Patanjali Misleading Ads Case: पतंजलि को भ्रामक विज्ञापन मामले में आज सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई. इस मामले में बाबा रामदेव और पतंजलि के एमडी आज कोर्ट में पेश हुए. इस दौरान कोर्ट ने उचित हलफनामा दायर नहीं करने, नियमों को अनदेखी करने के लिए फटकार लगाते हुए हलफनामे पर सवाल उठाए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि के एमडी आचार्य बालकृष्ण के हलफनामे में दिए गए स्पष्टीकरण पर आपत्ति जताई है.
पतंजलि की ओर से पेश वकील विपिन सांघी को न्यायमूर्ति कोहली ने कहा कि एमडी अज्ञानता का बहाना नहीं कर सकते. उन्होंने कहा कि एक बार जब अदालत को वचन दे दिए जाते हैं, तो फिर पूरी श्रृंखला तक इसे पहुंचाना किसका कर्तव्य है? पतंजलि के वकील सांघी ने कोर्ट में यह माना कि चूक हुई है और इसके लिए उन्होंने खेद जताया. इस पर न्यायमूर्ति कोहली ने कहा आपका खेद न्यायालय के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता है. यह देश की सर्वोच्च अदालत को दिए गए वचन का घोर उल्लंघन है, जिसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए.
न्यायमूर्ति कोहली ने कहा कि सिर्फ यह कहने के लिए कि अब आपको खेद है, हम यह भी कह सकते हैं कि हमें खेद है. हम इस तरह के स्पष्टीकरण को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं कि आपका मीडिया विभाग एक स्टैंडअलोन विभाग नहीं है, क्या ऐसा है? कि उसे पता ही नहीं चलेगा कि अदालती कार्यवाही में क्या हो रहा है.
न्यायमूर्ति कोहली ने आगे कहा कि यह माफी इस न्यायालय को संतुष्ट नहीं कर रही है और यह एक जुबानी बयानबाजी से अधिक है. कोर्ट ने ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम 1954 के खिलाफ पतंजलि के बयान पर आपत्ति जताई. गौरतलब है कि 27 फरवरी को पारित आदेश में, कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद को अपने उत्पादों का विज्ञापन या ब्रांडिंग करने से रोक दिया था.
पतंजलि के एमडी की ओर से दायर हलफनामे में कहा गया है कि यह अधिनियम पुरानी स्थिति में था. उन्होंने कहा कि यह अधिनियम ऐसे समय में लागू किया गया था जब आयुर्वेदिक दवाओं के संबंध में वैज्ञानिक प्रमाणों की कमी थी. उन्होंने कहा कि कंपनी के पास अब आयुर्वेद में किए गए नैदानिक अनुसंधान के साथ साक्ष्य-आधारित वैज्ञानिक डेटा है, जो अधिनियम की अनुसूची में उल्लिखित बीमारियों के संदर्भ में वैज्ञानिक अनुसंधान के माध्यम से हुई प्रगति को प्रदर्शित करेगा.
न्यायमूर्ति कोहली ने कहा कि क्या हम मान लें कि हर अधिनियम जो पुराना है, उसे कानून में लागू नहीं किया जाना चाहिए? इस समय हम सोच रहे हैं कि जब एक अधिनियम है जो क्षेत्र को नियंत्रित करता है, तो आप इसका उल्लंघन कैसे कर सकते हैं? आपका सब विज्ञापन उस अधिनियम के दायरे में हैं. सबसे बढ़कर, और यह घाव पर नमक छिड़क रहा है, आप इस न्यायालय को एक गंभीर वचन देते हैं और आप दण्ड से मुक्ति के साथ इसका उल्लंघन करते हैं? न्यायालय ने इस तरह की माफी को स्वीकार करने से स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया और इसे "निष्पक्ष" करार दिया.
इसके बचाव में पतंजलि की ओर से पेश वकील विपिन सांघी ने कहा कि अधिनियम 1954 में पारित किया गया था और तब से विज्ञान ने बहुत प्रगति की है. हालांकि, न्यायमूर्ति कोहली ने अपना रुख नहीं बदला और वकील से पूछा: क्या आपने संबंधित मंत्रालय से यह कहने के लिए संपर्क किया है कि अधिनियम में संशोधन करें? न्यायालय को मनाने की अपनी एक और कोशिश में, सांघी ने कहा कि उन्होंने अपना परीक्षण स्वयं किया है. हालांकि, न्यायालय ने नरम रुख नहीं अपनाया.