Hazratbal Shrine Development Project: प्रधानमंत्री मोदी आज कश्मीर दौरे पर हैं. कश्मीर दौरे के बीच 'हजरतबल दरगाह' की चर्चा हो रही है. ये दरगाह घाटी के वर्ल्ड फेमस डल झील के किनारे बाएं ओर मौजूद है. मान्यता है कि इस दरगाह में इस्लाम धर्म के आखिरी नबी पैगंबर मोहम्मद साहब के दाढ़ी का बाल रखा हुआ है, जिसे मू-ए-मुक्कदस भी कहा जाता है. इस दरगाह में स्थानीय लोगों हर शुक्रवार को सामूहिक दुआ में शामिल होते हैं, जो अपनी और देश-दुनिया के लोगों की सलामती की दुआ करते हैं.
एक तो डल झील का किनारा, ऊपर से दरगाह पर लगी सफेद संगमरमर की चमकदार पत्थर, इसकी खूबसूरती को चार चांद लगाता है. बर्फबारी और चांदनी रात में इस दरगाह का नजारा देखने वाला होता है. भारत के प्रमुख ऐतिहासिक तीर्थस्थलों में हजरतबल दरगाह का भी नाम आता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज जब घाटी के दौरे पर हैं, तो अचानक इस दरगाह की चर्चा हो रही है. दरअसल, पीएम मोदी आज 'हजरतबल तीर्थस्थल डेवलपमेंट प्रोजेक्ट का उद्घाटन करेंगे. पीएम मोदी के दौरे की भी चर्चा इसलिए हो रही है, क्योंकि अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद वे पहली बार घाटी की यात्रा पर हैं. आइए, हम आपको 'हजरतबल दरगाह' के बारे में विस्तार से बताते हैं.
जम्मू-कश्मीर टूरिज्म डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन की वेबसाइट के अनुसार, शुक्रवार को जब सामूहिक प्रार्थना के दौरान स्थानीय लोग अक्सर इस दरगाह में आते हैं या फिर विशेष धार्मिक अवसरों पर पैगंबर मोहम्मद के अवशेष का दीदार कराया जाता है.
हजरतबल दरगाह को इसकी खूबसूरती और सफेद संगमरमर के लिए सफेद मस्जिद के भी नाम से जाना जाता है. ये दरगाह मुस्लिम धर्म की संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है. इस दरगाह को इसकी सुंदरता, वास्तुकला के लिए भी जाना जाता है. हजरतबल कश्मीर के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है, जहां भारत के अलावा, पड़ोसी पाकिस्तान से भी मुस्लमान जियारत करने आते हैं.
बात 27 दिसंबर 1962 की है, जब दरगाह के खादिम ने खलील ने सुबह-सुबह दरगाह से मू-ए-मुक्कदस के चोरी होने की जानकारी दी थी. बात ऐसी थी कि इस फैलने में चंद घंटे का समय लगा और हजारों की संख्या में मुस्लिम समाज के लोग दरगाह के बाहर जुट गए. चूंकि बात कश्मीरियत की थी, तो भारी संख्या में हिंदू और सिख समुदाय के लोग भी दरगाह के बाहर जुटे और जल्द से जल्द मू-ए-मुक्कदस की बरामदगी की मांग की. उधर, इतने बड़े हलचल की खबर केंद्र सरकार को भी लगी. उस वक्त प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू हुआ करते थे.
मामले की जानकारी और इसकी गंभीरता को देखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने तत्कालीन आईबी चीफ भोलानाथ मलिक, तत्कालीन गृह मंत्री गुलजारी लाल नंदा समेत कई अन्य आला अफसरों को कश्मीर भेज दिया. ये सब कुछ सिर्फ इसलिए कि घाटी के लोगों के उबाल को शांत किया जा सके. घटना के करीब चार दिन बाद यानी 31 दिसंबर 1962 को तत्कालीन आईबी चीफ अपनी टीम के साथ जांच पड़ताल में जुटे थे. इसी बीच खबर आई कि मू-ए-मुक्कदस वापस आ गया है.
मू-ए-मुक्कदस के वापस आने की खबर के बाद हजारों की संख्या में मुस्लिम समाज के लोग दरगाह के बाहर जुटे. कई लोगों ने ये भी मांग की कि ये कैसे तय होगा कि जो बाल लौटाया गया है, वो पैगंबर मोहम्मद का ही है. हालांकि तमाम जद्दोजहद के बाद तय हुआ कि बाल असली है या फिर नकली, इसका फैसला धर्मगुरु करेंगे. 4 जनवरी 1963 को कश्मीर के तत्कालीन सबसे बड़े मुस्लिम धर्म गुरु मीराक़ शाह कशानी को बुलाया गया. करीब 60 सेकेंड यानी एक मिनट के बाद ही उन्होंने घोषणा कर दी कि यही असली मू-ए-मुक्कदस है. इसके बाद घाटी में जश्न का माहौल शुरू हो गया.
करीब एक साल बाद यानी फरवरी 1964 को संसद के शीतकालीन सत्र में तत्कालीन गृहमंत्री गुलज़ारी लाल नंदा ने जवाब दिया था कि मू-ए-मुक्कदस की चोरी के मामले में तीन लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया, इनमें से एक दरगाह का खादिम ही है, जिसने मू-ए-मुक्कदस के चोरी होनी की जानकारी 27 दिसंबर 1962 को दी थी.