दिल्ली शराब घोटाले मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दी. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर से सीबीआई को 'पिंजरे में बंद तोता' की याद दिला दी. जस्टिस भुइयां ने कहा कि सीबीआई की इस छवि से बाहर आना होगा. हालांकि ये पहली बार नहीं जब देश के सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई के लिए ऐसी टिप्पणी की है.
2013 में करोड़ों रुपये के कोयला घोटाले में तत्कालीन प्रधानमंत्री को बचाने के कथित प्रयास पर पर्दा डालने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई के लिए 'पिंजरे में बंद तोता' वाली टिप्पणी की थी. तत्कालीन सीजेआई आरएम लोढ़ा ने यूपीए सरकार के दौरान कोयला घोटाले के मामले की सुनवाई करते हुए इस शब्द का इस्तेमाल किया था और केंद्र के प्रभाव में काम करने के लिए एजेंसी की खिंचाई की थी. सुप्रीम कोर्ट के निशाने पर सीधे तत्कालीन कोयला मंत्री अश्विनी कुमार थे. पीठ ने तीन घंटे तक सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा के 9 पन्नों के हलफनामे पर गौर करने के बाद यह टिप्पणी की थी.
ईडी मामले में जमानत मिलने के तुरंत बाद केजरीवाल को गिरफ्तार करने में सीबीआई की मंशा और समय पर सवाल उठाते हुए जस्टिस भुइयां ने कहा, 'जब सीबीआई ने 22 महीनों तक अपीलकर्ता को गिरफ्तार करने की जरूरत महसूस नहीं की तो मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि ईडी मामले में रिहाई के कगार पर पहुंचने पर अपीलकर्ता को गिरफ्तार करने की सीबीआई की ओर से इतनी जल्दी और तत्परता क्यों थी.' उन्होंने आगे कहा कि सीबीआई देश की प्रमुख जांच एजेंसी है. यह जनहित में है कि सीबीआई न केवल निष्पक्ष हो बल्कि ऐसा दिखना भी चाहिए. कानून का नियम, जो हमारे संवैधानिक गणराज्य की एक बुनियादी विशेषता है, यह अनिवार्य करता है कि जांच निष्पक्ष, पारदर्शी और न्यायसंगत होनी चाहिए.
जांच न केवल निष्पक्ष होनी चाहिए बल्कि ऐसा दिखना भी चाहिए. ऐसी किसी भी धारणा को दूर करने के लिए हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए कि जांच निष्पक्ष नहीं हुई और गिरफ्तारी पक्षपातपूर्ण तरीके से की गई. न्यायमूर्ति भुइयां ने कहा, एक जांच एजेंसी को निष्पक्ष होना चाहिए. कुछ समय पहले इस अदालत ने सीबीआई की आलोचना की थी और इसकी तुलना पिंजरे में बंद तोते से की थी. यह जरूरी है कि सीबीआई 'पिंजरे में बंद तोते' की धारणा को दूर करे. इसके बजाय धारणा को पिंजरे से बाहर खुले तोते की तरह होना चाहिए.