आंध्र प्रदेश की ओंगोल नस्ल की गाय भले ही अपने मूल स्थान पर उपेक्षा का शिकार हो, लेकिन विदेशों में यह इतिहास रच रही है. हाल ही में ब्राजील में इस नस्ल की एक गाय, जिसका नाम वियाटिना-19 है, नीलामी में 4.82 मिलियन डॉलर (लगभग 41 करोड़ रुपये) में बिकी. यह कीमत इसे दुनिया की सबसे महंगी गाय बनाती है. इस बिक्री ने जापान की मशहूर वाग्यू और भारत की ब्राह्मण नस्ल को भी पीछे छोड़ दिया. यह साबित करता है कि उचित देखभाल और वैज्ञानिक प्रजनन के साथ ओंगोल नस्ल कितनी मूल्यवान हो सकती है.
नीलामी में बार-बार रिकॉर्ड
वियाटिना-19 को नियमित अंतराल पर नीलाम किया जाता है. 2023 में ब्राजील के अरांडु में हुई एक नीलामी में यह गाय 4.3 मिलियन डॉलर में बिकी थी. इसके बाद पिछले साल इसकी कीमत 4.8 मिलियन डॉलर तक पहुंच गई. इस बार 41 करोड़ रुपये की कीमत ने नया कीर्तिमान स्थापित किया. मूल रूप से आंध्र प्रदेश के प्रकाशम जिले की रहने वाली ओंगोल नस्ल अपनी अनोखी आनुवंशिक विशेषताओं के लिए जानी जाती है. इसमें शारीरिक ताकत, गर्मी सहने की क्षमता और बेहतरीन मांसल संरचना शामिल है, जो इसे डेयरी उद्योग के लिए बेहद कीमती बनाती है.
भारत में उपेक्षा, ब्राजील में सम्मान
दुर्भाग्य से भारत में इस नस्ल को वह ध्यान और संरक्षण नहीं मिल रहा, जिसकी यह हकदार है. दूसरी ओर, ब्राजील ने इसके जर्मप्लाज्म का भरपूर उपयोग कर न केवल इसकी क्षमता को बढ़ाया, बल्कि इससे भारी मुनाफा भी कमाया. वियाटिना-19 की बेहतरीन आनुवंशिकता ने इसे "मिस साउथ अमेरिका" का खिताब दिलाया. यह सम्मान विश्व की प्रतिष्ठित "काउ चैंपियन ऑफ द वर्ल्ड" प्रतियोगिता में मिला. साथ ही, 2023 में यह गाय गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में सबसे महंगी बिकने वाली गाय के रूप में दर्ज हुई.
ओंगोल नस्ल की खूबियां
ओंगोल गाय की खासियत इसकी मजबूत कद-काठी और पर्यावरण के प्रति अनुकूलन क्षमता में छिपी है. यह नस्ल न केवल दूध उत्पादन में सक्षम है, बल्कि इसकी शारीरिक बनावट इसे मांस उत्पादन के लिए भी उपयोगी बनाती है. गर्म और उमस भरे मौसम में भी यह स्वस्थ रहती है, जो इसे उन देशों के लिए आकर्षक बनाता है जहां जलवायु चुनौतीपूर्ण है. ब्राजील जैसे देशों ने इन गुणों को पहचानकर इस नस्ल को वैज्ञानिक तरीके से विकसित किया.
भारत के लिए सबक
वियाटिना-19 की सफलता भारत के लिए एक बड़ा संदेश है. जिस नस्ल को हम अपने देश में नजरअंदाज कर रहे हैं, वह विदेशों में अरबों की कमाई कर रही है. यह घटना हमें अपनी स्थानीय नस्लों के संरक्षण और उनके विकास पर ध्यान देने की जरूरत बताती है. अगर भारत में भी ओंगोल नस्ल पर वैज्ञानिक शोध और प्रजनन पर जोर दिया जाए, तो यह देश की अर्थव्यवस्था और डेयरी उद्योग के लिए वरदान साबित हो सकती है.