गई है.

इस्तीफे की मांग

पंजाब में 2017 से लगातार सत्ता से बाहर रहने पर शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल असंतोष का सामना कर रहे हैं. पार्टी का एक धड़ा सुखबीर के नेतृत्व के साथ-साथ पार्टी पर बादल परिवार के नियंत्रण पर सवाल उठाता रहा है. लोकसभा चुनाव के बाद इस आवाज को बुलंदी मिली है. एक धड़ा अब बादल के इस्तीफे की मांग कर रहा है.

विद्रोह का कारण

लोकसभा चुनावों में अकाली दल को एक बार फिर करारी हार का सामना करना पड़ा. उनके खाते में केवल एक सीट आ पाई. ये सीट भटिंडा हो जो बादल का गृह क्षेत्र है. यहां से उनकी पत्नी हरसिमरत कौर लगातार चौथी बार निर्वाचित हुईं है. सबसे बड़ी बात की 10 उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई है. इस कारण कहा जा रहा है कि सुखबीर के अध्यक्ष रहने के दौरान पार्टी का मुख्य समर्थन आधार खिसक गया है.

बागियों ने की बैठक

पूर्व सांसद प्रेम सिंह चंदूमाजरा, सिकंदर सिंह मलूका, पूर्व एसजीपीसी अध्यक्ष जागीर कौर और कुछ अन्य प्रमुख अकाली नेताओं ने जालंधर में एक बैठक की है. इसमें सुखबीर से बलिदान की भावना की उम्मीद करते हुए पद छोड़ने के लिए प्रस्ताव भी पास किया गया. इसके बाद से बरजिंदर सिंह हमदर्द की भूमिका के बारे में चर्चा हो रही है.

विद्रोहियों में कई दिग्गजों के परिवारों के नेता भी शामिल हैं, जिनका निधन हो चुका है. इसमें मास्टर तारा सिंह, गुरचरण सिंह तोहरा, जगदेव सिंह तलवंडी और सुरजीत सिंह बरनाला का नाम है. इन नेताओं ने सिखों से फिर से जुड़ने के लिए अकाली दल बचाओ मुहिम का ऐलान कर दिया है.

सुखबीर के साथ कौन कौन?

बादल परिवार के कई कट्टर वफादार भी हैं. इसमें पूर्व राज्यसभा सांसद बलविंदर सिंह भुंदर, दलजीत सिंह चीमा और वरिष्ठ नेता महेशिंदर सिंह ग्रेवाल के नाम हैं. इन नेताओं ने बागियों पर जवाबी हमला किया है और सुखबीर के इस्तीफे की मांग को सरासर गलत बताते हुए नकार दिया है. इन्होंने मंगलवार को एक बैठक कर सुखबीर की स्पष्ट सोच, दूरदर्शी और दृढ़ नेतृत्व के लिए प्रशंसा प्रस्ताव पारित किया है.

मंगलवार को बादल समर्थकों द्वारा बागियों की पोल खोल प्रेस कॉन्फ्रेंस की गई. इसमें अकाली नेता विरसा सिंह वल्टोहा, सोहन सिंह ठंडल और अनिल जोशी शामिल हुए. इन नेताओं ने अकाली दल के संकट के लिए भाजपा को जिम्मेदार ठहराते हुए इसे ऑपरेशन लोटस करार दिया है.

क्या है भाजपा का एंगल?

कई सियासी जानकारों का मानना है कि संवेदनशील सीमावर्ती राज्य में सिख कट्टरपंथ के उभार को रोकने में अकाली दल की भूमिका खास है. पंजाब में इस बार कमजोर अकाली दल के कारण वारिस पंजाब दे के प्रमुख अमृतपाल सिंह और सरबजीत सिंह खालसा लोगों की जीत हुई है. ऐसा आकाली के भाजपा से अलग होने के कारण हो रहा है.