Chacha vs Bhatija: राजनीति के 3 चाचा जिनको भतीजों ने कर दिया बेचारा, पढ़ें कैसे छीन ली ताकत
Political Family Fights: देश की राजनीति में कुछ परिवार ऐसे रहे हैं जिनमें आगे चलकर फूट पड़ी है और इसका नुकसान उनके राजनीतिक रसूख पर भी पड़ा है. ऐसे कुछ उदाहरण देश के सामने हैं.
भारत की राजनीति में हर राज्य में कुछ परिवार जरूर रहे हैं. ये परिवार अपनी पार्टी से लेकर सत्ता तक काबिज रहे हैं. पीढ़ियां बदलने के साथ इन परिवारों में विवाद भी हुए हैं. कुछ विवादों में पार्टियां बिखर गईं और सत्ता भी हाथ से जाती रही. कई बार इसकी वजह पुत्र मोह रहा तो कई बार व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं ने इन दलों और नेताओं का बंटाधार कर दिया. उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल यादव हों, बिहार में चिराग पासवान और पशुपति पारस हों या फिर महाराष्ट्र में शरद पवार और उनके भतीजे अजीत पवार, ये कुछ ऐसे परिवारों की कहानी है जिनके आपसी झगड़ों ने राजनीति को अलग दिशा दी.
चाचा और भतीजों की इस जंग में फिलहाल तीनों भतीजे अपने चाचाओं पर हावी होते दिख रहे हैं. तीनों ही चाचाओं की बढ़ती उम्र के साथ पकड़ ढीली हुई है और युवा भतीजों ने अपनी-अपनी पार्टियों पर कब्जा मजबूत किया है. यूपी में अखिलेश यादव अब समाजवादी पार्टी के इकलौते और सर्वमान्य नेता हो चुके हैं. एनडीए गठबंधन ने चिराग पासवान को ही राम विलास पासवान का असली वारिस मान लिया है और महाराष्ट्र में अजित पवार फिलहाल सत्ता के साथ हैं और डिप्टी सीएम हैं.
अखिलेश vs शिवपाल
2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले समाजवादी पार्टी और मुलायम सिंह यादव के परिवार में फूट पड़ गई. मुलायम सिंह यादव के तमाम प्रयासों के बावजूद यह खाई बढ़ती गई और पार्टी पर कब्जे की कोशिशें सबके सामने आ गईं. आखिर में समाजवादी पार्टी के हाथ से सत्ता भी गई और शिवपाल यादव ने नई पार्टी बना ली. हालांकि, समय के साथ परिस्थितियां बदलीं और मुलायम सिंह यादव के निधन के साथ शिवपाल यादव सपा में लौट आए और अपनी पार्टी का विलय भी कर दिया. आखिर में उन्होंने भी अखिलेश यादव को ही अपना नेता मान लिया. हालांकि, अभी भी कहा जाता है कि अखिलेश और शिवपाल के बीच सबकुछ अच्छा नहीं है लेकिन अब नेता अखिलेश यादव ही हैं.
चिराग पासवान vs पशुपति पारस
राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के नेता रहे राम विलास पासवान के घर में भी कुछ ऐसी ही फूट पड़ी. साल 2020 में उनके निधन से कुछ पहले उनके बेटे चिराग पासवान फिल्मों की दुनिया छोड़कर राजनीति में सक्रिय हो चुके थे. हालांकि, राम विलास के छोटे भाई और चिराग के चाचा पशुपति पारस के मन में भी कुछ आकांक्षाएं दबी हुई थीं. राम विलास की गैरमौजूदगी में ये इच्छाएं बाहर आ गईं. एक तरफ राम विलास पासवान का बंगला खाली करवा लिया गया तो साल 2022 में पशुपति पारस अपने साथ कुछ सांसदों को लेकर केंद्र में मंत्री बन गए.
चिराग पासवान खुद को पीएम मोदी का हनुमान बताते रहे और बीजेपी से बगावत नहीं की. 2024 में जब गठबंधन की बारी आई तो बीजेपी ने चिराग पासवान के साथ गठबंधन करके उनको पांच सीटें दे दी और इस बार पशुपति पारस खाली हाथ रह गए. चर्चाएं हैं कि बीजेपी ने पशुपति पारस को भी संकेत दे दिए हैं कि वह युवा चिराग पासवान के साथ अपना भविष्य देख रही है. फिलहाल, पशुपति पारस अपने भतीजे के हाथों परास्त होकर हाशिए पर चले गए हैं.
अजित पवार vs शरद पवार
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के संस्थापक रहे शरद पवार पर आरोप लगते हैं कि उन्होंने बेटी के मोह में भतीजे को नाराज कर दिया. 2019 में महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद ही बीजेपी और शिवसेना में खींचतान हो रही थी. अचानक अजित पवार ने बीजेपी के साथ जाकर डिप्टी सीएम पद की शपथ ले ली. बड़ी मुश्किल से उन्हें मनाया गया. महा विकास अघाड़ी की सरकार में भी वह डिप्टी सीएम बने लेकिन कहीं टीस रह गई थी.
अचानक शरद पवार ने एनसीपी पर अपना दावा मजबूत करने की कोशिशें शुरू कर दीं. इसी के साथ अजित पवार भी खुली बगावत पर उतर आए. पहले से टूट चुकी शिवसेना के बाद नंबर एनसीपी का था. एकनाथ शिंदे के बाद अजित पवार भी सत्ता पक्ष में शामिल हो गए और एक बार फिर से डिप्टी सीएम बन गए. पवार परिवार के लोगों ने भी उन्हें मनाने की बहुत कोशिशें कीं लेकिन इस बार वह मन बना चुके थे.
इसका नतीजा यह हुआ कि ज्यादातर विधायक और सांसद अजित पवार के साथ गए. साथ-साथ पार्टी पर भी उन्हीं का कब्जा माना गया. अब शरद पवार की बनाई राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मुखिया अजित पवार हैं. अब पवार परिवार की पारंपरिक सीट बारामती पर भी अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार और अजित पवार की चचेरी बहन सुप्रिया सुले आमने-सामने हैं. फिलहाल, सत्ता पक्ष को देखें तो अजित पवार अपने चाचा पर भारी हैं. हालांकि, चुनाव के बाद इन परिस्थितियों में बदलाव भी हो सकता है.